पिछले दिनों मीडिया के एक हिस्से ने यह खबर दी कि अमेरिका और भारत संयुक्त नौसैनिक गश्ती अभियान शुरू करने के सिलसिले में वार्ता करने वाले हैं, जिसमें विवादित दक्षिण चीन सागर भी शामिल होगा। अमेरिका और भारत की सरकारों ने इस रिपोर्ट का जल्द ही खंडन कर दिया। वाशिंगटन की ओर से बयान में कहा गया कि अमेरिका और भारत एशिया में शांति, स्थिरता और समृद्धि लाना चाहते हैं। दोनों देर्श ंहद महासागर या दक्षिण चीन सागर में किसी भी तरह की संयुक्त समुद्री गश्त की योजना नहीं बना रहे हैं। नई दिल्ली की ओर से कहा गया कि सरकार की संयुक्त राष्ट्र के झंडे तले अंतरराष्ट्रीय सैन्य गतिविधि में शामिल होने की नीति में कोई बदलाव नहीं आया है। वहीं चीन की ओर से स्वाभाविक रूप से इस खबर पर तेजी से प्रतिक्रिया आई। उसने अमेरिका और भारत को चेतावनी देते हुए कहा कि बाहरी देशों को नौपरिवहन की स्वतंत्रता के नाम पर दक्षिण चीन सागर में सैन्य गतिविधियों को बढ़ावा देने, तटीय देशों की संप्रभुता और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने तथा इस क्षेत्र की शांति और स्थिरता को नुकसान पहुंचाने से बाज आना चाहिए।

हालांकि यह स्पष्ट है कि अमेरिका और भारत संयुक्त गश्त की योजना नहीं बना रहे हैं, लेकिन इस घटनाक्रम से यह संकेत मिला है कि एशिया के सामरिक परिदृश्य में इस विवादित मुद्दे पर भारत की स्थिति तेजी से मजबूत होती जा रही है। भारत की मजबूती के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं। स्वयं अमेरिका उसे प्रशांत क्षेत्र में कड़ी मुद्रा अख्तियार करने पर बल देता रहा है। इस क्षेत्र में अमेरिका की सैन्य प्रतिबद्धता में नाटकीय वृद्धि मोटे तौर पर चीन के वर्चस्व को कमजोर करने वाली है। चीन इन दिनों बड़ी सैन्य शक्ति बनता जा रहा है। पूर्व और दक्षिण चीन सागर में चीन के आक्रामक रुख के कारण सैन्य संतुलन में बदलाव अधिक खतरनाक प्रतीत होने लगा है। इस क्षेत्र में नौपरिवहन की स्वतंत्रता और विश्व की अबाध आवाजाही के लिए चीन का यह रुख चुनौती बनता जा रहा है। चीन के अधिकांश क्षेत्रीय संघर्ष पूर्व और दक्षिण चीन सागर के आसपास के क्षेत्रों में फैले हैं। वह अपनी नौसैनिक शक्ति के सहारे इन संघर्षों को दबाता रहा है। चीन की समुद्री रणनीति और उसकी बढ़ती क्षमता इस क्षेत्र में छोटी ताकतों को आसानी से हजम कर सकती है। चीन का एकसूत्रीय उद्देश्य अमेरिका जैसी बाहरी शक्तियों को इस क्षेत्र की हर गतिविधियों से बाहर रखना है ताकि वे समुद्री घटनाक्रम में प्रभावकारी भूमिका नहीं निभा सकें। चीन की इस पृष्ठभूमि के विपरीत एशिया को लेकर ओबामा की नीति कुछ अलग है। उन्होंने चीन को इस क्षेत्र में अपने पड़ोसियों के खिलाफ हथियारों की होड़ पैदा करने से बचने और एशिया प्रशांत के दूसरे देशों में अपने प्रति विश्वास बढ़ाने के लिए आगाह किया है ताकि वे बीजिंग की ओर से अभी और आने वाले दिनों में खतरा महसूस न करें। इसके जवाब में चीन ने अमेरिकी नौसैनिकों के दक्षिण चीन सागर के निकट चीनी क्षेत्र के आसपास जमावड़े की कोशिश के बाद वाशिंगटन पर नौपरिवहन की आजादी के नाम पर समुद्री वर्चस्व स्थापित करने का आरोप लगाया है।

