जम्मू विश्वविद्यालय अकादमिक कांउसिल की बैठक में नए शिक्षा सत्र से ट्यूशन फीस शुरू किए जाने से उन मेधावी छात्रों पर बोझ पड़ेगा, जिनके अभिभावक आर्थिक रूप से कमजोर हैं। फीस का अतिरिक्त बोझ ङोलने वाले वे विद्यार्थी हैं, जो दूर-दराज इलाकों से पढ़ने के लिए आते हैं और उनके माता-पिता का सपना होता है कि उनकी औलाद क्षेत्र का नाम रोशन करे। बेहतर होता कि यह फीस अभिभावकों की वार्षिक आय को ध्यान में रखकर ली जाती। छात्रों के अभिभावकों को एक ही नजर में देखना सही नहीं, क्योंकि कुछ छात्र समृद्ध परिवारों से आते हैं तो कुछ आर्थिक रूप से पिछड़े परिवारों से। ट्यूशन फीस शुरू करने से विश्वविद्यालय के वित्तीय संसाधन तो बढेंगे लेकिन छात्रों के बलबूते इसे बढ़ाना सही नहीं होगा। विश्वविद्यालय को चाहिए कि वे अपने तौर पर वित्तीय स्वायत्त बने। इसके लिए यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन और राज्य सरकार की ओर से मिलने वाली राशि का इस्तेमाल सही तरीके से करना होगा। ऊल-जुलूल के खर्चे कम करने के अलावा शिक्षकों के विदेशी दौरों पर भी विचार करने की जरूरत है। केवल उन्हीं शिक्षकों को विदेश दौरों पर भेजा जाए जिसका लाभ छात्रों को मिले। उच्च शिक्षा या कार्यशालाओं की आड़ में अपने चहेतों के दौरों पर रोक लगाने की जरूरत है। अकादमिक काउंसिल की बैठक में बीएड और एमएड कोर्स के अलावा पीजी डिप्लोमा कोर्स में उत्तर पुस्तिकाओं की पुर्न जांच को मंजूरी दिए जाने से छात्रों को इसका फायदा होगा। इससे असफल और कम नंबर लेने वाले छात्रों का विश्वास बढ़ेगा और वे सही और गलत में अंतर ढूंढ़ पाएंगे। दिव्यांग विद्यार्थियों को प्रवेश परीक्षाओं के मेरिट में दस प्रतिशत की छूट तथा कॉलेजों में इंजीनियरिंग, नर्सिग और आर्किटेक्चर विषय को शुरू किए जाने के फैसले सही है। अगर कॉलेजों में यह विषय मौजूदा सत्र से शुरू होंगे तो छात्रों का रूझान प्राइवेट इंजीनियरिंग और नर्सिग कॉलेजों की तरफ नहीं जाएगा। इससे प्राइवेट कॉलेजों की दुकानदारी भी समाप्त होगी, जो छात्रों से लाखों रुपये फीस लेकर शिक्षा के तमाम संसाधन नहीं दे पा रहे हैं। विश्वविद्यालय को चाहिए कि वे ऐसे फैसले ले जो छात्र हित में हो।

[ स्थानीय संपादकीय : जम्मू-कश्मीर ]