हाईलाइटर
जांच की प्रक्रिया कभी सुस्त होती है तो कभी गति पकड़ती है। ऐसा प्रतीत होता है कि इसके पीछे कहीं न कहीं राजनीतिक दबाव भी काम कर रहा है।
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झारखंड में बड़े पैमाने पर सरकारी महकमे में हुई बहालियों में फर्जीवाड़ा हुआ। लगभग एक दर्जन मामलों की जांच चल रही है। शायद ही ऐसी कोई नियुक्ति हुई जिसे लेकर विवाद नहीं हुआ। हाल ही में शार्टहैंड में फेल आरक्षी को असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर में प्रमोशन भी इसकी एक बानगी है। आश्चर्य यह कि पूरा घालमेल ऊपर से नीचे तक चल रहा है। झारखंड लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं की सीबीआइ जांच चल रही है। आयोग के पूर्व अध्यक्ष समेत कई सदस्य आरोपों के घेरे में हैं। इधर, कानून बनाने वाली संवैधानिक संस्था विधानसभा में भी नौकरियां रेवड़ी की माफिक बांटी गईं। इस नियुक्ति की जांच न्यायिक आयोग कर रहा है। जांच की प्रक्रिया कभी सुस्त होती है तो कभी गति पकड़ती है। ऐसा प्रतीत होता है कि इसके पीछे कहीं न कहीं राजनीतिक दबाव भी काम कर रहा है। न्यायिक आयोग ने इस बात पर सख्त आपत्ति जताई है कि विधानसभा सचिवालय आयोग को दस्तावेज मुहैया नहीं करा रहा है। किसी आयोग को जांच में सहयोग नहीं करने की बानगी भी झारखंड में ही दिखती है। आयोग का निर्धारित कार्यकाल है और उसे तय अवधि में ही राज्य सरकार को रिपोर्ट सौंपनी है। ऐसे में विधानसभा सचिवालय का असहयोग का रवैया कई सवाल खड़े करता है। आयोग की जांच प्रक्रिया की भी अपनी बाध्यता है। अगर उसे दस्तावेज मुहैया नहीं कराया जाएगा तो प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ेगी और फर्जीवाड़ा में लिप्त लोगों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होगी। यह स्थिति अस्वाभाविक भी नहीं है क्योंकि झारखंड विधानसभा के ज्यादा कर्मी किसी न किसी राजनेता के करीबी रिश्तेदार हैं। गलत तरीके से स्थापित नियमों की अनदेखी कर इनकी बहाली कर ली गई। कई कर्मी तो इतने रसूखदार हैं कि वे ड्यूटी भी नहीं बजाते और मासिक वेतन उठाते हैं। कुछ ने अपनी प्रतिनियुक्ति प्रभावी नेताओं के यहां करा रखी है। हालांकि हाल के दिनों में सख्ती की वजह से ऐसे कर्मियों पर नकेल कसा है। आवश्यकता इस बात की है कि ऐसे कर्मियों के बारे में तह तक तफ्तीश हो जिनकी नियुक्ति फर्जी तरीके से हुई है। इंटरव्यू बोर्ड का बदलना, हैंड राइटिंग में बदलाव, बारह घंटे के भीतर 200 किलोमीटर तक डाक पहुंचना और दो दिनों के अंदर योगदान की प्रक्रिया पूरी कर लेना भी सवाल खड़े करता है। अभ्यर्थियों के साथ-साथ वैसे राजनेताओं के खिलाफ भी एक्शन लेना चाहिए जिन्होंने इस फर्जीवाड़े में सबसे अहम भूमिका निभाई। ऐसी नियुक्ति प्रक्रियाओं ने झारखंड की छवि राष्ट्रीय स्तर पर धूमिल की है।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]