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सार्क यात्रा के बहाने

पिछले साल अगस्त में भारत ने अपनी विदेश सचिव सुजाता सिंह का पाक दौरा रद कर बिल्कुल सही किया, क्योंकि

By Edited By: Published: Thu, 05 Mar 2015 08:05 AM (IST)Updated: Thu, 05 Mar 2015 05:57 AM (IST)

पिछले साल अगस्त में भारत ने अपनी विदेश सचिव सुजाता सिंह का पाक दौरा रद कर बिल्कुल सही किया, क्योंकि सुजाता सिंह के इस्लामाबाद रवाना होने से तुरंत पहले पाकिस्तान के उच्चायुक्त ने हुर्रियत नेताओं से मुलाकात की थी। जब भी कभी ऐसी अधिकारिक वार्ताओं का समय आता है तो पाकिस्तान अधिकारी हमेशा हुर्रियत नेताओं से मिलते हैं। वे यह आभास देना चाहते हैं कि कश्मीर मुद्दे पर हुर्रियत भी एक पार्टी है। पहले की तमाम सरकारें पाकिस्तान के इस रवैये की अनदेखी करती रही हैं। हालांकि यह इस सिद्धांत कि खिलाफ था कि कोई भी सरकार आधिकारिक यात्राओं के दौरान दूसरे देश के अलगाववादियों के साथ वार्ता नहीं करेगी। इसका श्रेय मोदी सरकार को जाता है कि विदेश सचिव जयशंकर की इस्लामाबाद यात्रा से पहले किसी पाकिस्तानी अधिकारी या नेता ने हुर्रियत नेताओं से बातचीत नहीं की। इससे पता चलता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पाकिस्तान को जो संदेश देना चाहते थे, वह उसे मिल गया है। वास्तव में, पाकिस्तानी सामाजिक और व्यक्तिगत कारणों से हुर्रियत से मिल सकते हैं, किंतु ऐसा संकेत नहीं मिलना चाहिए कि भारत-पाक संबंधों में किसी भी तरह से वह भी एक पार्टी है।

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पाकिस्तानी अधिकारियों और नेताओं के बयानों से यह स्पष्ट हो जाता है कि उनके लिए इस यात्रा के तीन उद्देश्य हैं। हुर्रियत से न मिलने के बावजूद पहला संकेत यह है कि पहल भारत की तरफ से की गई है। पाकिस्तान का मानना था कि पिछले साल अगस्त में विदेश सचिव की यात्रा भारत ने रद की थी इसलिए अब पहला कदम भारत को ही उठाना होगा। यद्यपि नरेंद्र मोदी ने जयशंकर को सार्क यात्रा पर भेजा है, पर असलियत यही है और आम धारणा भी यही है कि यह यात्रा पाकिस्तान से वार्ता प्रक्रिया की शुरुआत के मद्देनजर की गई है। खतरा यह है कि इससे पाकिस्तान को यह संकेत मिल रहा है कि तमाम पूर्ववर्तियों की तरह मोदी भी झुकने के लिए तैयार हैं। इसका मतलब यह है कि तमाम कठोर बयानबाजी के बावजूद भारत आतंकवाद जैसे मुद्दे पर लचीला रुख अपनाता रहेगा। पाकिस्तान के नजरिये से यात्रा का दूसरा उद्देश्य भारत-पाकिस्तान वार्ता के ढांचे को बनाए रखना है। दोनों देशों के बीच वार्ता प्रक्रिया 1998 में शुरू हुई थी और इसमें आठ विषय शामिल किए गए हैं। इनमें जम्मू-कश्मीर, शांति-सुरक्षा, आतंकवाद, सियाचीन का मुद्दा, सर क्रीक और तुलबुल नौवहन परियोजना शामिल हैं। इसके अलावा इसमें व्यापार और व्यक्ति से व्यक्ति का संपर्क स्थापित करना भी सम्मिलित है। पाकिस्तान के लिए सबसे महत्वपूर्ण विषय हैं- जम्मू-कश्मीर और सियाचिन। पाकिस्तान यहां कुछ ऐसे बदलाव चाहता है जो उसके अनुकूल हों। वह चाहता है कि भारतीय सैनिक सियाचिन क्षेत्र से पीछे हट जाएं। उम्मीद के मुताबिक पाकिस्तान ने जयशंकर से कहा है कि वह नहीं चाहता कि वार्ता प्रक्रिया में खलल पड़े। पाकिस्तान के दृष्टिकोण से यात्रा का तीसरा उद्देश्य भारत के साथ-साथ अपने देशवासियों को यह संकेत देना है कि वह जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा तथा अंतरराष्ट्रीय सीमा पर मजबूती से डटा रहेगा।

