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सरकारी धन का दुरुपयोग

बिहार में सत्तर फीसद लोग भला गरीबी का दंश क्यों न झेलें, इसकी वजह पर गौर करें तो तस्वीर हद तक साफ है

By Edited By: Published: Mon, 06 Jul 2015 04:05 AM (IST)Updated: Mon, 06 Jul 2015 04:05 AM (IST)

बिहार में सत्तर फीसद लोग भला गरीबी का दंश क्यों न झेलें, इसकी वजह पर गौर करें तो तस्वीर हद तक साफ है, किसी के पास दो जून की रोटी नहीं है और कोई सरकारी धन को इस कदर हड़प रहा है कि उसके घर की अलमारी में लाखों रुपये पड़े रहते हैं। कुछ साल की नौकरी में ही लोग काली कमाई से आलीशान मकान, प्लॉट, फ्लैट और लग्जरी गाड़ी खरीद लेते हैं। अफसोस की बात यह है इन भ्रष्ट सरकारी मुलाजिमों की करतूतों का सरकार को तब पता तब चलता है जब उसके बारे में कोई लिखित शिकायत करता है। यह काम भी मजबूरी में होता है, क्योंकि भ्रष्ट लोकसेवक उससे क्षमता से ज्यादा रिश्वत की डिमांड कर देता है। यूं तो राज्य सरकार ने हर साल कर्मचारियों को अपनी चल-अचल सम्पत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करने का प्रावधान कर रखा है, लेकिन ब्यौरा आने के बाद उसपर लाल निशान या कहें कि स्क्रूटनी की कोई व्यवस्था नहीं है जिससे यह प्रावधान सिर्फ औपचारिकता बनकर रह गए हैं। वैसे अब जनता की नजर में काली कमाई और फर्जीवाड़ा के किस्से भी आम बात की तरह एक कान से सुने और दूसरे कान से निकाल दिए जा रहे हैं। गलत रास्ते का सहारा लेने वालों का जिगर इतना मजबूत है कि वे शिक्षक की नौकरी के लिए भी फर्जी प्रमाणपत्रों का सहारा ले रहे हैं। हाईकोर्ट की ओर से नौ जुलाई तक फर्जी शैक्षिक प्रमाण पत्र देकर शिक्षक की नौकरी हासिल करने वालों को स्वत: इस्तीफा देने की मोहलत दी गई है, परिणामस्वरूप डेढ़ सौ लोग त्यागपत्र दे चुके हैं। कुछ दिन पहले पुलिस बहाली में जिलों से चयनित अभ्यर्थियों के प्रमाण पत्रों और फिटनेस की पटना में जांच हुई थी तो यहां दर्जनों की संख्या में फर्जी अभ्यर्थी सामने आए थे, जिन्हें जेल भी भेजा गया था।

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संयोग से बिहार एक ऐसा राज्य है जहां भ्रष्टाचार पर सरकार की ओर से जीरो टालरेंस की नीति अख्तियार की गई है। राज्य सरकार ने निगरानी इकाई का गठन किया है, फिलहाल सीमित संसाधनों के बावजूद इकाई ने अपने काम से समझौता नहीं किया है। समय-समय पर इसका फलाफल भ्रष्ट लोकसवेकों की सम्पत्ति जब्ती के रूप में दिखाई भी दे रहा है। निगरानी बड़ी मछलियों में पूर्व आइएएस, आइपीएस तक पर शिकंजा कस चुकी है। सम्पत्ति जब्ती के रूप में इनके आलीशान मकानों में स्कूल तक खोले जा चुके हैं। दो दिन पहले निगरानी के शिकंजे में पथ निर्माण विभाग का एक करोड़पति सहायक अभियंता शारदेंदु भूषण आ गया। उसने छापेमारी के दौरान घर की छत से ढाई लाख रुपयों से भरा बैग खाली प्लॉट पर फेंक दिया था। बैग में चीन निर्मित अवैध पिस्टल भी फेंक दिया था जिससे यह साफ होता है कि भ्रष्ट लोकसेवक अकूत सम्पत्ति बनाने के साथ आपराधिक गठजोड़ भी करते हैं, अभियंता के अवैध हथियार से इसकी पुष्टि हो रही है। अभियंता के मामले में एक खास बात ये है कि उसने 2007 में नौकरी शुरू की थी और महज आठ साल में करोड़ों की चल-अचल संपत्ति अर्जित कर ली। उसके कई बैंक खाते, लॉकर, बीमा व वित्तीय कंपनियों में लाखों के निवेश से संबंधित कागजात के अलावा एक म¨हद्रा और एक बीएमडब्ल्यू लग्जरी वाहन भी बरामद किया गया है। सूबे की आर्थिक तरक्की और सबको रोटी के लिए भ्रष्ट लोकसेवकों पर कार्रवाई का दायरा बढ़ाने के लिए राज्य सरकार को निगरानी तंत्र के साथ विभागीय प्रमुखों को भी उत्तरदायी बनाना चाहिए, क्योंकि कर्मचारियों से भरे अपने परिवार के पहले अभिभावक तो वही हैं।

[स्थानीय संपादकीय: बिहार]


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