बंगाल में तृणमूल व भाजपा के बीच वैसे तो सियासी जंग 2014 से ही जारी है लेकिन पिछले वर्ष नवंबर में नोटबंदी के बाद से जंग और तेज हो गई है। केंद्रीय परियोजनाओं का नाम बदलने के बाद स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि उद्घाटन को लेकर भी सियासत हो रही है। आसनसोल से भाजपा सांसद व केंद्रीय राज्य मंत्री बाबुल सुप्रियो के संसदीय क्षेत्र में निर्मित एक सड़क का बाबुल के उद्घाटन करने से पहले ही स्थानीय तृणमूल नेताओं ने उद्घाटन कर दिया। इसके बाद शुक्रवार को बाबुल ने भी उसी सड़क का दूसरी बार उद्घाटन किया। आसनसोल में यह पहली घटना नहीं है। इससे पहले भी बाबुल से पहले राज्य के मंत्री मलय घटक ने नेशनल हाइवे पर बने अंडरपास का उद्घाटन कर दिया था। क्या इस तरह से उद्घाटन को लेकर सियासत होनी चाहिए? क्या पार्टी के राजनीतिक स्वार्थ के लिए सौहार्द की तिलांजलि दी जा सकती है? कोई भी योजना व परियोजना इलाके के लोगों की बेहतरी के लिए होती है, फिर चाहे वह सांसद, विधायक, मंत्री या फिर स्थानीय निकाय की ओर से की जाए। वैसे भी भारत की संस्कृति रही है कि यदि किसी केंद्रीय परियोजना का शिलान्यास व उद्घाटन होता है तो स्थानीय सांसद व विधायकों को भी आमंत्रित किया जाता है, चाहे वे किसी भी दल के क्यों न हों। कुछ दिन पहले एक रेल परियोजना के उद्घाटन कार्यक्रम के लिए रेलवे की ओर विज्ञापन दिया गया था, जिसमें जेल में बंद होने के बावजूद स्थानीय सांसद सुदीप बंद्योपाध्याय को आमंत्रित किया गया था। क्या किसी विकास परियोजना के शिलान्यास व उद्घाटन समारोह में उस इलाके के सभी जनप्रतिनिधि एक साथ शामिल नहीं हो सकते? जनता विकास के लिए अपना जनप्रतिनिधि चुनते हैं। इसमें श्रेय लेने की ओछी राजनीति क्या उचित है? यहां बात आसनसोल नगर निगम के वार्ड संख्या 13 के गिरमिट इलाके में नवनिर्मित सड़क के उद्घाटन की हो रही है, जिसका तृणमूल शासित नगर निगम के पदाधिकारियों ने गुरुवार शाम को ही उद्घाटन कर दिया जबकि इस सड़क का उद्घाटन स्थानीय सांसद बाबुल सुप्रियो को करना था। इसपर सभी राजनीतिक दलों, खासकर सत्तारूढ़ दलों को सोचना होगा कि लोगों भी यह पता रहता है कि अमुक विकास कार्य केंद्र का है और अमुक राज्य का। ऐसे में आम लोगों का विकास ही बाधित होगा।
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(हाइलाइटर :: वैसे भी भारत की संस्कृति रही है कि यदि किसी केंद्रीय परियोजना का शिलान्यास व उद्घाटन होता है तो स्थानीय सांसद व विधायकों को भी आमंत्रित किया जाता है, चाहे वे किसी भी दल के क्यों न हों।)

[ स्थानीय संपादकीय : पश्चिम बंगाल ]