Lok Sabha Election: रामविलास पासवान से लेकर उनके भाई-भतीजे तक से खाई शिकस्त, पांच बार हार के बाद भी इस नेता का कम नहीं हुआ उत्साह
Lok Sabha Election पांच चुनाव हारने के बाद भी एक कांग्रेसी नेता का उत्साह कम नहीं हुआ है। आज भी वह चुनाव लड़ने को तैयार हैं। 2009 के लोकसभा चुनाव में डॉ. अशोक कुमार को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया। वे जदयू के महेश्वर हजारी के हाथों पराजित हुए। 2014 में वे लोजपा के रामचंद्र पासवान से हारे। वोटों का अंतर करीब 10 हजार का था।
राज्य ब्यूरो, पटना। बिहार में कांग्रेस के साथ दो लोकसभा सीटों पर गजब संयोग बना हुआ है। समस्तीपुर में उसके उम्मीदवार लगातार हार के बाद भी मैदान में डटे हुए हैं। उधर पटना साहिब का हाल यह है कि एक बार जो हार कर जाते हैं, दोबारा लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाते।
नतीजा-समस्तीपुर के लिए कांग्रेस को उम्मीदवार खोजने की जरूरत नहीं पड़ती है। मगर, पटना साहिब के लिए हरेक चुनाव में नए उम्मीदवार को उतारना पड़ता है। समस्तीपुर पुराना क्षेत्र है। 2009 में इसे अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया। पटना साहिब का सृजन 2009 में हुआ। यह सामान्य सीट है।
2014 में वे लोजपा के रामचंद्र पासवान से हारे
2009 के लोकसभा चुनाव में डॉ. अशोक कुमार को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया। वे जदयू के महेश्वर हजारी के हाथों पराजित हुए। 2014 में वे लोजपा के रामचंद्र पासवान से हारे। वोटों का अंतर करीब 10 हजार का था। लोकसभा चुनाव में इसे कम अंतर से हार की श्रेणी में रखा जाता है।
2019 में भी कांग्रेस ने डॉ. कुमार को ही आजमाया। वह फिर लोजपा के रामचंद्र पासवान के हाथों पराजित हुए। जीत का अंतर करीब ढाई लाख वोटों का था। रामचंद्र पासवान का निधन हुआ। उप चुनाव में कांग्रेस की ओर से डा. अशोक कुमार और लोजपा की ओर से दिवंगत रामचंद्र पासवान के पुत्र प्रिंस राज खड़े हुए।
उनकी हार की शुरुआत 1991 से हुई
इसबार उनकी हार एक लाख से कुछ अधिक वोटों के अंतर से हुई। किस्सा यहां समाप्त नहीं हो रहा है। डॉ. अशोक कुमार का उत्साह और कांग्रेस का उन पर विश्वास कम नहीं हुआ। लोकसभा चुनाव में उनकी हार की शुरुआत 1991 से हुई। उस समय वे रामविलास पासवान से पराजित हुए।
तब रोसड़ा सुरक्षित क्षेत्र से उनकी हार हुई थी। अशोक खानदानी कांग्रेसी हैं। उनके पिता बालेश्वर राम 1980 में रोसड़ा से निर्वाचित हुए थे। वह इंदिरा गांधी मंत्रिपरिषद में राज्यमंत्री भी थे। वैसे लोकसभा चुनाव की लगातार हार के बावजूद वे कई बार विधायक बने। 2000 में राबड़ी मंत्रिमंडल में वे कैबिनेट मंत्री थे।
पटना साहिब के लिए हर बार नया उम्मीदवार
दूसरी तरफ पटना साहिब में भी समस्तीपुर की तरह कांग्रेस लगातार हार ही रही है। अंतर यह है कि पटना साहिब के लिए उसे हर बार नया उम्मीदवार खोजना पड़ता है। उसे हर बार सिने जगत का कोई न कोई नया चेहरा मिल ही जाता है। 2009 में अभिनेता शेखर सुमन कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़े।
11.10 प्रतिशत वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे। हार के बाद उन्हें किसी ने कांग्रेस पार्टी के कार्यालय में नहीं देखा। 2014 में कांग्रेस ने अभिनेता कुणाल सिंह को उम्मीदवार बनाया। वोट प्रतिशत बढ़ कर 20.95 प्रतिशत हो गया। लेकिन, हार भी हुई। 2019 में शत्रुघ्न सिन्हा आए।
32.87 प्रतिशत वोट और उसके साथ पराजय की कसक लेकर पटना साहिब से गए तो फिर कभी इस क्षेत्र का रूख नहीं किया। इसबार फिर कांग्रेस किसी नए उम्मीदवार की खोज कर रही है। अगर योजना के अनुसार सबकुछ हुआ तो लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष मीरा कुमार के पुत्र अंशुल आर्य यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार होंगे।
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