किसी की गलती के लिए क्षमा करना बहुत आसान भी है और कठिन भी। आसान इस मायने में कि क्षमादान से मनुष्यों के बीच तमाम द्वेष-द्वंद्व मिट जाते हैं, जबकि यह कार्य कठिन इसलिए है, क्योंकि हर किसी में क्षमा करने का गुण विद्यमान नहीं होता। क्षमा मांगना या क्षमा करना दोनों ही स्थितियों में मनुष्य को अपने अहं (इगो) को खत्म करना होता है, जो आज के भौतिकवादी युग में कठिन कार्य होता जा रहा है। हमारे समाज में असहिष्णुता व निष्ठुरता इतनी ज्यादा हावी होती जा रही है कि लोग क्षमा याचना और क्षमा दान में अपना अपमान समझते हैं। लोग यह मानने लगे हैं कि क्षमा मांगने और क्षमा करने वाला दोनों कमजोर हैं, जबकि सच्चाई इसके ठीक उलट है। क्षमा याचना और क्षमा दान से व्यक्ति कमजोर या दुर्बल नहीं होता, बल्कि ऐसा करने से दोनों ही पक्ष अहंकार की अग्नि में जलने से बच जाते हैं और दोनों पक्षों के बीच आत्मीयता पहले की अपेक्षा और ज्यादा प्रकट हो जाती है। सभ्य समाज में क्षमा याचना और क्षमा दान का विशेष महत्व है। जैन धर्म में बाकायदा क्षमा पर विशेष पर्व मनाया जाता है। अपने मन में छोटे-बड़े का भेदभाव न रखते हुए सभी से क्षमा मांगना ही इस पर्व का मुख्य उद्देश्य है।
क्षमा में बहुत बड़ी शक्ति होती है। क्षमा मनुष्य की मनुष्य के प्रति कृतज्ञता है, इसलिए क्षमा दान को वीरों का आभूषण कहा गया है। इसी तरह क्षमा याचना से मनुष्य का समस्त अहंकार समाप्त हो जाता है। क्षमा याचना के लिए मनुष्य में अपनी गलती, असफलता और कमजोरी को स्वीकार करने की क्षमता होनी जरूरी है। जैसे मनुष्य के मुंह से कोई अपशब्द निकल जाए तो वह उसे वापस नहीं ले सकता। मनुष्य के मुंह से निकला अपशब्द धनुष से निकले तीर के समान है, जो सामने वाले के शरीर में घाव करके ही रहेगा। इसलिए, जाने-अनजाने में अपशब्द बोलने के उपरांत यदि मनुष्य अपने किए पर शर्मिदा है, तो उसके लिए उसके पास क्षमा याचना के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। क्षमा याचना की सबसे ज्यादा जरूरत व्यक्तिगत जीवन में पड़ती है। असल में प्रत्येक मनुष्य अपने बारे में एक धारणा और विचारधारा बना लेता है और वह उसी के अनुसार व्यवहार करता है। वह मन ही मन यह तय कर लेता है कि लोग उसे किस रूप में देखें, उसके बारे में क्या सोचें और क्या कहें। जब कोई व्यक्ति उसकी स्व-धारणा को ठेस पहुंचाता है तो उसे अप्रिय लगता है।
[ महायोगी पायलट बाबा ]