संजय गुप्त

बुलेट ट्रेन परियोजना को लेकर भारत और जापान के बीच हुए समझौते को साकार कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना एक और वायदा पूरा कर दिया। उन्होंने बुलेट ट्रेन चलाने के अपने वादे को पूरा करना अपनी प्राथमिकता सूची में रखा और उसी के परिणामस्वरूप पिछले दिनों जापानी प्रधानमंत्री शिंजो एबी ने अहमदाबाद में बुलेट ट्रेन परियोजना की नींव रखी। 2022 तक बुलेट ट्रेन को अहमदाबाद और मुंबई के बीच चलाने की तैयारी है। यह परियोजना कई मायनों में बेहद महत्वपूर्ण है। इससे न केवल भारत तेज रफ्तार ट्रेन प्रणाली वाले देशों में शामिल हो जाएगा, बल्कि उसके जरिये विकास और रोजगार के अवसरों के नए आयाम भी खुलेंगे। भारतीय रेल में नई तकनीक का समावेश एक महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी, क्योंकि आज भी अपने देश में रेलवे का कामकाज दशकों पुरानी तकनीक पर आधारित है और इसीलिए वह समस्याओं से घिरी हुई है। रेलों के संचालन, सुरक्षा, रखरखाव आदि में आमूल-चूल बदलाव की जो आवश्यकता है उसकी पूर्ति बुलेट ट्रेन परियोजना आसानी से कर सकती है। इस परियोजना के पहले चरण में मुंबई-अहमदाबाद को चुना गया है, लेकिन आगे चलकर ऐसी ट्रेनें कई अन्य शहरों के बीच चलाई जा सकती हैं, जिनमें दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-कोलकाता जैसे महत्वपूर्ण रेलखंड शामिल हैं। इसी के साथ अन्य तमाम शहरों के बीच बुलेट ट्रेन न सही, तेज गति वाली ट्रेनों को चलाने का रास्ता भी साफ हो जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो इससे महानगरीय जीवन में गुणात्मक परिवर्तन होगा।
आज देश के लगभग सभी महानगर बढ़ती आबादी की समस्या से जूझ रहे हैं। आने वाले समय में महानगरों में आबादी और तेजी से बढ़ेगी। ऐसे में यह आवश्यक है कि महानगरों के बीच तेज रेल संपर्क स्थापित हो। यूरोप के तमाम देशों के साथ-साथ जापान, दक्षिण कोरिया और चीन ने भी ऐसी ट्रेनें विकसित कर ली हैं जो एक घंटे में दो से तीन सौ किलोमीटर की दूरी तय करती हैं, जबकि भारत में ट्रेनें आज भी इतनी दूरी तय करने में तीन-चार घंटे लगाती हैं। इससे न केवल लोगों के समय की बर्बादी होती है, बल्कि उत्पादकता भी प्रभावित होती है। आज समय ही सबसे अधिक मूल्यवान है। समय की बचत लोगों को सहूलियत देने के साथ आर्थिक रूप से भी लाभकारी है। बुलेट ट्रेन का किराया सामान्य ट्रेनों से अधिक, लेकिन हवाई सफर की तुलना में कम होगा। चूंकि ईंधन की खपत भी हवाई जहाज के ईंधन से कम होगी इसलिए बुलेट ट्रेनें पर्यावरण को साफ-स्वच्छ रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगी।
यह आश्चर्यजनक है कि विपक्षी दलों के कई नेता बुलेट ट्रेन परियोजना की आलोचना कर रहे हैं। उनकी दलील है कि करीब एक लाख करोड़ रुपये की इस परियोजना से गरीबों को कोई फायदा नहीं मिलने वाला। यह एक कुतर्क के अतिरिक्त और कुछ नहीं। एक तो इस परियोजना की ज्यादातर लागत जापान वहन कर रहा है। उसने जिन आसान शर्तों में भारत को कर्ज दिया है उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। बुलेट ट्रेन को अभिजात्य वर्ग के लिए उठाया गया कदम बताकर विपक्षी नेता कुल मिलाकर अपनी संकीर्ण सोच का ही प्रदर्शन कर रहे हैं।
