जम्मू के अरनिया सेक्टर में चार पाकिस्तानी आतंकियों को खत्म करने में जिस तरह करीब तीस घंटे का समय लगा और इस दौरान सेना को टैंकों तक का सहारा लेना पड़ा उससे यही पता चलता है कि आतंकी कितनी तैयारी से आए थे। यह साधारण बात नहीं कि महज चार आतंकी सेना और अन्य सुरक्षा बलों को लंबे समय तक छकाए रहे। यह ठीक है कि उन्होंने सेना द्वारा छोड़े गए एक बंकर में कब्जा जमा लिया था और इस कारण उनसे निपटना मुश्किल हो गया था, लेकिन इस सवाल का जवाब तलाशा जाना चाहिए कि वे बंकर पर कब्जा जमाने में सफल कैसे रहे। अगर उसकी जरूरत नहीं रह गई थी तो भी उसकी निगरानी तो होनी ही चाहिए थी। इसलिए और भी, क्योंकि वह अंतरराष्ट्रीय सीमा से महज-तीन-चार किलोमीटर अंदर ही था। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं कि आतंकी पिछले दिनों ही सीमा पार करके आए थे या फिर पहले से इस इलाके में सक्रिय थे। इस बारे में सेना और सीमा सुरक्षा बल के दावे अलग-अलग हैं। सेना की मानें तो आतंकियों ने संघर्ष विराम उल्लंघन के दौरान घुसपैठ की, लेकिन सीमा सुरक्षा बल का तर्क है कि घुसपैठ के कहीं कोई निशान नहीं दिख रहे हैं। कम से कम यह तो स्पष्ट होना ही चाहिए कि आतंकी कहां से और कैसे आए और किसकी चूक से बंकर को ठिकाना बनाने में सफल रहे?

ऐसे सवालों का जवाब खोजकर ही सुरक्षा तंत्र को मजबूत बनाया जा सकता है और इसकी आवश्यकता इसलिए है, क्योंकि यह लगभग तय है कि पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज आने वाला नहीं है। उसके शत्रुतापूर्ण रवैये के कारण संघर्ष विराम निर्थक साबित होता जा रहा है। वह आतंकियों की घुसपैठ से बाज नहीं आ रहा है। पाकिस्तानी आतंकियों ने जम्मू में एक ऐसे समय कहर ढाया जब काठमांडू में दोनों देशों के प्रधानमंत्री दक्षेस शिखर सम्मेलन के मंच पर साथ थे। इन आतंकियों के साथ मुठभेड़ समाप्त होने के समय तो प्रधानमंत्री चुनावी रैलियों को संबोधित करने के लिए जम्मू में ही थे। इस दौरान उन्होंने लोकतंत्र की ताकत का भी जिक्र किया। नि:संदेह जम्मू-कश्मीर के लोगों ने राज्य विधानसभा के पहले चरण के मतदान में उत्साह से भाग लेकर लोकतंत्र के प्रति भरोसा जताया और दुनिया को भी एक संदेश दिया, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि पाकिस्तान इस संदेश को समझने से इन्कार कर रहा है। आने वाले दिनों में पाकिस्तानी आतंकियों की ओर से चुनाव प्रक्रिया में खलल डालने का काम किया जा सकता है। भारत सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आतंकियों के इरादे पूरे न होने पाएं। इसके लिए सीमा पार से उनकी घुसपैठ पर पूरी तरह लगाम लगानी होगी। यह ठीक नहीं कि तमाम उपायों के बावजूद सीमा पार से होने वाली घुसपैठ पर प्रभावी अंकुश नहीं लग पा रहा है। घुसपैठ पर लगाम लगाए बिना पाकिस्तान के दुस्साहस का दमन किया जाना संभव नहीं। भारत सरकार ने पाकिस्तान के प्रति जो सख्ती भरा रवैया अपना रखा है उसकी झलक सीमा पर भी दिखनी चाहिए। यह ठीक नहीं कि आतंकी येन-केन-प्रकारेण घुसपैठ करने में समर्थ होते रहें। आतंकियों की घुसपैठ के मामले में इस तर्क के जरिये संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि पाकिस्तान सेना उनकी घुसपैठ करा रही है, क्योंकि ये तो एक ऐसा तथ्य है जिससे हर कोई परिचित है।

[मुख्य संपादकीय]