अमेरिका ने भारत के साथ आकर्षक रणनीतिक सहयोग स्थापित किया है। खासकर चीन के तेज उत्थान के नकारात्मक प्रभावों को कुंद करने के लिए कुछ समुद्री क्षेत्रों में गश्त करने का फैसला किया गया। वाशिंगटन भारत को लगातार्र ंहद महासागरीय क्षेत्र में एक सुरक्षा जाल फैलाने के लिए प्रेरित कर रहा है। अमेरिका और भारत के बीच समुद्री सुरक्षा सहयोग एक रणनीतिक जरूरत हो गई है। खासकर चीन की बढ़ती ताकत को संतुलित करने के लिए यह जरूरी है। वाशिंगटन के अनुसार अमेरिकी रणनीर्ति ंहद महासागर में भारत की श्रेष्ठता सुनिश्चित करने में सहयोग देने और सामरिक साझेदारी को बढ़ावा देने की होनी चाहिए। चीन की चुनौतियों का जवाब देने में भारत के दबाव महसूस करने के अपने कारण रहे हैं। अदन की खाड़ी में समुद्री लुटेरों के खिलाफ चीनी ऑपरेशन पर सवाल उठते रहे हैं। इसके नाम पर दो सीमावर्ती युद्धपोत और एक टैंकर की तैनाती की आवश्यकता पर भारतीय नौसैनिक सवाल उठा रहे हैं। चीन मानता है कि हिंद महासागर एक भारतीय इलाका नहीं है। जिस प्रकार दोनों देशों के बीच इस क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत करने की होड़ मची है उससे इनके नौसैनिकों के बीच रस्साकशी बढऩे की आशंका है।

भारतीय नौसेना लंबे समय से समुद्री नीति को विस्तार देने पर बल देती रही है। उसकी महत्वाकांक्षा की जानकारी उसके नीतिगत दस्तावेजों से पता चलती है। इसके साथ ही भारत समुद्री क्षेत्र से जुड़े देशों के साथ भी अपनी समुद्री सक्रियता बढ़ाना चाहता है। भारतीय नौसेना के अधिकारी और समुद्री रणनीतिकार एक ऐसी रणनीति के पक्ष में हैं जिसका फैलाव दक्षिण चीन सागर और प्रशांत क्षेत्र के पूर्वी छोर तक हो। हाल में अमेरिका और भारत के संयुक्त घोषणापत्र में दक्षिण चीन सागर में नौपरिवहन की आजादी की बात दोहरायी गई है। यह इस बात का संकेत है कि क्षेत्रीय मुद्दों पर नई दिल्ली को वाशिंगटन के साथ जाने पर परहेज नहीं है। जापान, वियतनाम और फिलीपींस जैसे देशों के साथ भारत का जुड़ाव दिन-प्रतिदिन गहरा होता जा रहा है। भारत ने चीन के साथ विवाद के मामलों में वियतनाम और फिलीपींस का खुलेआम समर्थन किया है। भारतीय युद्धपोत दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में वियतनाम का दौरा करते रहे हैं। दोनों देशों ने बीजिंग की चेतावनी के बाद भी दक्षिण चीन सागर में मिलकर हाइड्रोकार्बन की खोज जारी रखी है। अमेरिका के साथ संयुक्त गश्त हो या नहीं, भारत पूर्वी एशिया में महत्वपूर्ण भूमिका अख्तियार कर रहा है। अब यह नई दिल्ली और वाशिंगटन के ऊपर है कि वे इसका किस तरह फायदा उठाते हैं।

[लेखक हर्ष वी. पंत, लंदन के किंग्स कॉलेज में प्रोफेसर हैं]