अतिक्रमणकारियाें की भेंट चढ़ा महाराजी पोखर, अस्तित्व समाप्त होने के कगार पर
मुजफ्फरपुर स्थित ऐतिहासिक महाराजी पोखर अतिक्रमणकारियों की भेंट चढ़ गया है। इसकी खुदाई दरभंगा महाराज ने कराई थी। आज यह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है।
मुजफ्फरपुर [जेएनएन]। कभी राजा करते थे स्थान। पानी आता था खाना बनाने के काम, अब बन गया है शहर का कूड़ेदान और अतिक्रमणकारियों का पनाहगार। यह हाल है शहर के ऐतिहासिक महाराजी पोखर का। मोहल्लेवासियों को मलाल है कि सरकारी पहरेदारी में कमी होने के कारण पोखर के तीन किनारे अतिक्रमणकारियों के कब्जे में हैं और जो बचा है, वह कूड़े व जंगल में तब्दील है।
कभी यहां सदियों से छठ घाट सजते थे। लेकिन, 1992 के बाद जब अतिक्रमण शुरू हुआ तो आसपास के लोग घर में छठ करने को विवश हो गए। इतिहास के आईने में पोखर महाराजी पोखर किनारे बसे सतीश कुमार कहते हैं कि यह ऐतिहासिक पोखर है। इसके किनारे उनका परिवार 135 साल से बसा हुआ है। उनके मुताबिक दरभंगा के राजा ने इस पोखर की खुदाई कराई थी। वह खुद यहां आकर बैठते भी थे।
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पोखर के चारों किनारे, समान दूरी पर पक्की सड़क बनी थी जो आज भी है। पोखर कितना साल पुराना है, उन्हें नहीं मालूम। लेकिन 1857 के सर्वे में इसका जिक्र है। यहां शाम को लोग टहलने एवं मछलियों को लाई खिलाने आते थे। मछली पालन के लिए सरकार बंदोबस्त करती थी और अच्छा राजस्व मिलता था। लेकिन सफाई नहीं होने के बाद यह अतिक्रमण की भेंट चढ़ गया। 2009 में हुई थी जीर्णोद्धार की पहल पोखर से सटे आलोकपुरी निवासी बैंककर्मी अरुण कुमार सिन्हा बताते हैं कि मोहल्लावासियों ने वर्ष 2009 में पोखर को बचाने की पहल की थी।
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जिलाधिकारी एवं महापौर को पोखर के जीर्णोद्धार के लिए लिखा गया। बाद में तत्कालीन महापौर विमला देवी तुलस्यान, उपमहापौर निसारूद्दीन छोटे एवं वार्ड पार्षद मुकेश विजेता ने पोखर का निरीक्षण किया। इसके जीर्णोद्धार का फैसला लिया गया। इसके लिए डीपीआर भी बनवाया गया। सरकार ने राशि भी भेजी। उसके बाद कोई काम नहीं हुआ। न मोहल्लावासियों ने आगे कदम बढ़ाया और न ही निगम प्रशासन ने। निगम के जानकार बताते हैं कि पोखर के जीर्णोद्धार के लिए मिला पैसा लौट गया।
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