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कामरेडों का ना

By Edited By: Published: Tue, 02 Sep 2014 05:09 AM (IST)Updated: Tue, 02 Sep 2014 05:09 AM (IST)
कामरेडों का ना

कामरेडों ने मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी के उस सुझाव को खारिज कर दिया है कि भाजपा को रोकने के लिए किसी भी दल के साथ बातचीत हो सकती है। राजनीति में कोई अछूत नहीं होता। माकपा नेताओं का कहना है कि सत्तारूढ़ पार्टी के साथ बातचीत का कोई सवाल ही नहीं है और उससे मुलाकात अब सिर्फ राजनीति के मैदान में ही होगी। पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य का कहना है कि तृणमूल पूरी तरह असामाजिक तत्वों की पार्टी है। उससे बातचीत का कोई सवाल ही नहीं है। हम केवल राजनीतिक संघर्ष के रास्ते पर मिलेंगे। वाममोर्चा के अध्यक्ष व माकपा के प्रदेश सचिव विमान बोस ने भी भट्टाचार्य के सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि हम केवल राजनीति के अखाड़े में तृणमूल कांग्रेस से मिलेंगे। आखिर कामरेड ममता से दूर क्यों भाग रहे हैं? यह सत्य है कि माकपा ही नहीं, पूरे वाममोर्चा के लिए बंगाल में सबसे बड़ा खतरा तृणमूल ही है। ऐसे में तृणमूल से हाथ मिलाना माकपा के लिए शायद ही हितकारी साबित हो इसीलिए माकपा ममता के उस संकेत पर बिफर उठे हैं क्योंकि ब माकपा को भी लगने लगा है कि तृणमूल प्रमुख की नजर में माकपा व वाममोर्चा अब भी प्रासंगिक हैं। ममता के उस संकेत को ही हथियार बनाकर कामरेडों ने हल्ला बोलना शुरू कर दिया है। हालांकि, वाममोर्चा नेताओं की ममता के बयान के बाद जो प्रतिक्रिया आई है, उसके बाद तृणमूल ने भी हमला बोलना शुरू कर दिया है। कम्युनिस्टों व तृणमूल के बीच यह वाकयुद्ध सियासी रणनीति का एक हिस्सा ही माना जा सकता है क्योंकि कामरेड यह जताने की कोशिश में हैं कि तृणमूल अब भी मान रही है कि माकपा में दम है। वहीं तृणमूल नेताओं का कहना है कि वाममोर्चा अब बंगाल की राजनीति में अप्रासंगिक हो चुका है यह भी दबाव बनाने की रणनीति है। बिहार में भाजपा को रोकने के लिए चिर-प्रतिद्वंद्वी लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के गठजोड़ के बारे में पूछे जाने पर ममता बनर्जी ने तीन दिन पहले एक बांग्ला समाचार चैनल पर कहा था कि अगर बंगाल में इस तरह की स्थिति बनती है तो हम विचार करेंगे। मेरा अब भी मानना है कि कोई अछूत नहीं है। एक समय हमारा वामपंथी एसयूसीआइ से गठजोड़ था। अगर कोई आगे आता है तो हम बातचीत कर सकते हैं। लोकतंत्र में किसी के लिए बातचीत के दरवाजे बंद नहीं करने चाहिए। कोई विकल्प समाप्त नहीं होना चाहिए। जब ममता से पूछा गया कि क्या वह माकपा से हाथ मिलाएंगी तो उन्होंने कहा कि मैंने ऐसा नहीं कहा। मैंने सिर्फ इतना कहा कि अगर कोई प्रस्ताव आता है तो हम हमारी पार्टी में विचार करेंगे। ऐसे में अब माकपा व तृणमूल दोनों के लिए भाजपा का उत्थान करीब आने का बहाना बन सकता है।

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[स्थानीय संपादकीय: पश्चिम बंगाल]


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