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मुद्दा: अंतिम विकल्प हो विस्थापन

By Edited By: Published: Sun, 10 Jun 2012 01:25 PM (IST)Updated: Sun, 10 Jun 2012 01:28 PM (IST)
मुद्दा: अंतिम विकल्प हो विस्थापन

वैश्वीकरण और 'विकास के मॉडल' ने भूमि और मनुष्य पर जबर्दस्त दबाव डाला है। डेवलपर, उद्योग और नीति नियंताओं ने लोगों और पर्यावरण की अनदेखी करते हुए देश में बड़ी मात्रा में भूमि उपयोग को बदल डाला है। इन प्रोजेक्टों ने बड़ी संख्या में आबादी को विस्थापित किया है। उनके जीने के बुनियादी तौर-तरीकों को प्रभावित किया है। विकास के नाम पर विशेष आर्थिक क्षेत्र [एसईजेड] और टाउनशिप के निर्माण ने भू-माफिया को पैदा किया है। जिन लोगों को विस्थापित किया जा रहा है उनको यह बताया जा रहा है कि देश के विकास के नाम पर कुछ लोगों को तो कीमत चुकानी ही पड़ेगी।

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हर साल 10 लाख लोग अपने घर या जीविकोपार्जन से विस्थापित होते हैं। आजादी के बाद से यह आंकड़ा छह करोड़ तक पहुंच गया है। इसकी व्यापकता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया के 40 से भी ज्यादा देशों की आबादी 10 लाख से भी कम है।

इनमें से बड़ी तादाद ऐसे सबसे गरीब लोगों की है जो विस्थापन के कारण अपने घर और जीविकोपार्जन को खो बैठते हैं। आज वे लोग इस बात के लिए संघर्ष कर रहे हैं कि वे किसी अन्य के विकास के लिए अपने जीवन को नष्ट नहीं होने देंगे। इसीलिए 120 वर्ष पुराने औपनिवेशिक भूमि अधिग्रहण एक्ट पर बहस चल रही है और उसको बदला जा रहा है। नए कानून में पीड़ित व्यक्ति की सुरक्षा के भरोसे की भावना होनी चाहिए। इस नए कानून निर्माण में कई बुनियादी सिद्धांतों को शामिल किया जाना चाहिए।

विस्थापन अंतिम संभावित विकल्प होना चाहिए

यदि विस्थापन से किसी समुदाय पर गहरे नकारात्मक प्रभाव की आशंका हो तो ऐसे में अन्य विकल्पों पर विचार किया जाना चाहिए।

सरकार को उद्योग के लिए भू-अधिग्रहण नहीं करना चाहिए: लैंड एक्वीजिशन, रिहेबिलिटेशन एंड रिसेटलमेंट बिल, 2011 में स्टैडिंग कमेटी ने इस पर विशेष जोर दिया है।

पहले से सूचना: किसी भी प्रोजेक्ट को तब तक पास नहीं किया जाना चाहिए जब तक प्रभावित लोगों में से 80 प्रतिशत की सहमति नहीं मिल जाए।

पुनर्वास पैकेज: भूमि चाहे निजी सेक्टर या सरकार द्वारा खरीदी जाए लेकिन सभी प्रभावित लोगों के लिए अनिवार्य पुनर्वास और मुआवजा पैकेज होना चाहिए।

सभी खरीद और अधिग्रहण का नियमन: गरीब को भू-माफिया के भरोसे छोड़ देने की स्थिति स्वीकार्य नहीं की जा सकती। कानून द्वारा एक ऐसे स्वतंत्र नियामक का गठन किया जाना चाहिए जो कानून के मुताबिक काम करे।

स्टैडिंग कमेटी के परीक्षण के बिना संसद द्वारा पास किए जाने वाले एसईजेड पर तत्काल रोक लगाई जानी चाहिए। राष्ट्रीय विकास तभी हो सकता है जब सभी को लाभ मिले।

हमको यह एहसास करना चाहिए कि अधिकांश की कीमत पर कुछ लोगों को फायदा पहुंचाने वाला विकास मॉडल नहीं चलेगा। यदि हम अंतर्निहित एवं निर्वहनीय विकास चाहते हैं तो विस्थापन पर रोक एक महत्वपूर्ण कदम होगा।

-अरुणा रॉय और निखिल डे [दोनों मजदूर किसान शक्ति संगठन [एमकेएसएस] से जुड़े कार्यकर्ता हैं]

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