Move to Jagran APP

तय हो जवाबदेही

प्रदेश में विकास कार्यो की रफ्तार कागजों के बजाए जमीन पर तेज हो, इसे लेकर सरकार की चिंता जायज है। रा

By Edited By: Published: Sun, 23 Nov 2014 06:23 AM (IST)Updated: Sun, 23 Nov 2014 06:23 AM (IST)
तय हो जवाबदेही

प्रदेश में विकास कार्यो की रफ्तार कागजों के बजाए जमीन पर तेज हो, इसे लेकर सरकार की चिंता जायज है। राज्य गठन के 14 साल गुजरने के बाद सभी क्षेत्रों में विकास का पहिया अपेक्षा के अनुरूप तेजी से नहीं घूम सका है। खासतौर पर पर्वतीय क्षेत्रों के विषम हालात में लोगों की जीवन शैली, जीवनयापन की गुणवत्ता और ढांचागत सुविधाओं से जुड़ी विकास योजनाओं की चाल बेहद सुस्त है। नियोजन महकमे के आंकड़े भी विकास में क्षेत्रीय असमानता की खाई गहरी होने की तस्दीक करते हैं। राज्य सरकार के सामने विषम भौगोलिक क्षेत्रों की स्थिति में सुधार की चुनौती है। यह तब ही मुमकिन हो सकेगा, जब पर्वतीय क्षेत्रों में अधिकारियों और कर्मचारियों की तैनाती हो। तैनात किए जाने वाले कार्मिक वहां रहकर जन सेवाओं, स्थानीय आर्थिकी को मजबूत करने की योजनाओं के क्रियान्वयन में गंभीरता बरतें। हालत यह है कि पर्वतीय क्षेत्रों में जाने से डाक्टर, शिक्षक के साथ अब अन्य कार्मिक भी कतरा रहे हैं। इसी वजह से मुख्यमंत्री को पर्वतीय क्षेत्रों में कार्मिकों की तैनाती पर बार-बार जोर देना पड़ रहा है। सरकार के रुख के बाद मुख्य सचिव को भी नौकरशाहों को दूरदराज के क्षेत्रों में विकास कार्यो का मौका मुआयना करने के निर्देश देने पड़े। निर्देशों के पालन में हीलाहवाली न हो, इसके लिए मुख्य सचिव खुद उक्त मुहिम का नेतृत्व करेंगे। यह पहल अच्छी कही जाएगी, बशर्ते इसके नतीजे धरातल पर भी नजर आएं। इससे पहले भी कई अवसरों पर अधिकारियों को इस बाबत हिदायत दी जा चुकी हैं। शासन में बैठे आला अधिकारियों को जिलों का प्रभार सौंपकर निर्माण कार्यो समेत तमाम विकास गतिविधियों का स्थलीय मुआयना करने के आदेश हैं। तमाम व्यवस्थाएं महज खानापूरी बनकर रह गई हैं। मंडल और जिलास्तरीय कार्मिक भी विभागीय कामकाज की आड़ में गाहे-बगाहे सुगम क्षेत्रों का रुख करने से नहीं चूक रहे हैं। दूरदराज और ग्रामीण क्षेत्रों में कार्मिकों के ठहराव को लेकर सख्ती के बजाए दरियादिली को शह सरकार और सियासतदां खुद दे रहे हैं। यह सरकार की प्रशासनिक क्षमता और साख पर भी सवाल है। महकमों में अनियमितताओं के गंभीर मामले सामने आने पर भी सरकार सख्त रुख अपनाना तो दूर ढुलमुल रवैया अपनाती दिखती है। यह रुख सरकारी तंत्र के भीतर जवाबदेही के प्रति असंवेदनशीलता को बढ़ावा दे रहा है। नतीजतन पर्वतीय क्षेत्रों में तैनाती हो या कामकाज में पारदर्शिता, सरकार के आदेश कार्मिकों पर बेअसर साबित हो रहे हैं। प्रशासनिक व्यवस्था दुरुस्त करने की कोशिशें सिर्फ मंशा जताने, शासनादेश जारी करने से परवान चढ़ने से रहीं। बेहतर होगा कि कामकाज में पारदर्शिता और लापरवाही पर जिम्मेदारी तय करने की इच्छाशक्ति भी दिखाई जाए।

loksabha election banner

[स्थानीय संपादकीय: उत्तराखंड]


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.