स्वच्छता अभियान के साथ सरकार की शुरुआत अच्छी पहल, लेकिन बड़ा सवाल कि क्या सरकार अवैध बस्तियों को हटाने के लिए भी ठोस कदम उठाएगी?
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राज्य में दो दिन पहले अस्तित्व में आए मंत्रिमंडल के सदस्यों ने विभिन्न शहरों में स्वच्छता अभियान चलाकर अपने कामकाज का श्रीगणेश किया। आम जनता के बीच इससे अच्छा संदेश गया है। इसके साथ नई सरकार से लोगों को यह आस भी है कि राज्य के तमाम शहरों और कस्बों में सरकारी जमीनों और नदी नालियों पर अवैध कब्जों की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने को भी अभियान चलाकर कार्रवाई हो। नई सरकार के इस कदम से आम आदमी को उम्मीद जगी है कि राज्य में कुकुरमुत्ते की तरह पनप रहीं मलिन बस्तियों पर रोकथाम लगेगी और उन्हें व्यवस्थित कर स्वच्छ शहरों का सपना पूरा होगा। स्मार्ट सिटी की दौड़ में राज्य की राजधानी के पिछडऩे के पीछे सबसे बड़ी वजह यही अवैध और मलिन बस्तियां ही रहीं। सरकार की नाक के नीचे दून में दर्जनों अवैध बस्तियां खड़ी हो गई हैं। वोट की राजनीति इसकी जड़ में है और कोई भी राजनीतिक दल इन्हें हटाने के लिए ठोस कदम नहीं उठा पाया। इस बारे में सम्यक रूप से हर पहलु पर मंथन करने के बाद मजबूत इच्छाशक्ति के साथ ठोस फैसले लेने की जरूरत है। यह मसला सिर्फ देहरादून तक सीमित नहीं है, बल्कि राज्य के अन्य तमाम शहरों की हालत अलग नहीं है। राज्य की भाजपा सरकार और केंद्र सरकार के एजेंडे में स्वच्छता शामिल हैं। स्वच्छ भारत अभियान के तहत करोड़ों रुपये खर्च भी किए जा रहे हैं। लेकिन आम शहरी की चाह है कि स्वच्छता केवल सड़कों, घरों और नदियों के पानी तक सीमित न होकर शहरों में उग रही अवैध बस्तियों को भी उसके दायरे में लिया जाना चाहिए। इससे न केवल सरकारी भूमि और नदियों से अवैध कब्जे खाली होंगे, बल्कि स्वच्छता का असल मकसद भी पूरा होगा। तमाम नदियों में गंदगी का एक बड़ा कारण इनके किनारों पर बसी अवैध बस्तियां भी हैं। आम जनता को उम्मीद है कि नई सरकार के मंत्री केवल हाथों में झाड़ू उठाकर स्वच्छता का संदेशभर देने तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि स्वच्छता की जमीनी जरूरत को समझते हुए इसके लिए गंभीर प्रयास करेंगे ताकि आम शहरी अच्छे और स्वच्छ शहरों में सांस ले सकें। हालांकि सरकार इस उम्मीद को कितना पूरा कर पाएगी, ये तो आने वाले वक्त में ही पता चल पाएगा, लेकिन फिलहाल लोग इस पहल को सकारात्मक रूप में देख रहे हैं और उम्मीद लगा रहे हैं कि स्मार्ट सिटी बनने तक शहर अच्छे ढंग से विकसित होंगे।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]