राहत की तत्परता
बेमौसम बारिश के कारण फसलों के नुकसान से पीड़ित किसानों को राहत देने को लेकर केंद्र सरकार की ओर से दि
बेमौसम बारिश के कारण फसलों के नुकसान से पीड़ित किसानों को राहत देने को लेकर केंद्र सरकार की ओर से दिखाई जा रही तत्परता स्वागतयोग्य है। ऐसी तत्परता समय की मांग है। इस मामले में जरूरी केवल यह नहीं है कि सरकार गंभीरता का परिचय दे, बल्कि यह भी है कि उसकी सजगता और संवेदनशीलता को पीड़ित किसान महसूस भी करें। यह इसलिए और भी आवश्यक है, क्योंकि विरोधी राजनीतिक दल भूमि अधिग्रहण कानून के बहाने पहले ही यह माहौल बनाने में लगे हुए हैं कि मोदी सरकार किसानों की अनदेखी कर रही है। विरोधी दलों के दुष्प्रचार के साथ-साथ केंद्र सरकार इसकी भी अनदेखी नहीं कर सकती कि बेवक्त की बारिश और साथ ही ओलावृष्टि के चलते बड़े पैमाने पर फसलों की बर्बादी हुई है। एक अनुमान के तहत राजस्थान, उत्तार प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में लाखों हेक्टेयर खेतों में फसल को नुकसान पहुंचा है। कई इलाकों में तो तमाम किसानों की पूरी की पूरी फसल ही नष्ट हो गई है। यह ठीक है कि नुकसान का जायजा लेने के लिए केंद्रीय मंत्री संबंधित राज्यों के दौरे पर जा रहे हैं और उन्हें मुआवजा देने के लिए गृहमंत्री की अध्यक्षता में एक समिति भी बना दी गई है, लेकिन इस पर विचार-विमर्श के लिए कोई गुंजाइश नहीं बची है कि बारिश से नुकसान को प्राकृतिक आपदा में शामिल किया जाए या नहीं। यह कोई ऐसा मामला नहीं जिस पर विचार किए जाने की जरूरत है। किसानों को राहत देना है तो बारिश से हुई क्षति को प्राकृतिक आपदा में शामिल करना ही होगा। इसी तरह यह भी आवश्यक है कि मुआवजा देने की मौजूदा व्यवस्था में भी तब्दीली की जानी चाहिए।
इसका कोई औचित्य नहीं कि इस आधार पर मुआवजे का प्रावधान हो कि किसी निश्चित इलाके में एक निश्चित प्रतिशत तक फसलों के नुकसान की पुष्टि होनी चाहिए। यदि मुआवजा संबंधी प्रावधानों में हेर-फेर नहीं की गई तो किसानों को वास्तविक राहत मिलना मुश्किल ही होगा। केंद्र सरकार को इससे भी परिचित होना चाहिए कि पिछले वर्षो में बारिश अथवा ओलावृष्टि से पीड़ित किसानों को जो मुआवजा मिला वह एक तरह से उनके जख्मों पर नमक सरीखा था। कई राज्यों में तो किसानों को 50-60 रुपये के ही चेक सौंप दिए गए। केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्यों को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस बार ऐसा बिल्कुल भी न होने पाए। दरअसल किसानों को राहत देने के मामले में केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकारों को भी संवेदनशील होने की जरूरत है। फिलहाल राज्य सरकारें ऐसा जाहिर करने में लगी हुई हैं जैसे पीड़ित किसानों को मदद देने के मामले में जो कुछ किया जाना है वह केंद्र सरकार को करना है। यह रवैया ठीक नहीं। आखिर राज्य सरकारें अपने स्तर पर उन्हें राहत पहुंचाने के लिए आगे क्यों नहीं आ रही हैं? राज्य सरकारें पीड़ित किसानों के बिजली-पानी के बिल तो माफ कर ही सकती हैं। वे अपने स्तर पर अंतरिम मुआवजा देना भी शुरू कर सकती हैं। यह विचित्र है कि कुछ राज्य तो केंद्र सरकार को नुकसान के झूठे आंकड़े देने में लगे हुए हैं। यह निराशाजनक है कि सभी राजनीतिक दल किसानों के हितैषी होने का दावा तो करते हैं, लेकिन जब उन्हें राहत देने की बात आती है तो वे उम्मीदों पर मुश्किल से ही खरे उतरते हैं।
[मुख्य संपादकीय]