हिमाचल में बीएड कॉलेजों में डेढ़ हजार से ज्यादा सीटें खाली रह गई हैं। कभी बीएड का बड़ा क्रेज होता था। इसकी वजह सरकारी नौकरी की गारंटी थी। उस समय प्रदेश में बीएड करवाने वाले दो ही सरकारी कॉलेज थे। एक शिमला और दूसरा धर्मशाला। इन दोनों कॉलेजों में बहुत कम स्टूडेंट्स को बीएड में एडमिशन मिल पाती थी। अधिकतर स्टूडेंट्स शिक्षक बनने का सपना पूरा करने के लिए जम्मू-कश्मीर में पढ़ना जाते थे। उसके बाद प्रदेश में निजी बीएड कॉलेज खुले। आज प्रदेश में करीब छह दर्जन निजी बीएड कॉलेज हैं। शुरू-शुरू में इन कॉलेजों में स्टूटेंड्स ने हंसते-हंसते दाखिला लिया। इसकी वजह भी थी। आखिर घर के पास पढ़ने जा रहे थे। प्रदेश में ऐसी जगह भी बीएड कॉलेज खुले, जहां अब तक सिर्फ सीनियर सेकेंडरी स्कूल चल रहे थे। कुछ साल से निजी बीएड कॉलेजों की भीड़ घट रही है। पिछले साल निजी कॉलेजों को कई बार मामला राज्य सरकार और हिमाचल यूनिवर्सिटी के पास उठाने के बाद मुश्किल से स्टूडेंट्स मिल पाए थे। इस बार भी स्थिति करीब-करीब वैसी ही है। प्रदेश में बीएड की 7200 सीटें हैं। काउंसलिंग पूरी होने के बाद 1586 सीटें खाली हैं। इनमें से 578 सीटें निजी कॉलेज मैनेजमेंट कोटे से भरेंगे। मैनेजमेंट कोटे की सीटें भर जाती हैं तो इसके बाद भी एक हजार से ज्यादा सीटें खाली रहने के आसार हैं। काउंसलिंग के बाद कला व वाणिज्य संकाय में 3545 में से 781 सीटें अभी तक खाली रह गई हैं। नॉन मेडिकल में ही स्थिति राहत देने वाली है। नॉन मेडिकल में 1874 में से 129 सीटें ही खाली हैं। मेडिकल की 1881 सीटों में से 676 खाली हैं। अब 24 अगस्त तक निजी कॉलेजों को मैनेजमेंट कोटे की सीटें भरने को कहा गया है। असल में कुछ कारणों से स्टूडेंट्स बीएड से पीछे हट रहे हैं। अब बीएड के बाद अध्यापक पात्रता परीक्षा (टेट) पास करना जरूरी की गई है। टेट पास करने के बाद कमीशन पास करना होगा। तब जाकर कहीं नौकरी के लिए पात्र बन पाएंगे। पहले बैचवाइज नंबर आने का इंतजार रहता था। पर टेट पास नहीं होंगे तो बैचवाइज नौकरी भी नहीं मिल पाएगी। एक बार टेट पास करने के सात साल तक नौकरी न मिली तो फिर से टेट की लाइन में लगना पड़ेगा। बीएड पास बेरोजगार यह मांग कर रहे हैं कि एक बार टेट पास करने के बाद उसे लाइफटाइम वैध कर देना चाहिए। यह अच्छा फैसला होगा। इससे बीएड स्टूडेंट्स बढ़ सकते हैं।प्रदेश के बीएड कॉलेजों को पढ़ाने के लिए स्टूडेंट्स नहीं मिल रहे हैं। इस बार भी पिछले साल जैसी स्थिति पैदा हो गई है।

स्थानीय संपादकीय- हिमाचल प्रदेश