कलकत्ता उच्च न्यायालय ने संदेशखाली में तृणमूल कांग्रेस के नेता शाहजहां शेख की ओर से जमीन कब्जाने और महिलाओं के यौन उत्पीड़न के आरोपों की सीबीआइ जांच के आदेश देकर बंगाल सरकार के साथ-साथ एक तरह से वहां की पुलिस की साख पर भी चोट की है। यह आदेश यही बताता है कि न तो बंगाल सरकार पर भरोसा किया जा सकता है और न ही उसकी पुलिस पर।

गत दिवस ही कलकत्ता उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआइए के अधिकारियों की गिरफ्तारी पर रोक लगाई। ऐसा कोई आदेश इसलिए आवश्यक था, क्योंकि बीते दिनों जब एक बम धमाके के आरोपितों को गिरफ्तार करने गई एनआइए की टीम पर हमला किया गया तो बंगाल पुलिस ने हमलावरों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय एनआइए के अधिकारियों के विरुद्ध ही एफआइआर दर्ज कर दी।

आखिर इसे पुलिस के खुले दुरुपयोग के अलावा और क्या कहा जा सकता है? यह ध्यान रहे कि उक्त बम धमाके में तृणमूल कांग्रेस के नेता समेत तीन लोग मारे गए थे। ममता बनर्जी का आरोप है कि एनआइए की टीम पुलिस को सूचना दिए बिना बम धमाके के आरोपितों को गिरफ्तार करने चली गई। एक तो इस आरोप की पुष्टि नहीं होती और यदि एक क्षण के लिए यह मान लिया जाए कि मुख्यमंत्री सही कह रही हैं तो क्या वह एनआइए की टीम पर हमला करने वालों के पक्ष में खड़ी हो जाएंगी?

उन्होंने ऐसा ही रवैया तब अपनाया था, जब करीब तीन महीने पहले संदेशखाली के निकट प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी की टीम पर शाहजहां शेख के गुर्गों ने हमला किया था। यह टीम सैकड़ों करोड़ रुपये के राशन घोटाले में उससे पूछताछ करने गई थी। जहां बंगाल पुलिस ने 55 दिनों तक शाहजहां शेख को गिरफ्तार करने की जहमत नहीं उठाई, वहीं तृणमूल कांग्रेस ने अपने इस फरार नेता को निलंबित करने की कोई जरूरत नहीं समझी। जब कलकत्ता उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को फटकार लगाई, तब शाहजहां शेख को गिरफ्तार किया गया। बंगाल पुलिस के इसी रवैये को देखते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय ने इस मामले की जांच भी सीबीआइ को सौंप दी थी।

कलकत्ता उच्च न्यायालय इसके पहले भी बंगाल के घपले-घोटालों और हिंसा के कई मामलों की जांच सीबीआइ से कराने के आदेश दे चुका है। ऐसे कुछ आदेशों के खिलाफ बंगाल सरकार सुप्रीम कोर्ट भी पहुंची, लेकिन वहां उसे नाकामी ही मिली। ममता सरकार लाख यह शिकायत करे कि केंद्रीय एजेंसियां घोटालों एवं हिंसा के मामलों की जांच के नाम पर तृणमूल कांग्रेस के नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों को तंग कर रही हैं, लेकिन आखिर वह इससे मुंह कैसे मोड़ सकती है कि अधिकतर मामलों की जांच उच्च या सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर हो रही है? यदि बंगाल में कानून के शासन को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं तो इसके लिए ममता सरकार किसी अन्य को दोष नहीं दे सकती।