डॉ. निरंजन कुमार

दुनिया के दिग्गज बुद्धिजीवियों में शुमार नोम चोम्स्की ने एक लेख में उन दस रणनीतियों का उल्लेख किया है जिन्हें दुनिया के विभिन्न नेताओं ने जनता को अपनी ओर मोड़ने के लिए धूर्ततापूर्वक इस्तेमाल किया है। इनमें पहली है ‘बरगलाओ और ध्यान भटकाओ’ और दूसरी ‘समस्या पैदा करो, समाधान देखा जाएगा।’ चोम्स्की की इन रणनीतियों का भारतीय राजनीति में किसी ने सर्वाधिक इस्तेमाल किया है तो वह हैं आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल। 2015 में दिल्ली की सत्ता संभालने के चंद दिनों बाद से ही केजरीवाल ने जिस तरह के आरोपों एवं मुद्दों से भटकाने और सिर्फ समस्याएं खड़ी करने वाली राजनीति शुरू की है उसकी नवीनतम कड़ी है इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से जुड़ा विवाद। केजरीवाल ने एक तरह से चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए ईवीएम में भाजपा द्वारा छेड़छाड़ और गड़बड़ी के आरोप लगाए हैं। उनसे पहले मायावती और फिर कांग्रेस भी यही राग अलाप चुके हैं। यहां कटघरे में भाजपा के साथ-साथ चुनाव आयोग भी है, क्योंकि चुनाव आयोग से बिना मिले भाजपा ईवीएम में अकेले इतने बड़े पैमाने पर गड़बड़ी नहीं कर सकती। आखिर इन आरोपों में कितना दम है?
हालिया विधानसभा चुनावों में करारी हार के बाद किसी भी हद तक जाकर अपनी राजनीतिक लिप्सा पूरी करने में केजरीवाल के साथ-साथ मायावती और कांग्रेस उन लोकतांत्रिक संस्थाओं को भी कुर्बान कर देने पर उतारू हैं जो भारतीय राज्यव्यवस्था की बुनियाद हैं। इन संस्थाओं में एक भारतीय चुनाव आयोग आजकल केजरीवाल के निशाने पर है। उन्हीं के सुर में मायावती, कांग्रेस के साथ-साथ समाजवादी पार्टी आदि के नेता भी सुर मिला रहे हैं। ये लोग आगामी चुनावों को ईवीएम की जगह मतपत्र वाली पुरानी प्रणाली से कराने की मांग कर रहे हैं जो समय, धन, ऊर्जा और मानव संसाधनों की दृष्टि से न केवल बहुत खर्चीली है, बल्कि उसमें गड़बड़ी की संभावनाएं अपेक्षाकृत ज्यादा हैं। केजरीवाल ने तो सीधे-सीधे आयोग को चुनौती देते हुए कहा कि वह 72 घंटों के लिए ईवीएम उनके हवाले कर दे फिर उनके एक्सपर्ट यह दिखा देंगे कि मशीन के साथ छेड़छाड़ कैसे की जाती है। यहां जान लिया जाए कि 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में जब केजरीवाल को कुल 70 सीटों में 67 सीटें मिली थीं तो यह परिणाम इन्हीं ईवीएम द्वारा आया था और उस समय भी केंद्र में भाजपा सरकार थी, लेकिन तब केजरीवाल को ईवीएम में दोष नजर नहीं आ रहा था। 1982 में पहली बार प्रयोग के बाद से ईवीएम द्वारा देश में अब तक ढेरों चुनाव संपन्न कराए जा चुके हैं। 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस नीत संप्रग को जब जीत मिली थी तब ईवीएम का ही उपयोग किया गया था। ध्यातव्य है कि 2004 में कांग्रेस की जीत के समय केंद्र में भाजपा नीत राजग की सरकार थी। उसी तरह 2007 में उत्तर प्रदेश के चुनाव में मायावती की बहुजन समाज पार्टी और 2012 में मुलायम की समाजवादी पार्टी की पूर्ण बहुमत से विजय के दौरान भी इन्हीं ईवीएम का उपयोग हुआ था।
