हमारी एक गलती के चलते दुनियाभर में 14 लाख करोड़ डॉलर का नुकसान
अगर पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्य को नहीं हासिल किया गया तो वैश्विक तापमान में दो फीसद वृद्धि के साथ समुद्र का स्तर औसत 0.86 मीटर बढ़ जाएगा।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। ग्लोबल वार्मिंग के चलते ध्रुवों की बर्फ तेजी से पिघल रही है। नतीजतन समुद्र स्तर बढ़ रहा है। अगर आने वाले वर्षों में इसे न रोका गया तो दुनिया को प्राकृतिक के साथ आर्थिक दुष्परिणाम भी भुगतने होंगे।
ब्रिटेन के नेशनल ऑशनोग्राफी सेंटर के शोधकर्ताओं ने इस संबंध में एक रिपोर्ट जारी की है। यह बताती है कि वर्ष 2100 तक बढ़ते समुद्र स्तर के चलते दुनियाभर में 14 लाख करोड़ डॉलर का नुकसान होगा। अगर पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्य को नहीं हासिल किया गया तो वैश्विक तापमान में दो फीसद वृद्धि के साथ समुद्र का स्तर औसत 0.86 मीटर बढ़ जाएगा। इसका सबसे ज्यादा असर मध्य आय वाले देशों पर पड़ेगा।
लाखों होंगे प्रभावित
दुनिया के तकरीबन 60 करोड़ लोग समुद्र स्तर से दस मीटर से भी कम ऊंचाई वाले तटीय इलाकों में रहते हैं। तापमान बढ़ने से बर्फ की चादरों और हिमखंड़ों के पिघलने से इन जब समुद्र स्तर बढ़ेगा तो इनमें से लाखों लोगों को घर-बार छोड़ना पड़ेगा।
कम करनी होगी वैश्विक तापमान वृद्धि
शोधकर्ताओं के मुताबिक अगर इस सदी के अंत तक वैश्विक तापमान वृद्धि पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्य के मुताबिक 1.5 डिग्री होगी तो समुद्र स्तर लगभग 0.52 मीटर बढ़ेगा। लेकिन अगर यह वृद्धि दो डिग्री से अधिक हुई तो समुद्र स्तर 0.86 मीटर बढ़ जाएगा। गंभीर स्थिति में समुद्र का स्तर औसत 1.8 मीटर बढ़ सकता है।
-14 लाख करोड़ डॉलर समुद्र स्तर बढ़ने से वर्ष 2100 में होने वाला अनुमानित वैश्विक नुकसान
-1.8 मीटर पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्यों को पूरा न कर पाने से इतना बढ़ सकता है समुद्र स्तर
बढ़ जाएगा आर्थिक बोझ
अगर 0.86 मीटर समुद्र स्तर बढ़ा तो बाढ़ का सामना करने के लिए सालाना 14 लाख करोड़ खर्च होंगे। लेकिन अगर स्तर 1.8 मीटर बढ़ा तो यह खर्च बढ़कर सालाना 27 लाख करोड़ डॉलर हो जाएगा। वर्ष 2100 में यह आंकड़ा वैश्विक जीडीपी का 2.8 फीसद होगा।
ग्लोबल वार्मिंग का नकारात्मक असर
वर्तमान में ग्लोबल वार्मिंग वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ी समस्या बनती जा रही है। इसका असर दुनिया के हर कोने में देखा जा रहा है। कहीं अत्याधिक गर्मी पड़ रही है तो कहीं सामान्य से बहुत अधिक वर्षा हो रही है। यदि धरती की सतह का वैश्विक औसत तापमान बढ़ता है तो सबसे ज्यादा प्रभावित दुनिया के गरीब देश होंगे। यह बात एक अध्ययन में सामने आई है। बता दें कि पेरिस समझौते में यह सीमा 1.5 डिग्री या दो डिग्री सेल्सियस तक तय की गई है। यदि तापमान में इतनी वृद्धि होती है तो भी इसका असर गरीब देशों पर देखने को मिलेगा।
जियोफिजिकल रिसर्च लैटर्स नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में जलवायु परिवर्तन के अमीर और गरीब देशों पर पड़ने वाले प्रभाव की तुलना की गई है। ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न के एंड्रयू किंग के मुताबिक, यह परिणाम ग्लोबल वार्मिंग के साथ आने वाली असमानताओं का उदाहरण है। वह आगे कहते हैं, हैरत की बात यह है कि तापमान में दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने पर सबसे ज्यादा ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाले अमीर देशों पर इसका सबसे कम असर होगा। गरीब देश इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे, जिनकी ग्लोबल वार्मिंग में सबसे कम भूमिका है।
गरीब देशों पर गिरेगी गाज
भारत, चीन जैसे मध्यम आय वाले देशों में तटीय बाढ़ की घटनाएं सर्वाधिक देखी जाएंगीं। समुद्र के किनारे बसे गरीब देशों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। इन देशों की अर्थव्यवस्था की कमर टूट जाएगी। अमीर देशों पर समुद्र स्तर बढ़ने का शुरुआती असर नहीं पड़ेगा क्योंकि इन देशों में सुरक्षा का बुनियादी ढांचा मजबूत है।