Move to Jagran APP

फायदे से ज्यादा नुकसान

निश्चित रूप से 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर केंद्रीय करों का एक बड़ा हिस्सा राज्यों को हस

By Edited By: Published: Wed, 08 Apr 2015 04:39 AM (IST)Updated: Wed, 08 Apr 2015 04:39 AM (IST)
फायदे से ज्यादा नुकसान

निश्चित रूप से 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर केंद्रीय करों का एक बड़ा हिस्सा राज्यों को हस्तांतरित किए जाने का निर्णय एक बड़ा कदम है, जो हाल में पेश किए गए बजट का मुख्य बिंदु रहा है। वित्त आयोग ने सुझाव दिया था कि केंद्र द्वारा वसूले जाने वाले करों का 42 फीसद हिस्सा राच्यों को दे दिया जाए। अभी तक केंद्र द्वारा राच्यों को 32 प्रतिशत हिस्सा ही दिया जाता रहा है। परंपरागत तौर पर वित्त आयोग एक संवैधानिक निकाय है, जो संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत गठित किया जाता है। इसलिए राच्यों के संदर्भ में आयोग जो भी कर अनुपात निर्धारित करता है उसे केंद्र सरकार मानने के लिए बाध्य होती है। वित्त आयोग की सिफारिशों को स्वीकार करने का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद ले रहे हैं मानों उन्होंने कोई बड़ा काम कर दिया हो। यहां यह भी सही है कि कर अनुपात को लेकर एक सदस्य ने असहमति भी जताई और उनका सुझाव था कि यह अनुपात 42 फीसद न होकर 38 फीसद रखा जाना चाहिए, लेकिन चार अन्य सदस्य इसे अधिक बढ़ाए जाने के पक्ष में थे। इसलिए केंद्र के पास इसे स्वीकार करने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं था। इस बदलाव के बारे में वित्त आयोग के चेयरमैन डॉ. वाइवी रेड्डी ने स्वयं स्वीकार किया है कि यह फैसला मात्रात्मक न होकर गुणवत्तापूर्ण है।

loksabha election banner

यदि समग्र रूप में देखा जाए तो इससे राच्यों को लाभ नहीं हुआ है। ऐसा इसलिए, क्योंकि केंद्र द्वारा राच्यों को हस्तांतरित किए जाने सभी संसाधनों में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है, लेकिन जैसा कि डॉ. रेड्डी ने अपने दिए गए कुछ साक्षात्कारों में कहा है कि राच्यों को हस्तांतरित की जाने वाली राशि के संदर्भ में यह एक बुनियादी बदलाव है। इसका आशय यही है कि राच्यों के पास अपने खर्च के लिए अधिक राशि होगी और वे अपनी जरूरतों और समस्याओं के समाधान के मद्देनजर जैसा चाहेंगे वैसा खर्च कर सकेंगे। इसके साथ ही साथ राच्यों में नियोजन अथवा नीति निर्माण अधिक महत्वपूर्ण होगा। यह इसके बावजूद होगा कि प्रधानमंत्री ने अपनी जिद और सोच के चलते योजना आयोग को खत्म कर दिया है। जो भी हो, राच्यों को अधिक हिस्सेदारी के संदर्भ में वित्त आयोग की सराहना करनी होगी और ऐसा हो भी रहा है, लेकिन स्वाभाविक तौर पर प्रधानमंत्री इसका श्रेय लेने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि यह सुझाव जनवरी 2013 में संप्रग सरकार के समय में गठित वित्त आयोग का है। इसमें कहीं कोई संदेह नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी अपने जिस सहयोगात्मक संघवाद के मंत्र का बार-बार उल्लेख कर रहे हैं उसे 1996-97 में संयुक्त मोर्चा गठबंधन सरकार के रूप में बहुत कम समय के लिए सत्ता में रही एचडी देवगौड़ा सरकार ने सबसे पहले दिया था। यह विचार अब अधिक लोकप्रिय हो रहा है। वास्तव में फरवरी 1997 में संयुक्त मोर्चा सरकार के बजट में एकल और करों के विभाजक पूल का विचार दिया गया था, जिसे 10वें वित्त आयोग की सिफारिशों में स्वीकार किया गया। इसके तहत ही राच्यों को केंद्रीय करों में 29 फीसद हिस्सा दिया जाना सुनिश्चित हुआ। राच्य आमतौर पर खुद को मिलने वाले हिस्से के द्वारा पूर्ववर्ती वित्त आयोग के फैसलों की तुलना करते हैं कि उन्हें लाभ हुआ अथवा नुकसान।

