Bihar Politics: पटना साहिब ने बताया, बिहार में फिल्मी चमक पर राजनीतिक कद भारी; पढ़ लीजिए पिछला रिकॉर्ड
Bihar Politicsगंगा किनारे बसे पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र का इतिहास बहुत पुराना नहीं पर रोचक है। यहां की संसदीय राजनीति में फिल्मी पृष्ठभूमि से प्रत्याशी उतारे जाते रहे। इन सबके बीच जातीय और दलीय समीकरण का प्रभाव जीत-हार की कहानी लिखता रहा। तब यह सीट बालीवुड स्टार शत्रुघ्न सिन्हा के कारण चर्चा में आ गई थी जिन्हें प्रशंसक बिहारी बाबू के नाम से बुलाते हैं।
व्यास चंद्र, पटना। Bihar Political News Today: गंगा किनारे बसे पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र का इतिहास बहुत पुराना नहीं, पर रोचक है। यहां की संसदीय राजनीति में फिल्मी पृष्ठभूमि से प्रत्याशी उतारे जाते रहे। इन सबके बीच जातीय और दलीय समीकरण का प्रभाव जीत-हार की कहानी लिखता रहा। तब यह सीट बालीवुड स्टार शत्रुघ्न सिन्हा के कारण चर्चा में आ गई थी, जिन्हें प्रशंसक बिहारी बाबू के नाम से बुलाते हैं।
इस समय वे आसनसोल से तृणमूल के प्रत्याशी हैं और इसी पार्टी से वहां के वर्तमान सांसद भी। राजनीति में फिल्मी प्रभाव कोई नई बात नहीं, पर बिहार में किस्सा थोड़ा अलग है। यहां विशुद्ध राजनीतिक कद मतदाताओं को कहीं अधिक प्रभावित करता रहा है।
शत्रुघ्न सिन्हा की पृष्ठभूमि भले ही फिल्मी रही हो, पर वे इस आवरण से निकलकर राजनेता के रूप में पहचान बनाते हुए स्वयं को स्थापित कर चुके थे। 1989 में गांधी मैदान में अटल बिहारी वाजपेयी की सभा थी। मैदान खचाखच भरा था। जब अटल बिहारी भाषण के लिए आए तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा-मुझे पता है यह भीड़ बिहारी बाबू के लिए आई है...।
केंद्र में एनडीए की सरकार बनी तो उन्हें मंत्री भी बनाया गया। जब संसदीय क्षेत्र का नया परिसीमन किया गया तो भाजपा ने 2009 में बिहारी बाबू को पटना साहिब से मैदान में उतारा। उनके विरुद्ध कांग्रेस ने चर्चित टीवी स्टार और पटना के ही निवासी शेखर सुमन पर दांव लगाया। मुख्य मुकाबला 'बड़े' और 'छोटे' पर्दे के बीच होने का अनुमान था, पर परिणाम आया तो शेखर सुमन मुकाबले में टिके ही नहीं।
उनसे अधिक मत राजद के विजय कुमार बटोर ले गए। शत्रुघ्न सिन्हा ने करीब 1.67 लाख मतों के बड़े अंतर से इस सीट पर कब्जा जमाया। उन्हें 57.30 प्रतिशत मत हासिल हुए। 27.11 प्रतिशत मतों के साथ राजद के विजय कुमार दूसरे तो कांग्रेस के शेखर सुमन 11.10 प्रतिशत मत लाकर तीसरे स्थान पर रहे।
बिहार के चुनावी परिदृश्य में एक तरह से यह इस बात की पुष्टि ही थी कि यहां भाव राजनीतिक कद को ही मिलता है। 2014 का चुनाव हुआ तो राजनीतिक समीकरण बदल चुके थे। भाजपा और जदयू के रास्ते अलग हो चुके थे। कांग्रेस भी ताल ठोंक रही थी। ताजा-ताजा मैदान में उतरी आम आदमी पार्टी भी थी।
भाजपा ने एक बार फिर शत्रुघ्न सिन्हा पर भरोसा जताया। कांग्रेस ने इस बार बिहार की खांटी भाषा भोजपुरी में बनने वाली फिल्मों के स्टार कुणाल सिंह को उतारा, पर यह दांव भी काम नहीं आया। फिल्मी क्रेज को जनता ने नकार दिया। जदयू ने पटना के प्रसिद्ध चिकित्सक डा. गोपाल प्रसाद सिन्हा तो आम आदमी पार्टी ने पूर्व मुख्य सचिव की पत्नी परवीन अमानुल्लाह को प्रत्याशी बनाया था। बिहारी बाबू ने फिर सबको खामोश कर दिया, लेकिन 2019 के चुनाव में उनका सितारा बुलंद नहीं रह सका।
भाजपा से नाराज होकर कांग्रेस का दामन थामते ही उनकी मुश्किलें बढ़ गईं। इस बार भाजपा से रविशंकर प्रसाद मैदान में थे, जिन्होंने पार्टी के एक सामान्य कार्यकर्ता से यहां तक की यात्रा की है। शत्रुघ्न सिन्हा मात खा गए। पटना साहिब के जातीय समीकरण में दोनों भले ही एक कुनबे से आते हों, पर दलीय समीकरण बिहारी बाबू पर बहुत भारी पड़ गया।
अब इस बार के चुनाव में भाजपा से फिर पुराने चेहरे के रूप में रविशंकर प्रसाद हैं तो कांग्रेस ने पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार के बेटे डा. अंशुल अविजित को प्रत्याशी घोषित किया है। अभी पटना साहिब संसदीय क्षेत्र में आने वाले बख्तियारपुर, दीघा, बांकीपुर, कुम्हरार, फतुहा और पटना साहिब विधानसभा में चार सीटों पर भाजपा, तो दो पर राजद के विधायक हैं। जातीय समीकरण के साथ पार्टी और व्यक्तिगत छवि का प्रभाव यहां हमेशा निर्णायक भूमिका में रहा है। चुनाव में अभी समय है, पर क्षेत्र में कार्यकर्ता घूमने लगे हैं।
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