प्रवासी मजदूरों की त्रासदी
पिछले दिनों पंजाब के लुधियाना शहर में एक भयानक त्रासदी हो गई। एक विशालकाय बहुमंजिला पुराना कारखाना जहां ऊनी और सूती कपड़े बनते थे, ताश के पत्तों की तरह भरभरा कर गिर गया, जिसमें अनेक लोगों की मौत हो गई। ये सारे के सारे दिहाड़ी मजदूर हैं जो रोजी-रोटी की खोज में पंजाब और हरियाणा के विभिन्न शहरों में बिना किसी रजिस्ट्रेशन के काम करते रहते हैं। अधिकतर मजदूर बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के हैं। इन दिहाड़ी मजदूरों की दयनीय दशा को देखकर केंद्र सरकार ने 1979 में इंटर स्टेट माइग्रेंट वर्कमेन कानून बनाया था, जिसमें देश के हर कारखाने के मालिक या खेतों के मालिक को कहा गया था कि वे हर मजदूर का रजिस्ट्ेशन कराएं। उन्हें पहचान पत्र दें और उनके रहने तथा चिकित्सा सुविधा की पूरी व्यवस्था कराएं। यदि संभव हो तो उनके छोटे बच्चों की शिक्षा का भी प्रबंध कराएं।
इसी कानून के अंतर्गत यह भी कहा गया था कि जो ठेकेदार बिहार, उत्तर प्रदेश या उड़ीसा जैसे राज्यों से दिहाड़ी मजदूरों को लाते हैं और उन्हें न्यूनतम मजदूरी देकर उनसे दिन-रात काम कराते हैं। उन ठेकेदारों का आवश्यक रूप से रजिस्ट्रेशन कराया जाए। इस बात की पूरी तहकीकात हो कि वे प्रवासी मजदूरों को उनकी उचित मजदूरी देते हैं अथवा नहीं? खासकर इस बात की भी जांच हो कि कहीं वे चोरी-छिपे बाल मजदूरों को भी तो काम पर नहीं लगाते हैं, परंतु कानून अपनी जगह रह गया और आज तक न तो कारखानों के मालिकों पर और न बड़े-बड़े किसानों पर कोई कार्रवाई हो सकी। बिहार में दिहाड़ी मजदूरी के मामले में स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ है, लेकिन लाखों लोग वहां अभी भी बेरोजगार हैं और रोजी-रोटी की तलाश में पंजाब, हरियाणा या दिल्ली आते हैं। अकेले लुधियाना शहर में 20 लाख प्रवासी मजदूर हैं, जो बिहार, झारखंड तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश से आए हैं। उनकी स्थिति अत्यंत ही दयनीय है। दिल्ली और आसपास के क्षेत्र नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गुड़गांव, बल्लभगढ़, फरीदाबाद और अन्य छोटे शहरों में इन दिनों युद्ध स्तर पर मकान बन रहे हैं। पूर्वी दिल्ली में तो गैर कानूनी कई मंजिले मकान सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से बनते रहते हैं। हाल के महीनों में कई बार ऐसा देखा गया है कि ये मकान रात के अंधेरे में भरभराकर गिर गए हैं, जिससे उसमें रहने वाले सैकड़ों लोग मलबे के नीचे सदा के लिए दब गए। उनके परिवार के लोगों को उनकी लाश तक नहीं मिली। जो लोग बचे रहे वे जाड़े के दिनों में खुले आसमान के नीचे महीनों दिन बिताते रहे। न तो सरकार ने और न किसी स्वयंसेवी संस्था ने उनकी कोई मदद की।
कुछ वर्ष पहले जब मैं लोकसभा का सदस्य था तब हरियाणा के एक गांव में बिहार के प्राय: एक दर्जन मजदूरों की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई थी। हुआ ऐसा था कि एक व्यक्ति के खेत में एक बहुत ही पुराना कुआं था। वर्षो से उस कुएं से कोई पानी नहीं निकाला गया था। जमींदार ने बिहार के एक प्रवासी मजदूर से कहा कि वह कुएं में जाकर यह पता लगाए कि उसमें कितना पानी है, जिससे मोटर लगाकर उस पानी को बाहर निकाला जा सके। कई घंटे तक जब वह मजदूर बाहर नहीं निकला तो उसके गांव के आठ-दस मजदूर एक-एक कर उस कुएं में गए और सब के सब कुएं में रह गए। तब फायर ब्रिगेड को बुलाकर कुएं में से जब उन्हें निकाला गया तो पता चला कि सभी प्रवासियों की मौत हो गई है। लोगों को शक हुआ कि शायद कुएं में जहरीले सांप हैं, परंतु पोस्टमार्टम के बाद यह पता चला कि कुएं में जहरीली गैस थी, जिसके कारण सभी की मौत हुई थी। पहले तो मैंने उस क्षेत्र के जिलाधीश को पत्र लिखकर पीड़ित परिवारों को मुआवजा दिलाने का आग्रह किया। जब एक महीने तक उनका कोई जवाब नहीं आया तब मैंने तत्कालीन मुख्यमंत्री भजनलाल को सारा विवरण लिखकर भेजा। उन्होंने तुरंत कार्रवाई की और पूरी जांच कराकर हर पीड़ित परिवार के आश्रितों को एक-एक लाख रूपये सरकारी मुआवजा दिया।
कहने का अर्थ है कि जहां भी बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के प्रवासी मजदूर हैं वहां आए दिन उनके साथ इस तरह दुर्घटनाएं घटती रहती है, परंतु मुआवजा केवल मुट्ठी भर लोगों को ही मिल पाता है और मुआवजे की बहुत बड़ी राशि दलाल उड़ा ले जाते हैं। बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में भयानक बेरोजगारी है और ऐसा देखा गया है कि नौकरी के अभाव में बीए और बीकॉम पास युवक भी दिहाड़ी मजदूर का काम करते हैं। वे दिहाड़ी पर मजदूरी इसलिए करते हैं कि यहां उन्हें कोई नहीं पहचानता है। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि यदि उन्हें पंजाब, हरियाणा या दिल्ली में मजदूरी नहीं मिलेगी तो वे झारखंड और बिहार जाकर वहां के नक्सलवादी कैंपों में शामिल होकर सरकार के खिलाफ हथियार उठा लेंगे। यह स्थिति अत्यंत ही चिंताजनक है। पंजाब के लोगों को तो सहानुभूतिपूर्वक प्रवासी मजदूरों के साथ न्याय करना चाहिए, क्योंकि पंजाब में हर दूसरे घर से कोई न कोई व्यक्ति कनाडा या अमेरिका गया हुआ है। इन देशों में जब फलों के पकने का मौसम आता है तब फलों को पेड़ों से तोड़ने के लिए और उन्हें डिब्बों में बंद कर देश में और देश के बाहर निर्यात करने के लिए बड़ी संख्या में पंजाबी मजदूर कनाडा और अमेरिका टूरिस्ट वीजा पर जाते हैं और फलों का मौसम समाप्त हो जाने के बाद भारत लौट जाते हैं। उन्हें विदेशों में हर तरह की सुविधा मिलती है। अत: उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि देश के गरीब राज्यों से जो प्रवासी मजदूर पंजाब आते हैं उनके साथ न्याय हो। उन्हें उचित मजदूरी मिले। उनके आवास और स्वास्थ सेवा का पूरा प्रबंध हो और कोई दुर्घटना होने पर उनके परिवार वालों को उचित मुआवजा मिले।
[गौरीशंकर राजहंस: लेखक पूर्व सांसद एवं पूर्व राजदूत हैं]
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