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तीसरी आंख

By Edited By: Published: Fri, 18 May 2012 10:36 AM (IST)Updated: Fri, 18 May 2012 10:36 AM (IST)

कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के एक शिक्षक मार्क डेकर चंबा की छोटी विद्युत परियोजनाओं से स्थानीय या आसपास के जनजीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का शोध करने पहुंचे हैं। बाहर के या कहें तीसरे व्यक्ति के आकलन निष्पक्ष माने जाते हैं और शोध बहुत बार शुद्धि भी देता है। शोध के ही लाभ हैं कि बहुत बार मृग को कस्तूरी के लिए भटकना नहीं पड़ता। हम किसी परिवेश में रह कर भी उसके बारे में इतना नहीं जान पाते हैं जितना बाहर से आया कोई व्यक्ति हमें बता जाता है। उम्मीद करनी चाहिए कि हिमाचल विश्वविद्यालय के दो शोधार्थी मार्क डेकर के नेतृत्व में जमीनी शोध करेंगे। हिमाचल प्रदेश की स्थापना से भी पहले से लेकर अब तक बाहर से आए जिन लोगों ने शोध किया या अपनी जिस दृष्टि से हिमाचल प्रदेश को देखा, उससे हिमाचल को दिशा ही मिली है। चिंतन के नए द्वार खुले हैं। शोध वीजा पर भारत आए मार्क डेकर अपना शोध हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय और प्रदेश सरकार को सौंपेंगे। अब उन्हें भी स्मरण कर लें जिन्होंने कई दशक पहले हिमाचल प्रदेश को इसी के कई अनछुए पक्षों से परिचित करवाया। बोलियों से संबंधित पहला मौलिक शोध, जिसमें हिमाचली पहाड़ी बोलियों का जिक्र भी आता है उसका श्रेय ग्रियर्सन को जाता है जो विदेशी थे। पहाड़ी के प्रति चेतना में क्या उनका योगदान कम आंका जाएगा? 'हिस्ट्री ऑफ कांगड़ा हिल स्टेट्स' जैसी पुस्तक लिखने वाले हचीसन को कौन भूल सकता है। इसी प्रकार पंजाब से संबंधित नौकरशाह एमएस रंधावा ने एक कला-संस्कृति समीक्षक के रूप में हिमाचल को जो योगदान दिया, उसका जिक्र भी तब-तब जरूर आएगा जब-जब हिमाचली कला-संस्कृति की बात होगी। किन्नौर में लोगों के घरों में महीनों गुजारने वाले घुमक्कड़ राहुल सांकृत्यायन की हिमाचल विषयक पुस्तकें यदि यहां के समूचे परिवेश की जीवंत दस्तावेज हैं तो इसीलिए कि उन्होंने समय दिया और हिमाचल की आने वाली पीढि़यों के साथ-साथ विश्व को भी बताया कि कहां क्या और कितना महत्वपूर्ण है। मार्क डेकर के शोध से आशाएं इसलिए भी होनी चाहिए कि हो सकता है इससे प्रदेश के नीति नियंताओं को कुछ व्यावहारिक सुझाव मिलें और उन लोगों की बात भी अकादमिक रूप से ही सही, सरकार तक पहुंचे जिनके आसपास छोटी विद्युत परियोजनाएं हैं। वहां के अंधेरे-उजाले का आकलन भी हो। तीसरी आंख इसीलिए महत्वपूर्ण नहीं होती कि दो आंखों पर भरोसा नहीं होता अपितु इससे विस्तृत दृष्टि के लाभ मिलते हैं।

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[स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश]

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