अपने देश की यह एक बड़ी विडंबना है कि राजनीतिक स्वार्थ के कारण विकास से जुड़ी हर पहल को अमीर-गरीब के चश्मे से देखा जाने लगता है। देश का पीछा न तो जाति आधारित राजनीति से छूट रहा है और न ही अमीर बनाम गरीब की राजनीति से। हमारे औसत राजनीतिक दल देश को विकसित बनाने का ख्वाब तो दिखाते हैं, लेकिन जब आम जनता के लिए आमूल-चूल परिवर्तन की व्यवस्था की बात आती है तो गरीबों के नाम पर संकीर्ण राजनीति शुरू हो जाती है। आज जिस तरह का विरोध बुलेट ट्रेन के नाम पर किया जा रहा है वैसा ही कुछ दिल्ली मेट्रो के लिए भी किया गया था। दिल्ली में जब सार्वजनिक परिवहन के नए साधन के रूप में बिना किसी विदेशी निवेश के दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के सहयोग से मेट्रो की शुरुआत की जा रही थी तब उसका विरोध यह कहकर किया गया था कि इस पर तो अमीर लोग ही सफर करेंगे। आज 25 लाख से अधिक लोग मेट्रो में सवारी कर रहे हैं, जिनमें हर वर्ग के लोग शामिल हैं। कंप्यूटर के चलन के वक्त भी उसे गरीब विरोधी साबित करने की कोशिश की गई थी। इसी तरह जब हवाई सेवाओं की शुरुआत की जा रही थी तो भी उसे भारत जैसे देश के लिए अनुपयुक्त बताया गया था। सवाल यह है कि क्या आज हवाई सफर केवल अमीरों के लिए है और उससे गरीबों को कोई लाभ नहीं? सच यह है कि हवाई रूट के विस्तार और सस्ती उड़ान सेवाओं की शुरुआत के साथ एक बड़ी संख्या में आम लोग भी हवाई सफर करने लगे हैं।
आखिर राजनीतिक दल और खास तौर से कांग्रेस लोगों को उनकी गरीबी का अहसास दिलाकर क्या बताना चाह रही है? यह ठीक है कि भारत में अभी भी गरीबी है, पर लगातार यह कहते रहना कि तमाम व्यवस्थाएं केवल अमीरों के लिए हैं, कहीं न कहीं गरीब-वंचित आबादी को हतोत्साहित करना है। ध्यान रहे कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी एक समय यह तक कह चुके हैं कि सड़कों से गरीबों को कोई फायदा नहीं होता। ऐसे विचार कुल मिलाकर गरीबी को महिमामंडित करने और अमीर होने को एक बुराई के तौर पर चित्रित करने वाले हैं। शायद यही कारण है कि बात-बात पर यह कहा जाता है कि अमीर गरीबों को लूट रहे हैं। राजनेताओं द्वारा थोपी जा रही ऐसी ही मान्यताओं का दुष्परिणाम है कि अमीरों को गरीबों के विरोधी के तौर पर देखा जाना लगा है और इसी कारण किसी गाड़ी से किसी राहगीर या साइकिल सवार को हल्की टक्कर भी लग जाए तो उसे अमीर बनाम गरीब का मामला बना दिया जाता है। सभी को पता है कि अपने देश में किस तरह गरीबों के भले के नाम पर झुग्गी बस्तियों के विस्तार को मंजूरी दी जाती है या फिर सड़कों पर अतिक्रमण की अनदेखी की जाती है? बहुत समय नहीं हुआ जब गरीबों को फुसलाने के लिए रेलमंत्री के रूप में लालू यादव ने गरीब रथ नाम से एक ट्रेन चलाई थी। यह नामकरण अमीर-गरीब की खाई को दिखाने वाला काम ही था, जबकि यह ट्रेन सभी के लिए थी।
नि:संदेह निर्धनों के उत्थान के लिए सरकार को खास ध्यान देने के साथ-साथ तमाम ऐसी योजनाओं पर बेहतर ढंग से कार्य करने की जरूरत है जिससे गरीबों का उत्थान हो सके, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि जब तक गरीबी दूर न हो जाए तब तक किसी तरह के कोई नए काम न किए जाएं। यह समझने की जरूरत है कि बुलेट ट्रेन जैसी परियोजनाएं भी गरीबों के उत्थान में सहायक बन सकती हैं, क्योंकि इससे विकास को नया आयाम मिलेगा और रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। चूंकि बुनियादी ढांचे को आधुनिक बनाने के काम में शुरुआत में बड़ी लागत आती है इसलिए आज कुछ लोगों को यह परियोजना महंगा सौदा लग सकती है, लेकिन देश के बेहतर भविष्य के लिए ऐसी परियोजनाओं को टाला नहीं जा सकता।

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं ]