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चुनाव से पहले क्‍यों पार्टी बदलते हैं नेता, सिर्फ शौक या मजबूरी भी? पढ़ें दल बदल करने की पीछे की सच्‍चाई

Lok Sabha Election 2024 चुनाव से पहले हम अक्‍सर नेताओं को पार्टी बदलते हुए देखते हैं लेकिन ऐसा ये हमेशा शौक या अपने फायदे के लिए नहीं करते हैं बल्कि कई बार मजबूरी के चलते भी इन्‍हें दल बदलना पड़ता है। इसमें उम्‍मीदवार और दल दोनों की मजबूरी पीछे छिपी रहती है। दल बदल से दोनों की मांग पूरी हो जाती है।

By Arun Ashesh Edited By: Arijita Sen Published: Thu, 04 Apr 2024 01:14 PM (IST)Updated: Thu, 04 Apr 2024 01:14 PM (IST)
चुनाव से पहले दल बदलना नेताओं का शौक नहीं, मजबूरी भी।

राज्य ब्यूरो, पटना। बिहार में दल बदलना शौक का मामला नहीं है। बहुत हद तक मजबूरी भी है। उम्मीदवार की मजबूरी कि वे जिस दल में हैं, वह उन्हें टिकट देने के लायक नहीं मानता। दलों की मजबूरी यह कि संबंधित क्षेत्र के लिए उनके पास सक्षम उम्मीदवार नहीं है। दल बदल से दोनों की मांग पूरी हो जाती है।

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2014 के चुनाव परिणाम से समझें पूरी बात

1990 के बाद राज्य में यही हो रहा है। महत्वपूर्ण यह है कि दल बदल करने वाले अधिसंख्य उम्मीदवार चुनाव जीत जाते हैं। अधिक दूर नहीं, 2014 के लोकसभा चुनाव परिणाम को देखें।

चुनाव से पहले ही यह अनुमान हो गया था कि इस बार नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के पक्ष में लहर चलेगी। मगर, उम्मीदवारों की खोज हुई तो पता चला कि भाजपा के पास कई सीटों के लिए सक्षम उम्मीदवार ही नहीं हैं। आनन-फानन में उम्मीदवार जुटाए गए।

जदयू से वीरेंद्र चौधरी, सुशील कुमार सिंह और छेदी पासवान, राजद से रामकृपाल यादव, बसपा से जनक राम, 2009 में सिवान से निर्दलीय चुनाव जीते ओम प्रकाश यादव एवं भारतीय प्रशासनिक सेवा के अवकाश प्राप्त अधिकारी आरके सिंह 2014 में भाजपा के उम्मीदवार बन गए।

भाजपा के संतोष कुशवाहा को जदयू और कांग्रेस के चौधरी महबूब अली कैसर लोजपा ने टिकट दे दिया। इनमें से वीरेंद्र चौधरी और ओम प्रकाश यादव को छोड़ कर सभी सांसद 2019 में भी चुनाव जीते।

नेताओं के दल बदल का समीकरण

2024 में इनमें से छेदी पासवान और चौधरी महबूब अली कैसर को उनके दलों ने बेटिकट कर दिया। 2009 में जदयू ने राजग के मंगनीलाल मंडल को झंझारपुर से अपना उम्मीदवार बनाया। 2014 जदयू ने उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया तो राजद टिकट टिकट पर चुनाव लड़कर हारे। इस बार फिर जदयू टिकट के प्रयास में थे। नहीं मिला।

2019 में भी यह सिलसिला जारी रहा। भाजपा के सुनील कुमार पिंटू और वीणा देवी को क्रमश: जदयू और लोजपा ने सीतामढ़़ी और वैशाली से उम्मीदवार बनाया। वीणा इस बार भी टिकट लेने में सफल रही। पिंटू पिछड़ गए। 2024 में भी दल बदल करने वालों को टिकट देने वाला खाता खुला हुआ है।

अभय कुमार सिंह, लवली आनंद, विजय लक्ष्मी जैसे दूसरे दलों के नेता प्रतिद्वंद्वी दलों से टिकट हासिल करने में सफल हो चुके हैं। तीन से लेकर सातवें चरण तक के चुनाव की अधिसूचना अभी जारी नहीं हुई है। छह-सात दल बदलू टिकट अभी कतार में हैं।

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