जीवन भगवान की अनमोल देन है, जिसे यूं ही गंवाना किसी भी सूरत में सही नहीं ठहराया जा सकता। अगर जीवन मिला है तो उससे पलायन क्यों? मुश्किलों से हार क्यों मानी जाए? क्यों न उनका सामना किया जाए, जिससे दूसरों को भी संबल मिल सके? आत्महत्या कर खुद को सजा देना कहां जायज है? प्रदेश में पिछले कल आत्महत्या से जुड़े दो मामले बेटियों की सुरक्षा के प्रति चिंतित करने वाले हैं। धर्मशाला के एक गांव में किराये के कमरे में रहने वाली उभरती कलाकार व मॉडल का फंदे से झूल जाना कई सवालों को जन्म दे गया। इसके अलावा जयपुर के कोटा स्थित कोचिंग संस्थान में पढ़ाई का बोझ न सह पाने के कारण हिमाचल की एक बेटी ने जिंदगी से किनारा कर लिया। मॉडल से अभिनेत्री बनी युवती किन परिस्थितियों में इस कदर मजबूर हुई कि उसे इस तरह का कदम उठाना पड़ा, वरना हिमाचल से मुंबई तक कई मौकों पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाली यह युवती इतनी कमजोर न थी। खैर जांच के बाद ही आत्महत्या जैसे कदम उठाने के लिए मजबूर करने वाले कारणों का खुलासा होगा, परंतु डॉक्टर बनने से पहले ही पढ़ाई के बोझ से एक बेटी का इस तरह का कदम उठाना उन अभिभावकों के लिए सबक है जो बच्चों पर अपनी इच्छाएं थोपने का काम करते हैं। जयपुर के कोटा स्थित कोचिंग संस्थान में जनवरी में ही यह दूसरी घटना है, जबकि पिछले साल करीब 19 छात्रों ने इसी तरह पढ़ाई के बोझ के कारण आत्महत्या की थी। दुखद है कि आत्महत्या करने वालों में युवा और शिक्षितों की संख्या सामने आती है। चुनौतियों का सामना कर जीत हासिल करने वाला ही विजेता होता है, वह नहीं जिसने मुश्किलों से हार मानकर जिंदगी को दांव पर लगा दिया। परेशानी और दिक्कतें ही जिंदगी का दूसरा पहलू हैं। दिन के बाद अंधेरी रात और रात के बाद उजला दिन, यही जिंदगी की सच्चाई है। इसलिए चुनौतियों या मुश्किलों से भागने से अच्छा है कि उनका दृढ़ता से मुकाबला किया जाए। बिना संवाद के पैदा होने वाले द्वंद्व को संवाद से दूर किया जा सकता है। सतत् प्रयासों से ही कामयाबी किसी के भी कदम चूमती है। पलायनवादी रवैये को त्यागकर हर मुश्किल का सामना करने का संकल्प सबको लेना होगा।

[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]