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आज भी क्यों कह रही बेटियां कि अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो...

क्यों आज भी हमारे देश में बेटियों के जन्म लेने पर खुशियां नहीं मनाई जातीं, क्यों उनकी साक्षरता का प्रतिशत कम है? क्यों उन्हें आज भी जिन्दा जला दिया जाता है?

By Kajal KumariEdited By: Published: Tue, 30 Aug 2016 09:29 PM (IST)Updated: Wed, 31 Aug 2016 06:36 PM (IST)

पटना [काजल]। बेटियों को भी जन्म लेने दो, उन्हें भी जन्म लेने का पूरा हक है। क्यों आज भी भारत की बेटियां कह रहीं कि अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो। आज के इस बदलते परिवेश में जहां बेटियां हर क्षेत्र में सफलता का परचम लहरा रही हैं, वहीं इसी देश में आज भी बेटी के जन्म लेने पर मौत सा मातम मनाया जाता है। आज भी चोरी-छिपे कोख में ही उन्हें मार दिया जाता है।

बेटी बचाओ के तमाम वादे आज भी बेमानी लगते हैं जहां बेटियों के जन्म देने पर मां को सजा दी जाती है, प्रताड़ित किया जाता है और ताजे मामलों की बात करें तो बिहार में बीते दिन की घटना को याद कर समाज का वीभत्स चेहरा नजर आता है जहां तो बेटियों को जन्म देने के कारण एक मां को बेटियों के साथ चारपाई से बांधकर जिंदा जला दिया गया।

एेसी सच्चाई रोज देखने-सुनने को मिल जाती है कि दहेज नहीं देने पर ससुराल वालों ने बहू को जिंदा जला डाला। बेटी जननेे की सजा मां को दी गई और उसे बच्चे के साथ घर से बाहर निकाल दिया गया। ये क्या आधुनिक समाज का चेहरा है जो अाज भी बेटे और बेटी में भेद-भाव करता है। आज भी एक मां कोख में पल रहे बच्चे के लिए भगवान से दुआ करती है कि बेटा ही देना नहीं तो हो सकता है मैं भी भगा दी जाऊं, जला दी जाऊं।

आज भी हमारे देश में महिला-पुरूष अनुपात में अन्तर बरकरार है और यह इस बात का द्योतक है कि बालिका बचाओ का शोर, तमाम बडे चेहरों का प्रयास, स्वैच्छिक संगठनो की पहल सब कुछ बेकार हो चुका है। इन सबके बीच सरकार का एक बडा प्रयास प्रसव पूर्व लिंग परीक्षण एवं कन्या भू्रण हत्या प्रतिरोध अधिनियम से कुछ आस जगी भी थी।

लेकिन इस आस पर पानी फेरा है और इसका उदाहरण आपको इसी से मिल जाएगा कि आज भी अल्ट्रा साउण्ड केन्द्रों के कूडेदानों, अस्पतालों, नदियों में भारी संख्या में कन्या भ्रूण मिल जाएंगे और इस कार्य में कन्या को जन्म देने वाली मां से लेकर, सास, ससुर, पिता, डाक्टर का एक बडा खेमा इसमें जुटा हुआ है की परिवार में लडकी जन्म न लेने पाये।

क्यों होती है बेटी से नफरत?

अगर इसका मूल कारण आज भी समाज में दानव की तरह व्याप्त दहेज प्रथा के चलन को कहें तो शायद अतिशयोक्ति नहीं होगी। कन्या भ्रूण हत्या का एक काला सच इसमें छिपा है। आज एक लडकी की शादी में अमूमन 2 लाख रूपये से अधिक खर्च आ रहा है जिसे हम एकदम निम्न श्रेणी का किफायती विवाह कह सकते है।

क्या एक साधारण सामान्य व्यक्ति इसको उठाने की हिम्मत जुटा सकता है। जिसकी आमदनी 6 से 10 हजार रूपये हो ऐसा व्यक्ति क्या खायेगा, क्या पहले कैसे अपने परिवार को चलायेगा। यह सोचना तो उसका काम है ही साथ ही उसे लडकी को उच्च शिक्षा दिलाना उसकी जरूरतें भी पूरा करना साथ ही उसके शादी के लिए धन की व्यवस्था करना।

एक साधारण परिवार के पिता की चिंता यही होती है कि वह अपनी बेटी की शादी कैसे करेगा? इसके लिए बेटी के जन्म लेने के साथ ही वह उसके दहेज के लिए बचत करना शुरू कर देता है। फिर भी अगर वह बेटी के ससुराल वालों की जरूरतों को पूरा नहीं कर पाता है तो उसका खामियाजा उसकी बेटी को ही भुगतना होता है।

पढ़ें : लव, सेक्स और धोखा : शादी का झांसा देकर शादीशुदा दारोगा करता था दुष्कर्मलड़कियों की सुरक्षा भी है वजह

आज तेजी से बढ़ रही शारीरिक और यौन उत्पीड़न के मामले भी कन्या के जन्म लेने से पहले उनकी हत्या करने के लिए जिम्मेवार हैं। आज माता-पिता का सोचना है कि लडकियों की सुरक्षा करना भी एक चुनौती भरा काम है। जन्म से लेकर ही उसकी सुरक्षा का, उसे बुरी नजरों से बचाने का उपक्रम करना पड़ता है। लड़की कहां है? क्या कर रही है? उसके साथ क्या हो रहा है? ये तमाम चिंताएं भी इसकी वजह बनती जा रही हैं।

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इसके लिए कौन जिम्मेदार?

कन्या भ्रूण हत्या यानी लडकी को जन्म लेने से पहले ही मां के गर्भ में खत्म कर देना। उस लडकी जो एक मां, पत्नी, बहन, दादी, नानी, बूआ, मौसी, चाची इत्यादि रूपों में देखी जाती है। हर परिवार यही चाहता है कि उसके घर लडका जन्म ले न कि लडकी। जन्म देने वाली मां स्वयं यह नहीं सोचती कि लडके को जन्म देेने के लिए लडकी का होना उसी तरह आवश्यक है जैसे सांस लेने के लिए आक्सीजन। फिर यह भेदभाव क्यो?

इस मुद्दे पर फ्यूचर आॅफ इण्डिया नाम के सामाजिक संगठन का मानना है कि अगर बेटियों की संख्या में बढोत्तरी करनी है और उन्हे बराबरी का दर्जा दिलाना है तो सबसे पहले दहेज प्रथा को खत्म करना होगा और दूसरे लड़कियों की सुरक्षा के लिए कड़े कानून बनाने होंगे। इसके लिए सबके लिए बराबर कानूनी कार्यवाही करनी होगी और इसके लिए सख्त सजा का प्रावधान होना चाहिए, तभी इस तरह की जघन्य घटनाओं पर अंकुश लग सकेगा।


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