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हैदराबाद के निजाम के 332 करोड़ रुपये का मामला फिर ब्रिटिश कोर्ट में, पूर्व आदेश को चुनौती

मामला हैदराबाद के सातवें निजाम से जुड़ा हुआ है। यह धनराशि ब्याज जोड़कर 2019 में 35 मिलियन पाउंड हो गई।

By Tilak RajEdited By: Published: Wed, 22 Jul 2020 11:06 PM (IST)Updated: Wed, 22 Jul 2020 11:06 PM (IST)
हैदराबाद के निजाम के 332 करोड़ रुपये का मामला फिर ब्रिटिश कोर्ट में, पूर्व आदेश को चुनौती

लंदन, प्रेट्र। संपत्ति पाने की लड़ाई में निजाम हैदराबाद के वंशज एक बार फिर ब्रिटेन की कोर्ट में पहुंच गए हैं। उन्होंने ब्रिटेन के एक बैंक अकाउंट में जमा 35 मिलियन पाउंड (332 करोड़ रुपये) की धनराशि पाने के मुकदमे में निचली अदालत के आदेश को लंदन हाईकोर्ट में चुनौती दी है। अक्टूबर 2019 में आए रॉयल कोर्ट ऑफ जस्टिस के आदेश में जस्टिस मार्कस स्मिथ ने भारत सरकार और आठवें निजाम के उत्तराधिकारी व उनके भाई के पक्ष में फैसला सुनाया था।

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मामला हैदराबाद के सातवें निजाम से जुड़ा हुआ है। 1947 में बंटवारे के समय ब्रिटिश बैंक में हैदराबाद राज्य की 10,07,940 पाउंड की धनराशि जमा कराकर उसके संबंध में तत्कालीन पाकिस्तान सरकार के साथ समझौता कर लिया गया था। यह धनराशि ब्याज जोड़कर 2019 में 35 मिलियन पाउंड हो गई। निचली अदालत के आदेश को सातवें निजाम के 116 वंशजों की ओर से नजफ अली खान ने हाई कोर्ट में चुनौती दी है। उन्होंने अपनी अर्जी में सातवें निजाम के प्रशासक (अधिकारी) पर समझौता करने में विश्वासघात का आरोप लगाया है।

भारत से ही ऑनलाइन हाईकोर्ट में पेश हुए खान ने कहा, निचली कोर्ट के आदेश से गलत ढंग से बैंक में जमा धनराशि भारत सरकार और दो शहजादों- प्रिंस मुकर्रम जाह और उनके छोटे भाई मुफ्फकम जाह को दे दी गई। अपने फैसले को चुनौती दिए जाने के प्रयास को खारिज करते हुए निचली अदालत में न्यायाधीश रहे मार्कस स्मिथ ने कहा, नजफ अली खान को मामला फिर से शुरू कराने का अधिकार ही नहीं है। पूर्व आदेश में कारण सहित बैंक में जमा धनराशि के लाभकर्ता बताए गए हैं, इसलिए उसे चुनौती देने का कोई औचित्य नहीं है। हालांकि, हाईकोर्ट ने नजफ अली खान की अर्जी को विचारार्थ स्वीकार कर लिया है और बुधवार व गुरुवार को उसके औचित्य पर बहस चलेगी।


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