वाममोर्चा में हताशा
दक्षिण कांथी विधानसभा उपचुनाव में वाममोर्चा (वामो) समर्थकों का वोट भाजपा को मिला है उससे उनकी हताशा उजागर होती है।
माकपा के राज्य सचिव सूर्यकांत मिश्रा ने जिस तरह स्वीकार कर लिया है कि दक्षिण कांथी विधानसभा उपचुनाव में वाममोर्चा (वामो) समर्थकों का वोट भाजपा को मिला है उससे उनकी हताशा उजागर होती है। पहले वामो का चुनाव नतीजा खराब होता था तो पार्टी में उसकी गहन समीक्षा होती थी, लेकिन अब लगता है कि तीन दशक से अधिक समय तक बंगाल में शासन करने के बाद माकपा किसी तरह की उम्मीद भी करने की स्थिति में नहीं है। 2011 में पहली बार ममता बनर्जी जब वाममोर्चा को पराजित कर सत्तासीन हुई तब भी माकपा की स्थिति इतनी खराब नहीं थी। माकपा मुख्य विपक्षी पार्टी थी और वहां से उसकी सत्ता में वापसी की संभावना खत्म नहीं हुई थी। इसलिए हारने पर भी वाममोर्चा के नेताओं में आत्मविश्वास था। माकपा नेता कहते थे कि वे विपक्ष की रचनात्मक भूमिका निभाएंगे, लेकिन 2016 के विधानसभा चुनाव में माकपा विपक्षी पार्टी की भूमिका निभाने की स्थिति में भी नहीं रही। कांग्रेस कमजोर होने के बावजूद राज्य में मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा प्राप्त कर लिया। परंतु,10 वामपंथी दलों का कुनबा वाममोर्चा मुख्य विपक्ष दल बनने से भी चूक गया। कहने का तात्पर्य यह है कि 2011 में सत्ता से बेदखल होने के बाद माकपा के जनाधार में लगातार गिरावट जारी है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बाद नगरनिगम, नगरपालिका तथा लोकसभा उपचुनाव और विधानसभा उपचुनाव में वामो का प्रदर्शन खराब होता गया। आज स्थिति यह है कि माकपा राज्य सचिव सूर्यकांत मिश्रा को स्वीकार करना पड़ा कि वामपंथी समर्थकों का वोट भाजपा को मिला है। अगर यह सच है तो इसका मतलब यह है कि माकपा अब तक अपने जिस आदर्श और नीति के लिए जानी जाती रही है वह अब अप्रासंगिक हो गई है। सांप्रदायिकता, साम्राज्यवाद और नई आर्थिक उदार नीति का विरोध माकपा की बुनियादी नीति रही है। परंतु, वामपंथी इन तीनों मोर्चे पर भी हाशिये पर हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो साफ कह दिया है कि कौन पार्टी दूसरे और कौन तीसरे नंबर पर है इसकी चिंता उन्हें नहीं है। इसका मतलब कि ममता भी भाजपा को अपनी मुख्य प्रतिद्वंद्वी मानने के लिए तैयार हैं। सूर्यकांत मिश्रा ने कहा है कि भाजपा को रोकने के लिए कांग्रेस के साथ वामो का गठबंधन रहेगा। लेकिन जब माकपा खुद जर्जर स्थिति में है तो मिश्रा के इस बयान का भी कोई अर्थ नहीं है।
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(हाईलाइटर:::सांप्रदायिकता, साम्राज्यवाद और नई आर्थिक उदार नीति का विरोध माकपा की बुनियादी नीति है। लेकिन वामपंथी इन तीनों मोर्चे पर भी हाशिये पर हैं।)
[ स्थानीय संपादकीय : पश्चिम बंगाल ]