दिल्ली उच्च न्यायालय की ओर से आम आदमी पार्टी के प्रमुख और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जमानत याचिका खारिज किए जाने के बाद यह स्वाभाविक है कि अब वह सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। यदि उन्हें वहां से भी राहत नहीं मिलती तो फिर उन्हें और अधिक समय तक जेल में रहना पड़ सकता है। हालांकि शराब नीति के जरिये घोटाले को अंजाम दिए जाने के आरोप में गिरफ्तार आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह को करीब छह माह बाद सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि इसी मामले में गिरफ्तार मनीष सिसोदिया एक वर्ष से अधिक समय से जेल में हैं और उन्हें सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिल सकी है।

भ्रष्टाचार के मामलों में प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी की ओर से गिरफ्तार लोगों को लंबे समय तक इसलिए जेल में रहना पड़ता है, क्योंकि मनी लॉन्ड्रिंग संबंधी कानून में जमानत के प्रविधान अत्यंत कठोर हैं। चूंकि ऐसे मामलों का ट्रायल शुरू होने में अन्य अनेक मामलों की ही तरह समय लगता है, इसलिए कई बार मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपितों को लंबे समय तक जेल में रहना पड़ता है।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था दी है कि यदि ट्रायल शुरू होने में देर होती है तो मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपित को जमानत दी जा सकती है, लेकिन प्रायः ईडी की ऐसी दलीलें जमानत में बाधक बन जाती हैं कि यदि आरोपित बाहर आया तो वह गवाहों को प्रभावित कर सकता है या फिर साक्ष्यों से छेड़छाड़ कर सकता है। कई बार तो आरोप पत्र दायर होने के बाद भी ईडी की यही दलील आरोपित की जमानत में बाधक बन जाती है और उसे लंबे समय तक जेल में रहना पड़ता है।

बतौर उदाहरण महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री छगन भुजबल मनी लॉन्ड्रिंग मामले में 26 माह बाद जमानत पर जेल से बाहर आ पाए थे। आम तौर पर जब किसी आरोपित को उच्चतर अदालतों से भी जमानत नहीं मिलती तो यह धारणा कायम होती है कि उस पर लगे आरोप सही हैं और यदि कहीं उसे जमानत मिल जाती है तो यह प्रचारित किया जाता है कि ईडी के आरोपों में दम नहीं और उसे गलत फंसाया गया है। दोनों ही निष्कर्ष सही नहीं। कौन दोषी है और कौन नहीं, यह तो ट्रायल कोर्ट और फिर ऊपरी अदालतों के फैसलों से ही तय हो सकता है।

चूंकि कई नेता मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों का सामना कर रहे हैं, इसलिए गिरफ्तारी के बाद उन्हें जमानत मिलने या न मिलने के आधार पर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी जारी रहता है। यह सिलसिला तभी बंद हो सकता है, जब कठोर प्रविधानों वाले मनी लॉन्ड्रिंग कानून के तहत दर्ज मामलों का निपटारा तेजी से हो। जितना जरूरी यह है कि मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध पर लगाम लगे, उतना ही यह भी कि इससे जुड़े मामलों का शीघ्र निस्तारण हो।