साक्षरता की रफ्तार
तीन करोड़ तीस लाख की आबादी वाले झारखंड में साक्षरता दर कम है। इस राज्य में महज 67.63 प्रतिशत ही साक्षरता है, जबकि महिला साक्षरता दर और भी कम 56.21 ही होना चिंता की बात है। यह दर आधुनिक अध्ययनों के निष्कर्षो से ठीक उलटा है। महिलाओं में साक्षरता अधिक आवश्यक है और उनका पढ़ा-लिखा होना विकास के दृष्टिकोण से जरूरी है। पढ़ी-लिखी महिलाएं परिवार और समाज के विकास में अधिक सहायक होती हैं। इस लिहाज से साक्षरता की परीक्षाओं में झारखंड के पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की भागादारी और अधिक सफलता दर उत्साहित करने वाली है। इस राज्य में रोजगार के क्षेत्र में महिलाओं के कम प्रतिशत का यदि सकारात्मक उपयोग करना हो तो घरेलू महिलाओं का शिक्षा से नाता जोड़ना आवश्यक होगा। साक्षर भारत कार्यक्रम के तहत ली गई आकलन परीक्षाओं के माध्यम से राज्य के चार लाख से अधिक लोगों को साक्षर बनाए जाने की घटना हालांकि धीमी है, लेकिन उपयोगी भी है। इसमें भी 66.75 फीसद मर्दो के सापेक्ष 78.18 प्रतिशत महिलाओं द्वारा सफलता प्राप्त करना यह बताता है कि राज्य की महिलाओं में अक्षर ज्ञान के प्रति अधिक जागरूकता है। सवाल अवसर का है। घरेलू कामकाज निबटाते हुए महिलाएं यदि पढ़ाई के क्षेत्र में आगे हैं तो यह एक शुभ संकेत है। यूं शिक्षा की मुख्य धारा से जुड़ी बालिकाओं में भी यही प्रवृत्ति पाई गई है। मैट्रिक और इंटर की परीक्षाओं में हमेशा बालिकाओं का परिणाम बेहतर रहा है।
राज्य सरकार और प्रबुद्ध वर्ग से यह अपेक्षा की जाती है कि वक्त की मांग को समझते हुए वे अधिक से अधिक लोगों को साक्षरता हासिल करने को प्रेरित करें। राज्य के गांवों में गरीबी और पिछड़ेपन का सबसे बड़ा कारण अशिक्षा ही है। खासकर महिलाओं में अधिक अशिक्षा होने के कारण वे पीढ़ी-दर-पीढ़ी यह समझ ही नहीं पातीं कि अपने अच्छे भविष्य के लिए वर्तमान में उसके लिए शिक्षा कितनी उपयोगी होगी। गरीबी के कारण बच्चों को भी छोटे-मोटे काम में लगा दिया जाता है, जिसके कारण अशिक्षा दूर नहीं हो पाती। लोग यह समझ ही नहीं पाते कि गरीबी क्यों है? इसे वे अपनी नियति मान लेते हैं, जबकि शिक्षा के माध्यम से इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है। यह संभव है कि शिक्षित लोगों को भी रोजगार न मिले, किंतु वे जिस किसी क्षेत्र में काम करेंगे, वहां वे सफल होंगे। इस लिहाज से, खासकर गांवों के लिए साक्षर भारत योजना एक बड़ा अवसर है, जिसका अधिक से अधिक लाभ लिया जाना चाहिए। यह तभी संभव हो पाएगा, जब इसके प्रति दिलचस्पी पैदा की जाय। यह काम निश्चय ही शासन का है। वह ग्राम सभाओं और पंचायतों के सहयोग से इसे अंजाम तक पहुंचा सकता है।
[स्थानीय संपादकीय: झारखंड]
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