फ्लैश---
सूबे में तेजी से फैल रहे ध्वनि और वायु प्रदूषण के प्रति प्रशासन और पुलिस की सुस्ती इस बात की परिचायक है कि लोगों के स्वास्थ्य की फिक्र नहीं की जा रही है।

ध्वनि और वायु प्रदूषण पर हाईकोर्ट का फिर चिंता करना जायज है। यह एक ऐसी विकट समस्या है जो लोगों के स्वास्थ्य पर खासा असर डाल रही है। सड़कों पर धूल के कणों और धुआं उगलते वाहनों के कारण सांस संबंधी बीमारों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, अस्पतालों में रोजाना इनकी भीड़ पहुंच रही है। ध्वनि प्रदूषण तो जानलेवा साबित हो रहा है। खासकर अद्र्धशहरी और ग्रामीण इलाकों से अक्सर ऐसी खबरें आती हैं कि स्कूल जाने वाले बच्चे सड़क पार करते वक्त बड़े वाहनों के प्रेशर हॉर्न को सुन दहशत में आ जाते हैं और कभी-कभी तो कुचलकर उनकी मौत तक हो जाती है। सूबे की राजधानी पटना के अलावा भागलपुर, मुजफ्फरपुर, गया आदि बड़े शहरों में प्रेशर हॉर्न बड़ी मुसीबत बन गए हैं। प्रशासन और पुलिस अफसर इसपर रोक लगाने में बेपरवाह हैं। इनकी ओर से राह चलती छोटी-बड़ी गाडिय़ों के हॉर्न चेक करने की कभी जहमत नहीं उठाई जाती, कोई अभियान भी नहीं चलता। इनका ध्यान सिर्फ वाहनों के कागजात चेक करने के बहाने अवैध वसूली पर रहता है। नियमत: अस्पतालों और स्कूलों के आसपास तेज गति से वाहन चलाना और हॉर्न बजाना प्रतिबंधित है, परंतु इन नियमों का अनुपालन कराने वाली पुलिस को इसके लिए फुर्सत ही नहीं है। ध्वनि प्रदूषण के मामले में शादी-विवाह में तेज लाउस्पीकर बजाने और देर रात तक धूम-धड़ाका करने की अनुमति नहीं है, परंतु खुलेआम नियमों का मखौल उड़ाया जाता है। बोर्ड परीक्षा के दौरान भी इसे रोकने के लिए प्रशासन और पुलिस के जिम्मेदार लोग गंभीर नहीं होते। वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारक अपनी आयु पूरी कर चुके वो वाहन हैं जो सड़क पर धुआं उगलते हुए बेधड़क दौड़ रहे हैं। परिवहन विभाग इन वाहनों की कुल संख्या का अंदाजा भी नहीं लगा सका है। आम लोग क्या सचेत होंगे जब राजधानी पटना में ट्रैफिक व्यवस्था में ऐसी गाडिय़ां लगाई गई हैं जो आयु पूरी होने के बाद निजी वाहन को ट्रोचन करने का काम कर रही हैं। बुधवार को हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश राजेन्द्र मेनन एवं न्यायाधीश सुधीर सिंह की खंडपीठ ने सभी जिलाधिकारियों को नोटिस जारी कर प्रदूषण के रोकथाम पर दो सप्ताह में कार्रवाई रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। अदालत को याचिकाकर्ताओं की ओर से जानकारी दी गई है कि 20 साल पुरानी गाडिय़ां भी चलाई जा रही हैंं। जेनरेटर एवं जुगाड़, पुराने ऑटो रिक्शा एवं बसें बेधड़क चल रही हैं। शादियों में पटाखे छोड़ प्रदूषण फैलाया जा रहा है। तेज हॉर्न लोगों के स्वास्थ्य से खेल रहे हैं। अदालत ने पहले भी कई आदेश पारित कर रखे हैं, लेकिन कानून का पालन नहीं हो रहा है। इस बार मामला बड़ी पीठ सुन रही है, इसलिए कोई कारगर व्यवस्था बनने की उम्मीद की जा सकती है।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]