किफायत की दिशा में मोदी सरकार, जजों को सिडनी जाने की नहीं मिली मंजूरी
सरकार का मानना है कि अदालतों में मुकदमों का ढेर लगा हो तो एक ही हाई कोर्ट के कई जज एक ही कार्यक्रम में हिस्सा लेने को विदेश दौरे पर कैसे जा सकते हैं।

नई दिल्ली (माला दीक्षित)। केंद्र में सत्तासीन नरेंद्र मोदी सरकार के किफायत से चलने और खर्चों में कटौती का असर जजों के विदेशी दौरों पर भी दिख रहा है। सरकारी खर्च पर जजों के विदेशी दौरों पर भी लगाम लग रही है। हाल ही में सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट के जजों को कॉन्फ्रेंस में सिडनी जाने की मंजूरी नहीं दी।
सरकार का मानना है कि अदालतों में मुकदमों का ढेर लगा हो तो एक ही हाई कोर्ट के कई जज एक ही कार्यक्रम में हिस्सा लेने को विदेश दौरे पर कैसे जा सकते हैं। वो भी काम के दिनों में। सरकार ने मंजूरी के वक्त खर्चे का पहलू भी देखा।
ध्यान रहे कि सरकार मंत्रियों और नौकरशाहों के उन विदेशी दौरों पर पहले ही रोक लगा चुकी है जो देश के हित में बहुत जरूरी न हों। बात ये है कि दिल्ली हाई कोर्ट के चार-पांच न्यायाधीशों ने ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में महिला जजों कीकॉन्फ्रेंस में जाने के लिए सरकार से इजाजत मांगी थी। दौरे के दौरान कुछ दिन ऐसे भी आ रहे थे जिसमें कोर्ट खुला था।
सरकार ने अदालतों में मुकदमों के लगे ढेर और कोर्ट के खुले होने को देखते हुए दौरे की मंजूरी नहीं दी। सरकार के उच्चपदस्थ सूत्रों का कहना है कि जजों के विदेशी दौरों के बारे में गाइडलाइन तय हैं। इसके मुताबिक आधिकारिक दौरे पर जाने के लिए सबसे पहले संबंधित हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से अनुमति लेनी पड़ती है।
अनुमति लेते समय दौरे का पूरा विवरण देना होता है। जैसे, कहां से निमंत्रण है, किसने बुलाया है, कितने दिन का कार्यक्रम है, कौन उसे आयोजित कर रहा है.. आदि। मुख्य न्यायाधीश से इजाजत लेने के बाद सरकार से भी इजाजत लेनी पड़ती है। कानून मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और पीएमओ से मंजूरी मिलती है।
सूत्र बताते हैं कि इस मामले में एक ही कार्यक्रम में एक ही हाई कोर्ट के कई जज एक साथ विदेश दौरे पर जा रहे थे। सरकार ने इसे औचित्यहीन माना। वैसे भी निमंत्रण किसी विधायी संस्था से नहीं था और निमंत्रण व्यक्तिगत था।
सरकार का मानना है कि जब अदालतों में मुकदमों का इतना ढेर लगा है तो फिर जजों को काम के दिन में यहां रुक कर मुकदमें निपटाने चाहिए। कोर्ट और सरकार मिल कर ऐसे बहुत उपाय कर रहे हैं जिससे वादों की संख्या तेजी से घटे। एक साथ कई जजों के जाने से काम प्रभावित होगा।
दूसरी बात खर्च की भी है। एक ही कार्यक्रम में कई लोगों के जाने की क्या जरूरत है। सरकार का मानना था कि कम लोग जाने चाहिए, दौरे में जनता का पैसा खर्च हो रहा है।

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