टेस्ट क्रिकेट को बचाने के लिए बदलना होगा रवैया
पांच दिन तक चलने वाला टेस्ट मैच कई बार ड्रॉ या बिना परिणाम के ही खत्म हो जाता है।
(सुनील गावस्कर का कॉलम)
आज टेस्ट क्रिकेट सभी के बीच लोकप्रिय होने के लिए संघर्ष कर रहा है। युवा पीढ़ी को एक्शन से भरपूर टी-20 मैच पसंद आते हैं, जिसका परिणाम न महज तीन घंटे के भीतर आ जाता है, बल्कि इतने समय में ढेर सारा रोमांच भी होता है। जबकि पांच दिन तक चलने वाला टेस्ट मैच कई बार ड्रॉ या बिना परिणाम के ही खत्म हो जाता है।
अच्छी बात है कि भारतीय खिलाडि़यों को यह पता है कि टेस्ट क्रिकेट में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद ही उन्हें पहचान मिलेगी। मगर वेस्टइंडीज के खिलाडि़यों के लिए यह नहीं कहा जा सकता, जो टी-20 क्रिकेट खेलकर पैसा कमाकर खुश रहना ज्यादा पसंद करते हैं। वो पांच दिन केटेस्ट मैच का तनाव नहीं लेना चाहते। कुछ हद तक यह समझा जा सकता है, क्योंकि कैरेबियाई द्वीप में रोजगार के अवसर बहुत ज्यादा नहीं हैं, इसलिए मौके का पूरा फायदा उठाना समझ में आता है। इसके अलावा कार्यक्रम भी टेस्ट क्रिकेट के लिए मददगार साबित नहीं हो रहा है और यहां पर प्रशासन को कुछ करना चाहिए। भारतीय दौरे का आयोजन बहुत देर के बाद किया गया था, इसलिए कैरेबियाई प्रीमियर लीग से टकराव को टालना मुश्किल था, लेकिन अगर खिलाडि़यों से बात करके कार्यक्रम तैयार किया जाता, तो इस टकराव को आसानी से टाला जा सकता था। इससे सभी खिलाड़ी टेस्ट क्रिकेट के लिए उपलब्ध होते।
वेस्टइंडीज को मैदानी उपकरणों के क्षेत्र में भी काम करने की जरूरत है। मुझे यह समझ नहीं आ रहा है कि क्वींस पार्क ओवल में आखिरकार सुपर सॉपर क्यों नहीं है। आखिर क्यों मैदान के कुछ हिस्से को ही कवर से ढंका गया, जबकि पूरे मैदान को ढका जाना चाहिए था। इसकी वजह से दो दिन धूप निकलने के बावजूद खेल शुरू नहीं हो सका। बारिश दोपहर बाद आई, लेकिन अगर सुपर सॉपर होता, लंच से पहले कुछ समय के लिए मैच शुरू हो सकता था। यह सही है कि मैदान में बहुत ज्यादा दर्शक नहीं थे, लेकिन टीवी अधिकारधारकों के हिसाब से यह गलत है। प्रशासन के बेपरवाह रवैये की वजह से उन्हें आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा। अगर मैच रद हो जाता है, तो प्रशासन की जेब की एक पैसा भी नहीं जाता, लेकिन अन्य शेयरधारकों को नुकसान उठाना पड़ता है।
आइसीसी को इस बात पर ध्यान देना चाहिए और जिन मैदानों के पास सुपरसॉपर और पूरे मैदान को कवर करने की व्यवस्था नहीं है, उन्हें अंतरराष्ट्रीय मैच नहीं देने चाहिए। भाग्य से वहां शोर मचाने और अपना पैसा वापस मांगने के लिए ज्यादा दर्शक नहीं थे। तीसरे दिन लंच के बाद जब बारिश आई, तो मैदान की हालत पहले से भी ज्यादा बदतर हो गई और ऐसा लग रहा है कि आगे का खेल भी नहीं हो सकेगा। अगर इस तरह का रवैया चलता रहा, तो टेस्ट क्रिकेट जल्द ही मर जाएगा।
(पीएमजी)