हालांकि इन राजनीतिक पार्टियों के भ्रष्टाचार, गुंडाराज, भाई-भतीजावाद और जाति-मजहब की राजनीति से परेशान अवाम ने चुनावों में उनको माकूल जवाब दिया। केजरीवाल के संदर्भ में देखें तो 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में जनता ने उन पर बहुत विश्वास व्यक्त किया था, लेकिन केजरीवाल की सतत नकारात्मक राजनीति से उनका लगातार क्षरण हो रहा है। यह अकारण नहीं है कि 2015 के बाद से विभिन्न चुनावों में उन्हें लगातार शिकस्त मिल रही है। हालिया चुनावों में दिल्ली के बाद अपने सबसे मजबूत गढ़ पंजाब में केजरीवाल की पार्टी को अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई तो गोवा में वह अपना खाता भी नहीं खोल सकी। दिल्ली में एमसीडी चुनाव से पहले अपनी नाकामियों को छिपाने और जनता का ध्यान भटकाने के लिए केजरीवाल अब डुगडुगी पीट रहे हैं कि भाजपा सरकार ने ईवीएम में गड़बड़ी की है। इसी तरह कांग्रेसी नेता अपने नेतृत्व की कमजोरी, लचर सांगठनिक ढांचे और वैचारिक शून्यता आदि को ढंकने के लिए भटकाने वाला आरोप लगा रहे हैं।
इनके आरोप वास्तविकता की कसौटी पर खरे नहीं उतरते हैं। अगर भाजपा ने ईवीएम में गड़बड़ी की तो पंजाब में इसकी सबसे कट्टर प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस को अभूतपूर्व बहुमत क्यों मिला और भाजपा-अकाली गठबंधन तीसरे स्थान पर क्यों रहा? फिर गोवा और मणिपुर में भी कांग्रेस को सबसे ज्यादा सीटें क्यों मिलीं और भाजपा दूसरे स्थान पर क्यों रही? उसी तरह 2016 के विधानसभा चुनावों में भी भाजपा को केरल में एक सीट तो बंगाल में छह और तमिलनाडु में तो एक भी सीट हासिल न हो सकी। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाइ कुरैशी ने स्पष्ट कहा है कि एकाध इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन भले कभी-कभार खराब हो जाती है, लेकिन पूर्ण जांच के बाद ही चुनाव आयोग उनका उपयोग करता है। भाजपा ईवीएम में अकेले इतनी बड़ी गड़बड़ी नहीं कर सकती। इसके लिए उसे चुनाव आयोग और राज्य सरकार के तंत्र से मिलीभगत करनी होगी, लेकिन वर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी 2012 में कांग्रेस नीत संप्रग सरकार द्वारा नियुक्त किए गए थे न कि भाजपा सरकार द्वारा तो वहीं राज्य में भी अधिकतर सरकारें भाजपा विरोधी दलों की ही थीं। चुनाव आयोग ने ईवीएम में गड़बड़ी से इन्कार करते हुए एक वीडियो जारी किया है। वीडियो में स्पष्ट दिखाया गया है कि वर्तमान में प्रयुक्त ईवीएम में त्रिस्तरीय सुरक्षा प्रणाली लगी है और राजनीतिक पार्टियों के एजेंटों के सामने तीनों स्तरों की जांच में सही साबित होने पर ही इनका उपयोग किया जाता है। अंतत: आरोपों के जवाब में चुनाव आयोग ने चुनौती दी है कि लोग साबित करें कि मशीनों के साथ छेड़छाड़ की गई है। आयोग ने डेमो के लिए टेक्नोक्रेट, इंजीनियर, वैज्ञानिक और केजरीवाल समेत राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया है, लेकिन आयोग की इस चुनौती का जवाब देने की जगह केजरीवाल वही पुराना राग अलाप रहे हैं। सवाल है कि 72 घंटे में छेड़छाड़ और गड़बड़ी सिद्ध कर देने का दावा करने वाले केजरीवाल अब क्यों टालमटोल कर रहे हैं? क्या वह चोम्स्की द्वारा उल्लिखित रणनीति के तर्ज पर आगामी चुनावों को ध्यान में रखकर झूठा विवाद, हंगामा और बरगलाने वाली राजनीति ही कर रहे हैं? यह बात अन्य राजनीतिक दलों पर भी लागू होती है।
[ लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं ]