मुद्दा: न्यूनतम विस्थापन से विकास को मिले बढ़ावा
भारत जैसे विशालकाय देश के लिए विकास बहुत जरूरी है। भारी भरकम आबादी के कल्याण, उसकी क्षुधा शांत करने वाली रोटी, कपड़ा और मकान के इंतजाम के लिए तेज आर्थिक विकास अपरिहार्य है। विकास अगर समावेशी और चहुंमुखी हो तो उसका विकार समाज पर नहीं पड़ता है। मंत्र यही है कि कम से कम विस्थापन से विकास किया जाए।
इस समस्या को दूर करने के लिए एक ही रास्ता है कि किसी परियोजना के लिए जितनी जगह की जरूरत हो उसकी दस गुनी जमीन चिन्हित की जाए। चिन्हित की गई संपूर्ण जमीन में से परियोजना और ढांचागत विकास के लिए आवश्यक जमीन निकालकर शेष लगभग 80 प्रतिशत जमीन को उस क्षेत्र के सभी जमीन मालिकों में उनकी पहले की जमीन का अनुपात ध्यान में रखते हुए बांट दिया जाए। उदाहरण के लिए, 100 एकड़ की परियोजना के लिए उस क्षेत्रमें 1000 एकड़ भूमि चिन्हित की जानी चाहिए। इसमें से 100 एकड़ भूमि परियोजना के लिए एवं लगभग इतनी ही ढांचागत विकास के लिए अलग करके, बाकी बची 800 एकड़ भूमि को उस क्षेत्र के सभी भूमि मालिकों में आनुपातिक रूप से बांट दिया जाना चाहिए।
ऐसा करने से किसी भी व्यक्ति को अपनी जमीन से विस्थापित होकर दूर नहीं जाना पड़ेगा। किसी भी व्यक्ति की पूरी जमीन अधिग्रहीत नहीं होगी। उसी क्षेत्र में रहने से उन्हें विस्थापन का दर्द महसूस नहीं होगा। जितनी जमीन सरकार परियोजना एवं ढांचागत विकास के लिए अधिग्रहीत करेगी, उसका मुआवजा, नौकरी या अन्य सुविधाओं का लाभ भी उन्हें उस क्षेत्र में रहते हुए ही मिल सकेगा।
दुनिया भर में नगर नियोजन के लिए इस फार्मूले का उपयोग किया जाता है। लोगों की सुविधानुसार इस फार्मूले में थोड़ी-बहुत तब्दीली करके इसे विकास परियोजनाओं में भी लागू किया जा सकता है।
-चंद्रशेखर प्रभु [नगर नियोजन विशेषज्ञ]
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