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पारदर्शिता पर सवाल

राज्य सरकार ने दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को पटरी पर लाने के उद्देश्य से डाक्टरों

By Edited By: Published: Thu, 23 Oct 2014 05:48 AM (IST)Updated: Thu, 23 Oct 2014 05:48 AM (IST)
पारदर्शिता पर सवाल

राज्य सरकार ने दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को पटरी पर लाने के उद्देश्य से डाक्टरों के लिए अलग तबादला नीति तो लागू कर दी, मगर इस नई नीति के क्रियान्वयन में पारदर्शिता पर अभी से सवाल खड़े होने लगे हैं। हैरत यह है कि नई तबादला नीति लागू होने के बावजूद स्वास्थ्य महकमे ने आठ डाक्टरों के स्थानांतरण निरस्त कर दिए। दरअसल, यह सिर्फ आठ डाक्टरों का प्रश्न नहीं, बल्कि उस व्यवस्था का सवाल है, जो स्वयं राज्य सरकार ने तैयार की और अब खुद सरकार का ही महकमा उसे ध्वस्त करने लगा है। जाहिर है तबादला नीति के विपरीत होने वाला कोई भी निर्णय दुर्गम व अति दुर्गम क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को पटरी पर लाने की राज्य सरकार की कोशिशों को कमजोर ही करेगा। यह इसलिए भी बेहद गंभीर लापरवाही है, क्योंकि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में आम जनता को राज्य गठन के तेरह बरस बाद भी चिकित्सा स्वास्थ्य की समुचित सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई जा सकी हैं। प्रदेश में डाक्टरों की कमी तो इसकी प्रमुख वजह है ही, डाक्टरों का पर्वतीय क्षेत्रों में सेवाएं देने से मुंह चुराना भी इसका एक बड़ा कारण है। नतीजा यह कि दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों के कई सरकारी अस्पतालों में या तो ताले लटके पड़े हैं या फिर फार्मासिस्टों व एएनएम के भरोसे चल रहे हैं। दूसरा अहम पहलू यह है कि राज्य गठन के बाद पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन की रफ्तार भी तेज हुई है। असल में पहाड़ों से हो रहे पलायन के पीछे भी शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार जैसी मूलभूत जरूरतों का अभाव है। भौगोलिक विषमता भरे जीवन में नई पीढ़ी का भविष्य जिस तरह से अंधकार में नजर आता है, उसे देखते हुए लोग तेजी से मैदानी क्षेत्रों की ओर पलायन कर रहे हैं। चीन व नेपाल की सीमाओं से सटे उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन की रफ्तार बढ़ना सामरिक सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी बेहद गंभीर समस्या है। ऐसे में पलायन रोकने के लिए सरकार व सरकारी एजेंसियों को पर्वतीय क्षेत्रों में बेहतर बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने के प्रति गंभीरता व ईमानदारी के साथ काम करने की जरूरत है। खासतौर पर स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में इस प्रकार की लापरवाही होना बेहद ही चिंताजनक है। राज्य सरकार ने डाक्टरों के लिए जो नई तबादला नीति प्रदेश में लागू की है वो निसंदेह एक सराहनीय पहल है, मगर नई नीति के क्रियान्वयन में जब तक पारदर्शिता का पालन नहीं होगा, आमजन को इसका अपेक्षित लाभ मिलना संभव नहीं है। सरकार के साथ ही डाक्टरों को भी पर्वतीय क्षेत्रों के प्रति अपना रुख बदलने की जरूरत है। उन्हें पर्वतीय क्षेत्रों में सेवाएं देने के लिए भी तत्पर रहना होगा। तभी दुर्गम क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं पटरी पर लौट सकेंगी।

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[स्थानीय संपादकीय: उत्तराखंड]


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