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यहां ग्वालों की तरह गाय की सेवा करते हैं मुस्लिम युवक

दिल्ली में एक जगह ऐसी भी है जहां मुस्लिम युवक दिन-रात गाय की सेवा करते हैं।

By Amit MishraEdited By: Published: Wed, 10 Aug 2016 06:47 PM (IST)Updated: Thu, 11 Aug 2016 07:31 AM (IST)

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। दिल्ली में एक जगह ऐसी भी है जहां मुस्लिम युवक दिन-रात गाय की सेवा करते हैं। सुल्तानपुर डबास स्थित श्री कृष्ण गौशाला मेंं मुस्लिम युवकोंं की वजह से ही यह गौशाला सांंप्रदायिक सौहार्द की प्रतीक बन गई है। करीब 50 मुस्लिम युवक हिंदू ग्वालोंं की तरह यहां गायोंं की सेवा करते हैं।

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मुस्लिम धर्म से ताल्लुक रखने वाले लोग मानते हैं कि गाय के उत्पाद किसी व्यक्ति को स्वास्थ्य लाभ देते समय उसकी धर्म-जाति नहींं देखते तो पता नही इंसान इसकी सेवा करने में ऐसी सोच क्योंं रखता है। कहने को इस गौशाला के लिए सरकार की तरफ से भी पैसा मिलतेे हैं और जमीन भी सस्ती कीमत पर मुहैया कराई गई है, लेकिन इसके कुशल संचालन में गौ भक्तोंं की ही अहम भूमिका है।

श्री कृष्ण गौशाला की खासियतें

-ट्रस्ट की ओर से किया जाता है संचालन। इसमें करीब 250 ट्रस्टी है।
-करीब 37 एकड़ भूमि पर बनी इस गौशाला में 8300 गाय है।
-करीब पांच हजार नंदी है।
-104 शेडो में गो वंश का रखरखाव
-घायल व बीमार गायोंं को लाने के लिए लिफ्टयुक्त एंबुलेस सेवा
-280 अनुभवी गौ सेवक नियमित गौ सेवा के कार्य में कार्यरत
-गौ सेवको के लिए नि:शुल्क भोजनालय
-लगभग पचास हजार क्विंटल भूसा भंडारण की व्यवस्था।
-आठ हजार क्विंटल हरा चारा रोज काटकर खिलाने की है व्यवस्था।
--गौ दान व गाय पूजन की विशेष व्यवस्था
-खानपान व साफ सफाई के लिए 65 बैलगाड़ी, छह ट्रैक्टर व 15 साइकिल रिक्शा का नियमित प्रयोग होता है।

गोशाला ट्रस्ट के महासचिव संजय गर्ग के अनुसार बीमार बूढ़ी दुर्घटनाग्रस्त व कमजोर गोवंश की सभी प्रकार की जांच आधुनिक मशीनोंं से अनुभवी डाक्टर करते हैंं। एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड व आपरेशन थियेटर के साथ ही रक्त व पेशाब की सपूर्ण जांच के लिए लैब की सुविधा भी यहां मौजूद है। देशी गायोंं की नस्लोंं मेंं कैसे अधिक से अधिक सुधार हो, इस पर यहां अनुसंधान केंंद्र में रिसर्च भी होती है। अच्छी खुराक के साथ-साथ कृत्रिम व प्राकृतिक तरीके से गर्भाधान कराया जाता है।

गोभक्तो के लिए चल रही हैं कई योजनाएं

यूं तो दिल्ली सरकार से प्रतिदिन प्रति गाय 20 रुपये व नगर निगम से 20 रुपये के हिसाब से धनराशि मिलती रही है, लेकिन डेढ़ साल से वह भी कभी मिलती है तो कभी बंद हो जाती है। ऐसे में यहां गायोंं की सेवा गो भक्तोंं के सहारे ही हो रही है। इसके लिए कुछ योजनाएं भी चल रही है। गो गोद योजना के तहत बड़ी संख्या में गो भक्त 11 हजार रुपये प्रति गाय देकर गो माता के खानपान की एक साल की जिम्मेदारी लेते हैं। गो चिकित्सा योजना के तहत पांच सौ रुपये प्रति माह देकर गाय की सेवा में योगदान देने वालोंं की संख्या भी बहुत है।

1500 रुपये में चल रही गोसवामनी योजना के अनुसार गाय को 50 किलो अनाज, गुुड़, नमक, हल्दी, अजवायन, तेल, मेथी व जड़ी-बूटियोंं से युक्त सामग्री को पकाकर बनाई गई सवामनी को अपने हाथ से गाय को खिलाते हैं।गोशाला में गोलक पेटी, अंकुरित दाना एवं राम रोटी, गो ग्रास व गो संव‌र्द्धन आदि योजनाएं भी चल रही है।

आकर्षण का केंंद्र बनते हैंं पर्व

गोशाला से जुड़े मोहन गर्ग व कृष्ण कुमार चौधरी बताते है कि जन्माष्टमी, गोपाष्टमी, मकर संक्राति एवं गोवर्धन पूजा पर आयोजित किए जाने वाले समारोह यहां लोगो को अपनी ओर खींंच ही लाते हैंं।

पंचगव्य से होता है औषधियोंं का निर्माण

गौशाला के महाप्रबंधक राजेद्र सिंह शेखावत के अनुसार गाय के दूध, दही व घी व मक्खन के अलावा यहां पंचगव्य से मंजन, साबुन, उबटन, धूप, मच्छर निरोधक अगरबत्ती जैसे उत्पादो का निर्माण भी होता है। इन सभी की पैकिंग के लिए यहां आधुनिक सुविधाओंं से युक्त प्लांट भी लगे हैं। यहां से दूध, दही, घी, मक्खन, छाछ आदि की आपूर्ति नियमित तौर पर पंजाबी बाग, पीतमपुरा, रोहिणी व शालीमार बाग इलाकोंं में होती है।


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