ब्लर के लिए ...
- आवारा पशुओं पर नियंत्रण बहुत जरूरी है, अगर यही हाल रहा तो आने वाले समय में स्थितियां खतरनाक होंगी

दिल्ली के अलीपुर इलाके के मुखमेलपुर गांव में सात-आठ आवारा कुत्तों का पांच वर्षीय बच्ची को नोच कर बुरी तरह जख्मी कर देना एक दर्दनाक घटना है, जो राजधानी की एक बड़ी समस्या को उजागर करती है। यह घटना स्पष्ट दर्शाती है कि आवारा पशुओं पर नियंत्रण के सरकारी प्रयास पूरी तरह विफल साबित हुए हैं, जिसकी वजह से ये पशु दिल्लीवासियों की जिंदगी के लिए खतरा बने हुए हैं। रास्ते में आते-जाते लोगों पर आवारा कुत्तों के हमलों की घटनाएं दिल्ली में आम हैं और कई बार जानलेवा भी साबित हुई हैं, लेकिन इसके बावजूद आवारा पशुओं पर नियंत्रण के लिए जिम्मेदार दिल्ली की तीनों नगर निगमों में इसे लेकर गंभीरता नजर नहीं आती। राजधानी में जहां आवारा कुत्तों के काटने की दिन भर में कई घटनाएं सामने आती हैं, वहीं आवारा पशु अक्सर सड़क हादसों की वजह भी बनते हैं। करीब डेढ़ माह पूर्व संतनगर इलाके में सांड़ के हमले में भाजपा नेता की मौत भी इसी का परिणाम रही।
सिर्फ उत्तरी दिल्ली नगर निगम को ही आवारा पशुओं पर नियंत्रण के लिए वर्ष 2016-17 में करीब 48.5 करोड़ रुपये प्राप्त हुए, लेकिन काम के प्रति लापरवाही का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस दौरान निगम ने मात्र 2621 आवारा पशुओं की धरपकड़ कर अपने कत्र्तव्य की इतिश्री कर ली। यानी सही मायने में निगम इतनी बड़ी धनराशि का ढंग से इस्तेमाल भी नहीं कर पाया। यह स्थिति चिंताजनक है और दर्शाती है कि हालात में सुधार के लिए तत्काल कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। तीनों निगमों को आवारा पशुओं को पकडऩे और उनके बंध्याकरण के लिए विस्तृत कार्ययोजना बनानी चाहिए और पूरी इच्छाशक्ति के साथ उसे अमल में लाया जाना चाहिए। निगमों को यह व्यवस्था भी करनी चाहिए कि उनके द्वारा बनाई गई योजना के क्रियान्वयन की उच्चाधिकारी करीब से निगरानी करें। साथ ही पार्षदों को अपने-अपने क्षेत्र में पूरी सक्रियता से आवारा पशुओं की समस्या दूर करने के लिए प्रयास करना चाहिए। उचित निगरानी व्यवस्था न होने से ही योजनाओं का ठीक ढंग से क्रियान्वयन नहीं हो पाता, ऐसे में निगरानी तंत्र मजबूत कर लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों-कर्मचारियों को दंडित भी किया जाना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]