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...और जब 'सात हिंदुस्तानी' देखते रहे और एक विदेशी ने बदल दिया सब कुछ

'सात हिंदुस्तानी' देखते रहे और एक विदेशी ने छीन लिया सिंहासन.....यहां हम अमिताभ बच्चन की पहली फिल्म सात हिंदुस्तानी की चर्चा नहीं कर रहे हैं, बल्कि उन सात कप्तानों की बात कर रहे हैं जो जाहिर तौर पर आइपीएल 2016 के बाद सोच में पड़ गए होंगे।

By ShivamEdited By: Published: Tue, 31 May 2016 08:43 AM (IST)Updated: Wed, 01 Jun 2016 08:44 AM (IST)

नई दिल्ली, [शिवम् अवस्थी]। टूर्नामेंट को खत्म हुए आज तीन दिन हो गए हैं लेकिन अब भी सबके दिल में एक सवाल जरूर आ रहा होगा कि आखिर, उन्हीं की जमीन पर ऐसा कैसे हो गया। 'सात हिंदुस्तानी' देखते रहे और एक विदेशी ने छीन लिया सिंहासन.....यहां हम अमिताभ बच्चन की पहली फिल्म सात हिंदुस्तानी की चर्चा नहीं कर रहे हैं, बल्कि उन सात कप्तानों की बात कर रहे हैं जो जाहिर तौर पर आइपीएल 2016 के बाद सोच में पड़ गए होंगे।

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- 'सात हिंदुस्तानी' Vs एक कंगारूः

इस बार जब आइपीएल शुरू हुआ तो 8 टीमों में छह कप्तान भारतीय थे जबकि दो टीमों (पंजाब और हैदराबाद) के कप्तान विदेशी थे। टूर्नामेंट आगे बढ़ा तो छह मैचों के बाद पंजाब ने अपना कप्तान बदल डाला और डेविड मिलर की जगह मुरली विजय ने कमान संभाल ली। उसके बाद से टूर्नामेंट की सात टीमों के कप्तान भारतीय थे और सिर्फ हैदराबाद का कप्तान (डेविड वॉर्नर) एक विदेशी था। आगे क्या हुआ, वो सबको पता है। डेविड वॉर्नर ने अपने दम पर टीम को वहां पहुंचाया जिसकी टूर्नामेंट की शुरुआत में किसी को उम्मीद नहीं थी। वे नए चैंपियन बने।

- ये है सोचने की बातः

सोचने की बात इसलिए भी है क्योंकि डेविड वॉर्नर के सामने एक से एक भारतीय खिलाड़ी कप्तान के तौर पर खड़ा हुआ था। कोलकाता के कप्तान थे दिग्गज भारतीय खिलाड़ी गौतम गंभीर जो दो बार अपनी टीम को चैंपियन बना चुके थे। पुणे के कप्तान थे भारत के महान कप्तान महेंद्र सिंह धौनी जिनके पास किसी खिताब की कमी नहीं है। बैंगलोर की कमान भारत के मौजूदा टेस्ट कप्तान और भविष्य के टी20-वनडे कप्तान विराट कोहली के हाथों में थी। गुजरात की कमान टीम इंडिया की कप्तान कर चुके सुरेश रैना के हाथों में थी। मुंबई की कप्तानी कर रहे थे धुरंधर भारतीय बल्लेबाज रोहित शर्मा। दिल्ली की कमान महान भारतीय गेंदबाज जहीर खान के हाथों में थी। जबकि सातवें कप्तान थे पंजाब के मुरली विजय, जिनके लिए ये कुछ नहीं भूमिका जरूर थी लेकिन अनुभव की कोई कमी नहीं थी।

- ये थी दिक्कतें.....लेकिन फिर भी बने चैंपियनः

इन सबके मौजूद रहने के बावजूद वॉर्नर ने एक ऐसी टीम के साथ खिताब जीत लिया, जिसमें धवन जैसा ओपनर मौजूद था जो अपने फॉर्म से जूझ रहा था, भुवनेश्वर जैसा गेंदबाज मौजूद था जो टूर्नामेंट से ठीक पहले फिट होकर लौटा था, टीम का सबसे अनुभवी गेंदबाज आशीष नेहरा टूर्नामेंट के शुरुआती चरण में ही चोटिल हो गए थे। ऐसी समस्याओं के बीच गिने-चुने स्टार्स वाली वॉर्नर की टीम ने वो कर दिखाया जिसकी कल्पना तक नहीं की जा रही थी। जाहिर तौर पर आने वाले दिनों में उन्हें ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट में भी इस भूमिका में देखने के बारे में विचार किया जा सकता है।

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