बीजों से भोजन व ऊर्जा बनने की गुत्थी सुलझी, खेती में हो सकता है उपयोगी
जर्मनी की मुंस्टर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने बताया कि बीजों की शुरुआती वृद्धि पौधे के विभिन्न हार्मोन्स के जरिये नियंत्रित होता है।
लंदन, प्रेट्र। किसी अनाज या पौधे का बीज विकसित होकर हमारे भोजन का हिस्सा बनता है और हमें ऊर्जा उपलब्ध कराता है। लेकिन, यह बीज कैसे भोजन और ऊर्जा में तब्दील होता है, यह अभी तक पता नहीं है। इस गुत्थी को सुलझाने के लिए शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन किया है। अध्ययन के अनुसार, जब पौधे का बीज पानी के संपर्क में आता है, तो इसकी कुछ आंतरिक रासायनिक प्रक्रिया भोजन और ऊर्जा बनाती है। इस अध्ययन से खेती को और अधिक प्रभावी बनाने में मदद मिल सकती है।
जर्मनी की मुंस्टर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने बताया कि बीजों की शुरुआती वृद्धि पौधे के विभिन्न हार्मोन्स के जरिये नियंत्रित होता है। उन्होंने बताया कि इन पौधों के रसायनों पर गहराई से अध्ययन किया गया है, लेकिन बीज में ऊर्जा उपलब्ध कराने वाली प्रक्रिया के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। साथ ही, इस बारे में भी पता नहीं है कि कुशलता से खाद्य उत्पादन करने में कैसे मदद पहुंचाते हैं।
इस तरह किया गया अध्ययन
यह हालिया अध्ययन पीएनएएस जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इसमें एनर्जी मेटाबोलिज्म और रेडजोक्स केमिकल पाथवे दोनों का आकलन किया गया है, जो सल्फर पर निर्भर रहता है। अध्ययन में बीज के भीतर मौजूद अणुओं के बारे में बताया गया है, जो ऊर्जा उत्सर्जित करने के लिए सक्रिय किया जाता है। इस प्रक्रिया में सल्फर रेडोक्स प्रतिक्रियाओं में कुछ नियंत्रित अणुओं की मुख्य भूमिका होती है। अध्ययन में वैज्ञानिकों ने माइक्रोस्कोप की मदद से माइटोकॉन्ड्रिया में मॉलीक्यूलर एडोनोसिन ट्राइफॉस्फेट (एटीपी) और अन्य अणुओं को पाया। इन अन्य अणुओं में निकोटीनैमाइड एडेनिन डाइन्यूक्लियोटाइड फॉस्फेट शामिल हैं।
उन्होंने सूखे बीजों और पानी ‘युक्त’ बीजों की तुलना की। यह पता लगाने के लिए कि क्या रेडोक्स पाथवे बीजों के विकास के लिए महत्वपूर्ण थे, शोधकर्ताओं की टीम ने आनुवंशिक तरीकों का उपयोग करके खास तरह प्रोटीन को निष्क्रिय कर दिया और उसके बाद संशोधित और गैर-संशोधित बीजों की प्रतिक्रिया की तुलना की। वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में बीज को कृत्रिम रूप से बढ़ने दिया और पाया कि इन प्रोटीनों की कमी होने पर बीज बहुत कम सक्रिय रूप से अंकुरित होते हैं। उसके बाद उन्होंने रेडोक्स प्रोटीन की जांच की कि यह प्रक्रिया कहां हो रही है। उन्होंने प्रोटीन की जांच के लिए सक्रिय माइटोकॉन्ड्रिया को अलग किया और जल्दी से उन्हें ठंडा किया। शोधकर्ताओं ने जैवरासायनिक तरीकों का प्रयोग करके एनर्जी मेटाबोलिज्म में कई छोटे-छोटे प्रोटीन की पहचान की।
खेती में हो सकता है उपयोगी
शोधकर्ताओं के अनुसार, इस अध्ययन के नतीजे खेती में उपयोगी साबित हो सकते हैं। अध्ययन में पाया गया कि जहां तक संभव हो बीजों की अंकुरण शक्ति बरकरार रखने की जरूरत होती है। यह भी ध्यान रखने की जरूरत होती है कि वे न्यूनतम नुकसान के साथ अंकुरित हों। मुंस्टर यूनिवर्सिटी और अध्ययन के सह-लेखक मार्कस श्वार्जलैंडर ने बताया, ‘अंकुरण नियंत्रण की प्रारंभिक प्रक्रिया को देखते हुए हम बीज अंकुरण तंत्र की बेहतर समझ विकसित कर सकते हैं। भविष्य में हम पता लगा सकते हैं कि फसल जैव-प्रौद्योगिकी में इस तरह के बदलाव का प्रयोग कैसे किया जा सकता है।’