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    'आप' को छोड़ना होगा NGO वर्क कल्चर, डालनी होगी 'हार' की आदत

    By Amit MishraEdited By:
    Updated: Mon, 01 May 2017 05:38 PM (IST)

    नगर निगम में 'आप' दूसरे स्थान पर रही है, जबकि कांग्रेस तीसरे स्थान पर चली गई है। 'आप' को 45 सीटें मिली हैं, जबकि कांग्रेस को केवल 30 सीटें।

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    'आप' को छोड़ना होगा NGO वर्क कल्चर, डालनी होगी 'हार' की आदत

    नई दिल्ली [वी.के.शुक्ला]। आम आदमी पार्टी (आप) को हार की आदत डालनी होगी। 'आप' को एनजीओ की विचारधारा से बाहर निकलना होगा। अन्यथा इसे नुकसान के सिवाय कुछ नहीं मिलेगा। आज 'आप' ऐसा दल है जो राजनीतिक दल की तरह नहीं अभी भी एनजीओ की तरह काम कर रहा है। जिसमें उसे हर असाइनमेंट पर सौ फीसद परिणाम चाहिए।

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    पार्टी सूत्रों की मानें तो यह बात कई बार उठी है, मगर निचले स्तर तक ही रह गई। पार्टी नेतृत्व तक यह बात या तो पहुंची नहीं, या पहुंची भी तो इसे इस ढंग से प्रस्तुत ही नहीं किया गया कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर कुछ प्रभाव पड़े।

    प्रमुख मुद्दा यही है कि चीजों को पॉजिटिव क्यों न लिया जाए। जो समर्थन मिला है कि उसे कम क्यों आंका जाए? क्या किसी भी दल के लिए पहले पंजाब और फिर दिल्ली नगर निगम चुनाव में दूसरे दल के रूप में अस्तित्व स्थापित करना छोटी बात है? मगर पार्टी इसे मानने को तैयार नहीं है।

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    यहां तक कि पंजाब चुनाव परिणाम आने के बाद वहां की जनता से मिले समर्थन का धन्यवाद तक नहीं दिया गया। उस दिन पार्टी के बड़े नेता मीडिया के सामने आने से बच रहे थे, आखिर क्यों? शायद इसलिए क्योंकि यह दावा किया गया था कि 'आप' पंजाब जीत रही है। 

    2012 के बाद दिल्ली की राजनीतिक स्थिति का आंकलन करें तो 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में पहली बार चुनाव मैदान में आई आम आदमी पार्टी को 29.49 फीसद वोट मिले थे। इसके बाद 2015 में फिर हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव मे 'आप' का वोटिंग फीसद 25 फीसद बढ़कर 54.3 फीसद रहा। अब इस नगर निगम में 'आप' दूसरे स्थान पर रही है, जबकि कांग्रेस तीसरे स्थान पर चली गई है। 'आप' को 45 सीटें मिली हैं, जबकि कांग्रेस को केवल 30 सीटें।

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    आप के वरिष्ठ नेताओं को यह बात समझने की जरूरत है कि वे हर बार यही क्यों सोचने लगते हैं कि वे ही सभी सीटों पर जीतेंगे। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता की मानें तो 'आप' को 2013 से अब तक जितना जनसमर्थन मिला है राजनीतिक दलों को इसे पाने में उम्र निकल जाती है। कई उदाहरण सामने हैं। वह कहते हैं कि पहली बार लोकसभा चुनाव लड़े, पंजाब से 4 एमपी मिले।

    विधानसभा चुनाव में अकाली-भाजपा से आगे निकल कर आज पंजाब में पार्टी विपक्ष में है। दिल्ली नगर निगम चुनाव में पहली बार चुनाव लड़े और कांग्रेस को पछाड़ कर दिल्ली में 'आप' दूसरे नंबर की पार्टी बन गई है। आखिर यह उपलब्धि कम कैसे हुई? 

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