बीसीसीआइ के जोनल रोटेशनल सिस्टम पर सवाल
बीसीसीआइ के मध्य क्षेत्र (जोन) में आने वाले विदर्भ क्रिकेट संघ के अध्यक्ष शशांक मनोहर के पूर्वी क्षेत्र के राज्य क्रिकेट संघों की मदद से बोर्ड अध्यक्ष बनने के बाद अब दुनिया के सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड के संविधान पर सवाल उठने लगे हैं।
अभिषेक त्रिपाठी, नई दिल्ली। बीसीसीआइ के मध्य क्षेत्र (जोन) में आने वाले विदर्भ क्रिकेट संघ के अध्यक्ष शशांक मनोहर के पूर्वी क्षेत्र के राज्य क्रिकेट संघों की मदद से बोर्ड अध्यक्ष बनने के बाद अब दुनिया के सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड के संविधान पर सवाल उठने लगे हैं।
बीसीसीआइ के संविधान के मुताबिक 2017 तक अध्यक्ष पद पर पूर्वी क्षेत्र की ही दावेदारी थी। बंगाल क्रिकेट संघ के पूर्व अध्यक्ष जगमोहन डालमिया पूर्व से ही थे। 2012 में बोर्ड के संविधान में संशोधन किया गया था। तब ये तय हुआ था कि जिस क्षेत्र की बारी है, अगर वहां से एक प्रस्तावक और अनुमोदक मिल जाए तो फिर किसी भी संघ से अध्यक्ष बन सकता है, लेकिन अब मांग ये उठने लगी है कि इस पूरे जोनल रोटेशनल सिस्टम को ही बदल दिया जाए।
बीसीसीआइ अध्यक्ष पद की कुर्सी संभालने के बाद मनोहर ने कहा कि बोर्ड बहुत बड़ी संस्था है।ये बड़ी कंपनी से भी बड़ी है, इसलिए जो सबसे बेहतरीन है उसे ही बोर्ड का मुखिया होना चाहिए। बोर्ड के कई पूर्व पदाधिकारियों को भी लगता है कि अब इस पूरे जोनल रोटेशनल सिस्टम में बदलाव की जरूरत है।
बोर्ड के पूर्व सचिव निरंजन शाह ने कहा कि मेरा व्यक्तिगत मत है कि जिस तरह बोर्ड का सचिव किसी भी संघ से हो सकता है, बोर्ड अध्यक्ष के लिए भी यही नियम होना चाहिए। अध्यक्ष पद के लिए हर क्षेत्र को एक-एक कर मौका दिया जाता है। दक्षिण क्षेत्र से एन. श्रीनिवासन अध्यक्ष बने थे और इस साल की शुरुआत में इस पद पर डालमिया पूर्वी जोन से चुने गए थे। 2012 में बोर्ड के संविधान में संशोधन मुख्यत: तब के नेता विपक्ष और वर्तमान में केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के लिए किया गया था। बोर्ड के अधिकतर सदस्य चाहते थे कि इस नियम के बाद वह अध्यक्ष पद पर बैठ सकेंगे और कम से कम छह साल तक इस पद पर बने रहेंगे। हालांकि केंद्रीय वित्त मंत्री बनने के बाद उन्होंने आधिकारिक रूप से बीसीसीआइ से किनारा कर लिया है, लेकिन अब भी बोर्ड में उन्हीं की चलती है।
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डालमिया के निधन के बाद पूर्वी क्षेत्र के सारे सदस्यों ने भले ही ऑन रिकॉर्ड मनोहर का समर्थन किया हो, लेकिन ऑफ द रिकॉर्ड कई राज्य क्रिकेट संघों के अधिकारियों ने नाराजगी जताई है। एक अधिकारी ने कहा कि ऐसे नियम का क्या फायदा जिससे कुछ ही लोग बोर्ड अध्यक्ष बनते रहें। इससे तो दूसरे राज्य क्रिकेट संघों को प्रतिनिधित्व का मौका ही नहीं मिलेगा।