यदि कठोरता के साथ कहा जाए तो यह नजरिया सही नहीं, क्योंकि अलग-अलग वित्त आयोगों ने अलग-अलग राच्यों को दिए जाने वाले इस अनुपात का निर्धारण अलग-अलग फार्मूले के आधार पर किया है। 14वें वित्त आयोग द्वारा इस्तेमाल किया गया फार्मूला वही नहीं है जो उसके पूर्ववर्ती वित्त आयोग ने किया था। उदाहरण के तौर पर डॉ. रेड्डी आयोग ने वन आच्छादित क्षेत्र के आधार पर 7.5 फीसद का लाभ दिया है, जो कि 13वें वित्त आयोग द्वारा नहीं किया गया था। इसके परिणामस्वरूप उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे कम वन रखने वाले कुछ बड़े राच्य शिकायत कर रहे हैं कि वर्तमान केंद्रीय कर हस्तांतरण व्यवस्था से उन्हें नुकसान हुआ है। यह हुआ है, लेकिन मूल्यांकन के आधार में भी बदलाव हुआ है।

यह कहना गलत नहीं होगा कि 42 फीसद हिस्सा मिलने की ऊंची कीमत भी चुकानी पड़ी है। और यह सब केंद्रीय बजट में कुछ महत्वपूर्ण विकास परियोजनाओं और कार्यक्त्रमों में धन आवंटन में कमी के रूप में किया गया है। कुछ कार्यक्त्रमों के लिए धन आवंटन में तीव्र कटौती की गई है। कुछ योजनाएं जैसे पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष के तहत दी जाने वाली राशि को पूर्णतया खत्म कर दिया गया है। इसके तहत बिहार को राच्य के बंटवारे के बाद क्षतिपूर्ति के तौर पर 30 फीसद राशि मिलती थी। निश्चित तौर पर धारणा यही है कि राच्य इस क्षति से शीघ्र ही बाहर निकल आएंगे और संभवत: वर्ष के अंत तक इस कार्यक्त्रम अथवा योजना के तहत कुल राष्ट्रीय खर्च में यदि इजाफा नहीं होता तो कम से कम पूर्व की स्थिति बहाल हो जाएगी। इसी तरह लोगों पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालने वाली योजनाएं जैसे राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाइ), समन्वित बाल विकास सेवा और मध्याह्न भोजन अथवा मिड-डे मील योजना राशि में भी कटौती की गई है। आश्चर्यजनक रूप से स्वच्छता एवं पेयजल मंत्रालय के बजट को भी आधे से कम कर दिया गया है। स्वच्छ भारत मिशन के लिए दी जाने वाली राशि में कटौती की गई है। सवाल है कि क्या केंद्र की अपेक्षाएं पूरी होंगी और क्या राच्य वास्तव में अपने खचरें में बढ़ोतरी कर पाने में समर्थ होंगे? इसका पता अगले वर्ष ही चल पाएगा। दुर्भाग्य से बजट में ऐसा कोई संस्थागत तौर-तरीका नहीं है जिससे खचरें की समीक्षा और निगरानी हो सके ताकि समय रहते जरूरी कदम उठाए जा सकें। नीति आयोग से ऐसी अपेक्षा की जा सकती थी, लेकिन ऐसा लगता है कि यह केवल थिंक टैंक के रूप में काम करेगा। यही कारण है कि योजना आयोग की कमी केंद्र और राच्य, दोनों महसूस करेंगे।

14वें वित्त आयोग में जाने-माने अर्थशास्त्री डॉ. अभिजीत सेन ने इस संदर्भ में अपनी चिंता जताई है, लेकिन इसे अनसुना कर दिया गया। यहां हमें नहीं भूलना चाहिए कि केरल और तमिलनाडु जैसे राच्यों ने सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में खर्च के मामले में नई दिशा दिखाई है, जिसे अन्य राच्यों द्वारा भी अपनाया गया है। विशेषकर गरीब राच्यों में ऐसे खचरें में बढ़ोतरी की गई, क्योंकि केंद्र द्वारा चलाई जाने वाली ऐसी योजनाओं में राच्यों की भी भागीदारी होती है। शिक्षा का क्षेत्र इस मामले में प्रमुख उदाहरण है। 1980 के मध्य से ही केंद्र इस मद में भागीदारी करता रहा है। अब स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी इसकी शुरुआत को देखा जा सकता है, लेकिन स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के बजट में कटौती की गई है, जिसका विपरीत प्रभाव होगा। सहयोगात्मक संघवाद बहुत अच्छी बात है, लेकिन कई छोटे और गरीब राच्यों में 2015-16 में इसका तात्कालिक प्रभाव योजनाओं की शून्यता के रूप में दिख रहा है।

[लेखक जयराम रमेश, पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं]


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.