युवा पीढ़ी स्वस्थ, संस्कारी और नैतिक मूल्यों पर अमल करने वाली हो तो देश-प्रदेश का विकास निश्चित है। राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका अहम होती है और इस सत्य को नकारा नहीं जा सकता। लेकिन जब देश के कर्णधार कहे जाने वाले युवा ही पथभ्रष्ट हो जाएं तो चिंता स्वाभाविक है। हिमाचल प्रदेश की युवी पीढ़ी नशे की दलदल में फंसती जा रही है। प्रदेश के कई हिस्सों में चरस, भुक्की, कोकीन व अफीम की बरामदगी सुखद संकेत नहीं देती। प्रदेश में ड्रग माफिया वैसे तो दस जिलों में सक्रिय है लेकिन चार जिलों कांगड़ा, मंडी, शिमला व कुल्लू के युवा निशाने पर हैं। अपने अवैध कारोबार के लिए युवाओं को नशे का आदी बनाया जा रहा है। बीते दो वर्षो में नशाखोरी का प्रचलन बढ़ा है। वर्ष 2014 की अपेक्षा २०१६ में नशीले पदार्थ बरामद होने के ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं। 2014 में 644 लोगों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए जबकि वर्ष 2016 में यह आंकड़ा 920 हो गया है। यह आंकड़े विधानसभा में सरकार ने रखे हैं, जो चौंकाने वाले हैं। शायद ही कोई दिन ऐसा हो, जिस दिन प्रदेश में नशे के सामान की बरामदगी नहीं होती। कहीं नशे के सामान की तस्करी कमाई के लिए हो रही है तो कहीं इसका प्रयोग खुद किया जा रहा है। दोनों ही स्थितियां खतरनाक हैं। हालात ऐसे हैं कि युवा नशे की लत पूरी करने के लिए चोरियों में भी संलिप्त होने लगे हैं। ऐसा नहीं है कि अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे लोग ही ऐसे कार्य में संलिप्त हैं बल्कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे युवा भी हाल ही में पकड़े गए हैं। थोड़े से पैसे के लिए दूसरों की जिंदगी से खिलवाड़ को उचित नहीं ठहराया जा सकता। इसके लिए सिर्फ युवाओं को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता बल्कि उनके परिजन व शिक्षक भी उतने ही जिम्मेदार हैं। अगर बच्चे को शुरू से ही ऐसे संस्कार दिए जाएं कि वह बुराई से दूर रहे तो जीवन में कभी वह गलत राह पर नहीं चलेगा। युवा पीढ़ी के गलत राह पर चलने का कारण प्रदेश में बढ़ती बेरोजगारों की संख्या भी हो सकती है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि प्रदेश को विकास की बजाय विनाश के पथ पर ले जाया जाए। युवाओं को अपनी ऊर्जा और शक्ति का प्रयोग प्रदेश के नवनिर्माण में लगाना चाहिए न कि ऐसी राह पर चलकर, जिसकी मंजिल जेल हो।

[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]