नई दिल्ली [ निर्मल गुप्त]। हाल में दो बड़ी बातें हुईं। अलग-अलग आकार-प्रकार की दो उदास सूचनाएं मिलीं। एक खबर तो यह रही कि छोटी बचत पर ब्याज दर घटी और दूसरी यह कि फेसबुक खाता खोलने के लिए अब आधार जरूरी हो सकता है। शायद इससे आधार विरोधी तबके को उसके खिलाफ आंदोलन को धार देने के लिए एक और मुद्दा मिल जाए। खैर, ब्याज दर में घटौती को लेकर अधिकांश लोग यह सोचकर अधिक चिंतित नहीं हुए कि ‘माया महाठगिनी हम जानी। धन तो निरी मोहमाया है जी।’ लोगों ने इसे मुल्क के सर्वांगीण विकास में अपना किंचित योगदान या प्रारब्ध मानकर चुप्पी साध ली। वैसे भी सयाने बता चुके हैं कि आशंकाओं से मुंह मोड़ लेने से आगामी हानिकारक दंश का असर कुछ कम हो जाता है। कभी-कभी आसन्न विपत्तियां टल भी जाती हैं। इस सत्य को टिटहरी और शतुरमुर्ग भली प्रकार पहले से ही जानते और मानते रहे हैं। बेबसी में मौन हमेशा ही बड़ा कारगर होता है। ऐतिहासिक चालाक चुप्पियों के हुनरमंद इस्तेमाल की वीरगाथाओं से इतिहास के पन्ने भरे पड़े हैं। उपयुक्त समय पर धारण की गई उचित खामोशी अंतत: आपातकाल की त्रासदी को भी अनुशासन पर्व में तब्दील करती देखी सुनी गई है।

फेसबुक खाते को आधार से जोड़ना अनिवार्य
दूसरी ओर यदि फेसबुक खाते को आधार से जोड़ना अनिवार्य हुआ तो इससे तमाम लोगों का मिजाज बिगड़ सकता है। इसकी आशंका ने ही किस्म-किस्म के विमर्शवादियों को हिलाकर रख दिया है। उन्हें लग रहा है कि हाय अब क्या होगा, उनका तो सारा मेकअप ही सरेआम धुल जायेगा। आधार वाले अंगूठे की छाप तो उनका पूरा कच्चा- चिट्ठा खोलकर रख देगी। सबसे बड़ी बात यह है कि फेसबुक पर जब पिंकी की जगह बंता दिखेगा तो उसे कौन संता देखना चाहेगा? चुटकुले की दुनिया के हंसोड़ संता-बंता इस तरह के मजाक को शायद ही बर्दाश्त कर पाएं। सब जानते हैं कि अभी तक तो कोई रिंकी सोशल मीडिया पर ‘हैलो’ भी बोलती है तो कुछ ही समय में उसकी हिमायत में हजारों ‘वाह’ आननफानन में आ धमकती हैं। जबकि गंभीर टिप्पणियां कद्रदानों की बाट जोहती रहती हैं। पहले सरेआम हैलो-हाय, ओके-बाय आदि बोलने भर से सुंदरियां बदनाम हो जाया करती थीं। पर अब वक्त बदल चुका है। अब तो ‘हैलो’ सुनते ही उसके इर्दगिर्द दिल के निशान वाले लाइक्स की स्टेट्स पर इतनी गहमागहमी हो जाती है कि खुले बाजार में नर्म मासूम दिलों की किल्लत हो जाने की बात सुनी गई है। वाकई, आजकल दिल देह के भीतर कम सोशल मीडिया पर अधिक धड़कते पाए जाते हैं। यही जगह दिल के विपणन का सबसे सस्ता और सहज उपलब्ध वायदा बाजार है।

आभासी दुनिया पर शिनाख्त बदलने का खेल
आभासी दुनिया पर शिनाख्त बदलने का जो खेल होता है, वह बेमिसाल है। लाइक्स बटोरने के फेर में तमाम लड़के लड़कियां बने फिरते हैं। हालांकि वह रोटी के उस खेल से इतर होता है, जिसकी निशानदेही कवि धूमिल ने कभी की थी। यह रहस्य अब उजागर हो चुका है कि रोटी बेलने, उसे खाने और उससे खेलने वालों के अलावा एक तबका ऐसा भी है जो दिल को इधर-उधर लगातार चिपकाते रहने में सदैव सुकून पाता है। अभी तो निजी जानकारी में थोड़ी-सी हेराफेरी करके कोई भी सरलता के साथ परकाया प्रवेश कर सकता है। कोई भी लल्लू-जगधर बिग बी या किंग खान बन सकता है। या फिर कोई भी ऐश्वर्या बन सकती है। मोहल्ला स्तर का छिछोरा नेशनल लेवल का दरवेश बन जाता है। पहचान में जरा सी घालमेल और प्रोफाइल पिक में थोड़ी सी फोटोशॉप आदमी को क्या से क्या बना सकती है। देखते ही देखते जेंडर तक बदला जा सकता है। रूप रंग रूपांतरित हो सकता है। बीत गया वक्त और रीत गया यौवन पूरी आन-बान-शान के साथ यकायक वापस लौट सकता है।

वास्तविकता की जमीन बड़ी बेरंग और खुरदरी होती है

वॉटर ऑफ इंडिया वाले जादुई मटके में से कलकल करता जल बार-बार उलीचे जाने के बावजूद बहता ही जाता है। वास्तविकता की जमीन बड़ी बेरंग और खुरदरी होती है। उस पर नंगे पांव चलते हुए यथार्थवादी कंकड़ बेतहाशा चुभते हैं। फेसबुक ही वह उड़न खटोला है जो अपने खाताधारक को उसकी पहचान और समय के आरपार ले जाता है। इसके जरिये ही साठ पार का आदमी वयसंधि की दहलीज पर खड़े हठीले युवकोचित सपने इत्मिनान से देख लेता है और जीवन के पचास से अधिक बसंत निहार चुकी चिरयुवती एकदम हाईफाई टीनएजर टाइप की बन जाती है।

आधार के जरिये सेंधमारी न करें
फेसबुक खाता यदि आधार से जुड़ा तब तो सारी पोल ही खुलकर रह जाएगी। सारे किए धरे पर पानी ही फिर जाएगा। पता लगेगा कि जिसे वे षोडशी समझ प्यार और मनुहार के पेंच लड़ाने में रात-दिन मशगूल रहे, वह तो दरअसल कल्लू पतंगफरोश निकला जो गलाकाट चाइनीज मांझा और सस्ती, टिकाऊ व सुंदर पतंग बाजार में आ जाने के कारण लगभग बेरोजगार हो जाने की स्थिति के करीब है। वह अब या तो फेसबुक पर तरह तरह के भेष भरता है या तिमंजले पर चढ़कर अपने कबूतर उड़ाता और दूसरों के परिंदों को फंसाता है। ब्याज दर घटे तो घट जाए। माया भले मोहक हो, लेकिन है तो आनी जानी ही ना। आधार के जरिये मौज मस्ती के मूलधन में तो कम से कम कोई नाहक सेंधमारी न करें।


[ हास्य-व्यंग्य पर आधारित आलेख ]