यह सही है कि राज्यों के विकास के बिना देश का विकास संभव नहीं है। केंद्र और राज्य सरकारें एक दूसरे के पूरक हैं। क्योंकि, हमारे देश के संविधान में भी संघीय शब्द जुड़ा है जिसकी कड़ी से केंद्र व राज्य सरकार एक दूसरे से जुड़े होते हैं। परंतु, राजनीतिक या फिर अन्य किसी मुद्दे पर राज्य व केंद्र सरकारों के बीच मतभेद या विरोध हो ही सकता है। परंतु, विकास और एक दूसरे को सहयोग देने के मुद्दे पर नहीं। यही बात राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शुक्रवार को शायद बातों-बातों में समझाने की कोशिश की। यह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए नसीहत भी है। ऐसा नहीं है कि राष्ट्रपति ने सिर्फ नसीहत ही दी है, बल्कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की भूरि-भूरि प्रशंसा भी की। निवेशकों को आकर्षित करने के लिए दो दिवसीय बंगाल ग्लोबल बिजनेस समिट के तीसरे संस्करण के उद्घाटन के लिए राष्ट्रपति कोलकाता पहुंचे थे। उन्होंने अपने संबोधन में देश में सहयोगपूर्ण संघवाद पर जोर दिया। उन्होंने कहा, संपूर्ण भारत के लिहाज से हर राज्य महत्वपूर्ण है। भारत में सहयोगपूर्ण संघवाद है, जो कि हर राज्य की ताकत पर निर्भर करता है। विशेष रूप से जब आर्थिक विकास की बात आती है तो भारत की ताकत सहयोगपूर्ण संघवाद में है। यह कहीं न कहीं राष्ट्रपति का सुश्री बनर्जी के लिए नसीहत ही कही जाएगी। क्योंकि, पिछले तीन माह में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार का ममता हर मुद्दे पर विरोध कर रही हैं। केंद्र की योजनाओं को लागू करने या कोई संबंधित आंकड़े व रिपोर्ट देने से इन्कार कर रही हैं। यही नहीं सेना के अभ्यास का विरोध, पुलिस प्रशासनिक अधिकारियों को केंद्र सरकार को कोई डेटा नहीं भेजने का निर्देश। विश्वविद्यालय के कुलपतियों को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के मंत्री की वीडियो कांफ्रेंसिंग में हिस्सा नहीं लेने का आदेश। यह सब ममता करती आ रही हैं। यही वजह है कि पहली बार निवेशकों को आकर्षित करने लिए आयोजित वार्षिक मेगा सम्मेलन में केंद्र सरकार के एक भी मंत्री नहीं पहुंचे। पिछली बार केंद्र के चार मंत्री सम्मेलन में आए थे और बंगाल में 70 हजार करोड़ से अधिक की परियोजना शुरू करने की घोषणा की थी। इस बार यदि केंद्रीय मंत्री नहीं आए तो इसका नुकसान आखिर किसका हुआ? बंगाल के लोगों का? यह बात ममता बनर्जी को समझना होगा। राष्ट्रपति ने सहयोगपूर्ण संघवाद की बात कही है। जिसमें ही ताकत है। अगर राष्ट्रपति के बातों को गंभीरता से नहीं लिया गया तो इसका नुकसान बंगाल को ही होगा।

[ स्थानीय संपादकीय : पश्चिम बंगाल ]