बाघ के संरक्षण में उत्तराखंड भले ही देश में दूसरे स्थान पर हो, लेकिन सुरक्षा का सवाल बड़ी चुनौती के रूप में सामने है। इससे निबटने को ठोस एवं प्रभावी कदम उठाने की दरकार है।
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कार्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों के शिकार को लेकर वन्यजीव संरक्षण में जुटे ट्रस्ट 'ऑपरेशन आइ आफ द टाइगर' की ओर से उठाए गए सवालों के बाद उत्तराखंड में बाघ सुरक्षा का सवाल फिर से चर्चा में है। ट्रस्ट ने पिछले साल हरिद्वार और रायवाला में बाघ की खालों की बरामदगी के मामले में सामने आए साक्ष्यों के आधार पर कार्बेट टाइगर रिजर्व में वर्ष 2014 से 2016 तक 20 से ज्यादा बाघों के शिकार की आशंका जताई है। साथ ही बाघ सुरक्षा और शिकारियों-तस्करों पर लगाम कसने की दिशा में विभाग की कार्यशैली को कठघरे में खड़ा किया है। बात चाहे जो भी हो, लेकिन यह किसी से छिपा नहीं है कि उत्तराखंड में मौजूद बाघ, गुलदार समेत दूसरे वन्यजीव शिकारियों-तस्करों के निशाने पर हैं। खासकर बावरिया गिरोहों ने नींद उड़ाई हुई है। वन्यजीव अपराधों की रोकथाम की नोडल एजेंसी पुलिस की एसटीएफ और वन महकमे की पड़ताल पर ही गौर करें तो सूबे में पांच बावरिया गिरोह सक्रिय हैं। पिछले साल भी बाघ की खालों के साथ पकड़े गए आरोपी भी बावरिया गिरोह के ही सदस्य हैं। पिछले दो सालों में ही एसटीएफ बावरिया गिरोहों के 17 सदस्यों को पकड़ चुकी है, जबकि 88 अभी भी एसटीएफ व वन महकमे की पकड़ से दूर हैं। ऐसे में वन्यजीवों, विशेषकर बाघों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठना लाजिमी है। वजह ये कि इन गिरोहों के सदस्य बेखौफ हो संरक्षित व आरक्षित वन क्षेत्रों में घुसकर अपनी करतूतों को अंजाम दे देते आए हैं और विभाग लकीर पीटता रह जाता है। पूर्व में ऐसे भी मामले आए, जब कार्बेट टाइगर के सबसे महफूज समझे जाने वाले कोर जोन में बावरिया गिरोहों ने शिकार की घटनाओं को अंजाम दिया। यही नहीं, यह बात भी सामने आ चुकी है कि यहां के वन्यजीवों पर अंतर्राष्ट्रीय माफिया भी गिद्धदृष्टि गड़ाए है और बावरिया गिरोहों के तार इनसे जुड़े हैं। बावजूद इसके बाघ सुरक्षा के मद्देनजर वह तेजी और कदम नजर नहीं आते, जिनकी दरकार है। बदली परिस्थितियों में जरूरत इस बात की है कि पिछली कमियों से सबक लेते हुए बाघों की सुरक्षा के लिए नए सिरे से कार्ययोजना तैयार कर इसे धरातल पर उतारा जाए। इसके तहत मजबूत खुफिया तंत्र, सघन गश्त, उचित संसाधनों के साथ ही सूचना-तकनीकी का बेहतर उपयोग किया जाना चाहिए। यही नहीं, वन्यजीव अपराधियों पर नकेल कसने के लिए पुलिस समेत दूसरे महकमों से तालमेल कर उनकी मदद भी ली जानी चाहिए। उम्मीद की जानी चाहिए कि राज्य सरकार सूबे में बाघों के संरक्षण के लिए प्रभावी कदम उठाएगी।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]