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मुजफ्फरपुर: अंतिम सांस ले रहा पड़ाव पोखर, दम घोंट रहा नाले का पानी

नाले के पाने के कारण मुजफ्फरपुर में स्थित पड़ाव पोखर अंतिम सांस ले रहा है। एक समय था कि पथिक यहां रूककर अपनी प्यास बुझाते थे। अब दुर्गंध के कारण लोग खड़े भी नहीं रहना चाहते हैं।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Wed, 22 Mar 2017 07:09 PM (IST)Updated: Wed, 22 Mar 2017 07:35 PM (IST)
मुजफ्फरपुर: अंतिम सांस ले रहा पड़ाव पोखर, दम घोंट रहा नाले का पानी

मुजफ्फरपुर [जेएनएन]। एक समय था जब पथिक यहां रुककर प्यास बुझाते थे। दो पल आराम कर अपनी थकान मिटाते थे। आसपास के लोग यहां सुबह-शाम टहलने आते थे। जब पानी में अपनी परछाई दिखती थी तो मन झूम उठता था। घाटों पर लगने वाले मेले प्राचीनता की धुन सुनाते थे। बुजुर्गों की यहां चौपाल सजती थी। वे परिवार से लेकर समाज एवं सड़क से लेकर सरकार तक की चर्चा करते थे। लेकिन अब यहां कोई खड़ा भी नहीं रहना चाहता है। यह हाल है शहर में स्थित पड़ाव पोखर का। 

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शहर के दक्षिणी भाग में स्थित पड़ाव पोखर में कल तक पानी शीशे की तरह चमकता था, आज वह काला हो गया है। आधुनिकता का दंभ भरने वाले समाज ने सौ साल के इतिहास को काला कर लिया। शहर की इस विरासत को अंतिम सांस लेने पर मजबूर कर दिया। पोखर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। हर-आने जाने वालों को आशा भरी नजरों से देख रहा है, उम्मीद जिंदा है कि कोई तो आएगा जो पोखर की पीड़ा को समझ इसके उद्धार का बीड़ा उठाएगा।

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हाथी करते थे स्थान, मचलती थीं मछलियां
पोखर का इतिहास सौ साल से अधिक पुराना है। शहर के प्रतिष्ठित रईस उमाशंकर प्रसाद सिंह ने आम गोला रोड से सटे दो एकड़ से अधिक भू-भाग में इसे खुदवाया था। स्थानीय विद्यानंद सिंह बताते हैं कि जब पोखर का निर्माण हुआ था तब इसका पानी निर्मल था। यहां हाथी स्नान करने आते थे।

पानी में मछलियां मचलती थीं। छठ पूजा पर यह आस्था का केंद्र बन जाता है। यहां छठ पर लगने वाले मेले एवं सजावट को देखने दूर-दूर से आज भी लोग आते हैं। लेकिन अब यह पोखर सिमटने लगा है। पहले आसपास के लोगों ने अपने घरों की नालियों का मुंह इसमें खोल दिया, जिससे इसका पानी दूषित हो गया। फिर लोगों ने इसमें कूड़ा-करकट डालना शुरू कर दिया।

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मौका देख अतिक्रमणकारियों ने भी इसके कुछ हिस्से को हड़प लिया। वैसे तो पोखर अभी जिंदा है, लेकिन बीमार है। यदि समय रहते इसे बचाया गया तो न सिर्फ इतिहास बच जाएगा, बल्कि मोहल्ले की पहचान भी बच जाएगी।  

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