राजधानी के सरकारी अस्पतालों में दवा की कमी होना चिंता का विषय है। इससे न सिर्फ मरीजों के इलाज में समस्या आ रही है, बल्कि उन्हें अस्पताल के बाहर से महंगी दवाइयां खरीदने के लिए भी मजबूर होना पड़ रहा है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सामने प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में ये तथ्य सामने आए हैं कि दिल्ली सरकार के कुछ बड़े अस्पतालों में 33 से 44 फीसद ही दवा उपलब्ध है। ऐसे में यहां आने वाले मरीजों को कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। इस रिपोर्ट पर मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया स्वागतयोग्य है। उन्होंने मुख्य सचिव को निर्देश जारी कर सभी अस्पतालों में जल्द से जल्द सौ फीसद दवा की उपलब्धता सुनिश्चित कराने को कहा है। उन्होंने अस्पतालों में एक्स-रे और सीटी स्कैन की मशीनों की हालत को लेकर भी नाराजगी जताई है।
दिल्ली के अस्पतालों में अव्यवस्था की ऐसी स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है। राष्ट्रीय राजधानी में यह हाल है तो दूरदराज के इलाकों में सरकारी अस्पतालों की क्या स्थिति होगी, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। सरकारी अस्पतालों में मरीजों को दवा उपलब्ध कराने में लापरवाही किसी भी स्तर पर बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिए। सरकार के स्तर पर यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अस्पतालों में पर्याप्त मात्रा में दवा हर समय उपलब्ध हो और मरीजों को अस्पताल के बाहर से दवा न लेना पड़े। समय-समय पर औचक निरीक्षण भी किया जाना चाहिए ताकि दवा की उपलब्धता की जांच की जा सके। लापरवाही मिलने पर दोषी अधिकारियों-कर्मचारियों को दंडित किया जाना चाहिए। सरकारी अस्पतालों में उपकरणों की बदहाल स्थिति भी किसी से छिपी नहीं है। अस्पतालों में आमतौर पर कई उपकरण खराब रहते हैं और कई पुरानी तकनीक पर आधारित हैं, जिन्हें अपग्रेड किए जाने की आवश्यकता है। अस्पतालों में ऐसे उपकरणों का ऑडिट होना चाहिए। खराब उपकरणों की मरम्मत कराई जाए या फिर नए उपकरण लाए जाएं। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मरीजों को दवा के साथ ही जांच आदि के लिए अस्पताल से बाहर न जाना पड़े।

[ स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]