यह संदेश सार्वजनिक तौर पर जाहिर करने के लिए पाकिस्तान के सैन्य प्रमुख रहील शरीफ ने सियालकोट सेक्टर का दौरा किया और कहा कि भारतीय सैनिकों द्वारा की गई किसी भी गोलीबारी का पाकिस्तान मुंह तोड़ जवाब देगा। इससे पहले मोदी सरकार ने भी भारतीय सुरक्षाबलों को सैनिकों और नागरिकों पर पाकिस्तान द्वारा की जाने वाली गोलीबारी का पूरी ताकत से जवाब देने का निर्देश देकर बिल्कुल सही किया था। सरकार का यही रुख आगे भी बरकरार रहना चाहिए।

जयशंकर ने पाकिस्तानी समकक्ष एजाज अहमद चौधरी के साथ वार्ता करने के साथ-साथ प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से भी मुलाकात की। शरीफ ने उन्हें बताया कि दोनों देशों को उलझे हुए मामलों को सुलझाने की दिशा में प्रयास करते रहना चाहिए। जयशंकर ने पाकिस्तान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज से भी मुलाकात की, जिसमें उन्होंने सुरक्षा के मुद्दे पर विचार-विमर्श किया। जाहिर है कि वार्ता के दौरान नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा के मुद्दे पर भी चर्चा हुई। दोनों पक्षों ने 2003 में हुए युद्ध विराम के पालन पर जोर दिया। जयशंकर ने दृढ़ता से कहा कि पाकिस्तान अपने सैनिकों पर नियंत्रण रखे और भारतीय सैनिकों व नागरिकों पर गोलीबारी कर भारत को उकसाने का काम न करे। अगर ऐसा हुआ तो इसका मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। इस्लामाबाद को यह बताना हमेशा जरूरी होता है कि पाकिस्तान से सौहार्दपूर्ण संबंध विकसित करने की भारत की इच्छा का मतलब यह नहीं कि वह अपने नागरिकों और सैनिकों की हत्या को बर्दाश्त कर लेगा।

पाकिस्तान ने कश्मीर के साथ-साथ बलूचिस्तान और समझौता एक्सप्रेस का मुद्दा उठा कर फिर से पुरानी तान छेड़ दी। इसके अलावा भारत से जम्मू-कश्मीर में सैनिकों की संख्या को घटाने को कहा। पाक ने कश्मीर घाटी में भारतीय सेना द्वारा किए गए कथित मानवाधिकार उल्लंघनों का मुद्दा भी उठाया। पाकिस्तान की यह कवायद घरेलू जनमत को पुष्ट करने की कोशिश थी, किंतु साथ ही वह यह भी दिखाना चाहता था कि वह कश्मीर की मुक्ति को समर्थन देना जारी रखेगा। पहली बार पाकिस्तान ने यह आरोप भी लगाया कि भारत डूरंड रेखा से लगे कबायली इलाकों में दखलंदाजी कर रहा है। जयशंकर ने पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का मुद्दा उठाया और मुंबई आतंकी हमले के मामले में पाकिस्तान की ओर से त्वरित कार्रवाई की जरूरत पर जोर दिया। हालांकि लगता नहीं है कि पाकिस्तान इस मुद्दे पर कोई ध्यान देगा, क्योंकि भारत के खिलाफ आतंकवाद उसका सामरिक सिद्धांत रहा है और लश्करे-तैयबा से उसके संबंधों को देखते हुए यह असंभव ही है कि वह मुंबई आतंकी हमले के मामले को तार्किक परिणति तक पहुंचाएगा। अगर भारत चाहता है कि पाकिस्तान आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करे तो उसे अन्य विकल्पों को आजमाना होगा। बातचीत में सार्क देशों के बीच व्यापक आर्थिक सहयोग और संपर्क के मुद्दे पर भी चर्चा हुई। इसकी संभावना नहीं है कि पाकिस्तान सार्क या फिर द्विपक्षीय स्तर पर व्यापार बढ़ाने पर राजी होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि पाकिस्तानी सेना को लगता है कि इससे भारत को फायदा होगा, जबकि असलियत यह है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पटरी से उतरी हुई है और व्यापारिक संबंध बढ़ाने का उसे ही अधिक लाभ होगा।

इस यात्रा के बाद दोनों देश विचार करेंगे कि वार्ता प्रक्रिया आगे कैसे बढ़े। इसका मतलब यह हुआ कि भारत को वार्ता प्रक्रिया के मुद्दे पर अपना रुख साफ करना होगा। इस परिप्रेक्ष्य में यह जरूरी हो जाता है कि भारत सियाचिन के मुद्दे को वार्ताओं से अलग कर दे। कोई भी भारत सरकार अपने सैनिकों को सियाचिन से वापस नहीं बुला सकती। खासतौर पर तब जब पाक अधिकृत कश्मीर के उत्तारी इलाकों में चीनी भी सक्रिय हैं। भारत का जोर मानवीय मुद्दों पर होना चाहिए जिससे सीधे-सीधे लोग और विशेष तौर पर मछुआरे जुड़े हुए हैं।

[लेखक विवेक काटजू, सामरिक मामलों के विशेषज्ञ हैं]


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