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छोटों पर भाईगिरी का रौब झाड़ते हैं बड़े भाई-बहन, हर मां-बाप है इसके गवाह

वॉक के अनुसार परिवरों में इस प्रकार की बढ़ती हिंसा की प्रवृति आज चिंता का विषय बनता जा रहा है और पीड़ित बच्चों के भविष्य पर इसके दूरगामी व प्रभाव व परिणाम सामने आ रहे हैं।

By Jagran News NetworkEdited By: Published: Fri, 15 Feb 2019 08:02 PM (IST)Updated: Fri, 15 Feb 2019 08:41 PM (IST)
छोटों पर भाईगिरी का रौब झाड़ते हैं बड़े भाई-बहन, हर मां-बाप है इसके गवाह
छोटों पर भाईगिरी का रौब झाड़ते हैं बड़े भाई-बहन, हर मां-बाप है इसके गवाह

लंदन,(प्रेट्र)। लंदन के वारविक विश्वविद्यालय के एक शोधपत्र के अनुसार एक से ज्यादा बच्चों के परिवार में छोटे बच्चे बड़े भाई-बहनों की हिंसा व प्रताड़ना का शिकार होते हैं। शोध के अनुसार इसका मुख्य कारण बड़े भाई या बहन का छोटों पर अपने बड़े होने या भाईगिरी का साबित करना है। विश्वविद्यालय के शोधार्थी डाइटर वॉक के अनुसार इस प्रकार की पारिवारिक हिंसा लगभग हर परिवार की कहानी है और परिवार में इस प्रकार की हिंसा के गवाह हर मां-बाप व स्वास्थ्य विशेषज्ञ हैं।

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वॉक के अनुसार परिवरों में इस प्रकार की बढ़ती हिंसा की प्रवृति आज चिंता का विषय बनता जा रहा है और पीड़ित बच्चों के भविष्य पर इसके दूरगामी व प्रभाव व परिणाम सामने आ रहे हैं। बड़े भाई-बहनों की प्रताड़ना की प्रवृति के कारण इसके शिकार बच्चे न केवल बड़े भाई-बहनों बल्कि उनके डर के कारण परिवार के बड़े सदस्यों से दूरी बनाने लगते हैं और यह कदम उनको अकेलेपन की ओर धकेल रहा है। इसके अलावा यह अकेलापन पीड़ित बच्चों में कई प्रकार के मानसिक व शारीरिक समस्याओं को जन्म देता है। डवेलपमेंटल साइकोलॉजी पत्रिका में छपे इस शोधपत्र के अनुसार 1991 व 1992  में इंग्लैंड में जन्में 6838 बच्चों व माताओं के एकत्र आंकड़ों के अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष सामने आया है।

शोध के अनुसार इन बच्चों को चार वर्गों पीड़ित, भाईगिरी से  पीड़ित, जबरदस्ती करने वाले जबरदस्ती से पीड़ित या इस प्रकार की भाईगिरी से दूर रहने वाले बच्चे में बांटा गया है। शोध के अनुसार पांच साल की उम्र के बच्चों की माताओं ने बताया कि इस उम्र के बच्चे अधिकांश बार बड़े भाई-बहनों की हिंसा या प्रताड़ता का शिकार हुए हैं। शोधकर्ता ने दो साल बार फिर उन्हीं बच्चों के व्यवहार का अध्ययन किया और उनकीमाताओं से बच्चों के व्यवहार में आए परिवर्तन, बड़े भाई-बहनों के साथ बदलते संबंधों व आपस में कितना व कैसे समय व्यतीत के बारे में जानकारी हासिल की इसके कई साल बाद जब इन बच्चों की उम्र 12 साल के करीब थी, एक बार फिर शोधकर्ता ने इन परिवारों के बच्चों के स्वभाव में आए बदलाव व आपसी संबंधों के बारे में आंकड़े एकत्र किए। इस बार बच्चों से शोधकर्ता ने सीधे बच्चों से बातचीत कर यह जानने की कोशिश की कि पिछले छह माह में वह कितनी बार बड़े भाई-बहनों की प्रताड़ना का शिकार हुए, और कहा उन्होंने अपने छोटे भाई-बहनों पर अपने बड़े होने का रौब पहली बार लड़के व लड़कियों से उनकी उम्र के साथ उनसे पूछा गया कि वे  कब परिवार में पहली बार बड़े भाई-बहनों की भाईगिरी का शिकार हुए और कब कैसे उन्होंने अपने छोटों पर अपने बड़े होने का अधिकार जमाया।

अध्ययन में सामने आया कि अध्ययन समूह के 28 फीसद बच्चे अपने छोटे भाई-बहनों की प्रताड़ना में शामिल रहे हैं तथा हर परिवार में छोटे भाई बहनों की मानसिक प्रताड़ना सामान्य रूप से पाई गई। अध्ययन में पाया गया कि  अधिकतर बच्चों का या तो बड़े भाई बहनों की प्रताड़ना का या तो शिकार हुए या उन्होंने छोटे भाई बहनों को मानसिक प्रताड़ना दी। वॉक के अनुसार भाईगिरी या बड़ापन परिवारों में सामान्य बात है और हम अपनी मर्जी से अपने लिए बड़े भाई व बहन नहीं चुन सकते और यह सब परिवारों में इसलिए संभव क्योंकि बच्चे एक दूसरे के मजबूत व कमजोर पक्ष के वाकिफ होते हैं तथा बड़ों को पता होता कि छोटों की कौन सी नस कब दबानी है। इसके लिए पारिवारिक ढांचा व लैंगिग भेदभाव भी किसी हद तक जिम्मेदार है। शोधकर्ता के अनुसार इस प्रकार की घटना उन परिवारों में अकसर देखने को मिलती हैं जिन परिवारों में तीन या अधिक भाई-बहन होते हैं और बड़े भाई या बहन छोटों को इसका शिकार बनाते हैं।

शोधकर्ताओं के अनुसार भाईगिरी बड़े परिवारों में इसलिए भी अधिक देखने को मिलती है क्यों में बच्चों में सीमित संसाधनों का बटवारा होने लगता है। इसके अलावा बड़े भाई-बहनों को यह भी लगता है कि मां-बाप उनके प्रति उतना ध्यान नहीं दे रहे हैं जितना छोटे भाई-बहनों को दे रहे हैं या जितना उन्हें पहले दिया जाता था। वे अपने आप को परिवार में उपेक्षित महसूस करने लगते हैं। वारविक विश्वविद्यालय के ही शोधकर्ता स्लावा डेनचेव के अनुसार परिवार में लड़कियां व छोटे बच्चे इस भाईगिरी का अधिकतर शिकार होते हैं। उन्होंने कहा कि मानव सास्कृतिक रूप से अलग अलग हो सकते हैं लेकिन स्वभाव सबका एक सा ही रहता है।

परिवार के बड़े बच्चे को हमेशा लगेगा मां-बाप का प्यार, खिलौने आदि सबकुछ बंट रहा है जिसे वह बर्दाश्त नहीं कर पाता व छोटे भाई-बहनों के प्रति ईर्षा की भावना स्वतः ही पैदा हो जाती है। औऱ वह अपना हक जमाने के लिए छोटे भाई-बहनों पर अपने बड़े होने का अधिकार जमाने लगता है। शोधकर्ताओं ने इस विषय को लेकर परिवार के सामाजिक व आर्थिक परिदृष्य को लेकर पर शोध किया तथा पाया कि बच्चों में पर प्रवृति सभी परिवारों में लगभग एक समान है ।


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