Coronavirus: ब्रिटेन में भारतीय स्वास्थ्यकर्मियों को कोरोना संक्रमण का खतरा ज्यादा
ब्रिटेन के वेलकम सेंजर इंस्टीट्यूट और नीदरलैंड की यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के शोधकर्ताओं ने नाक में गाब्लेट और सिलिएटेड सेल्स की खोज की।
लंदन, प्रेट्र। ब्रिटेन में भारतीय और दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय की पृष्ठभूमि वाले डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों को कोरोना से संक्रमित होने का सबसे ज्यादा खतरा है। देश में स्वास्थ्यकर्मियों के बीच किए गए एक सर्वेक्षण में इस बात का पता चला है। ब्रिटिश एसोसिएशन ऑफ फिजिशियंस ऑफ इंडियन ओरिजिन (बीएपीआइओ) के 'रिसर्च एंड इनोवेशन फोरम' ने जोखिम के कारकों और स्वास्थ्यकर्मियों के बीच उभरती चिंताओं का पता लगाने और उनसे निपटने के लिए 14 से 21 अप्रैल के बीच ऑनलाइन सर्वेक्षण किया।
भारतीय मूल के डॉक्टरों की संस्था द्वारा किया गया सर्वे
इस सर्वे में 2003 लोगों ने हिस्सा लिया, जिसमें अधिकांश (66 प्रतिशत) अस्पताल के डॉक्टर और प्राथमिक स्वास्थ्यकर्मी (24 प्रतिशत) शामिल थे। सर्वेक्षण में शामिल 86 फीसद लोग अश्वेत, एशियाई और अल्पसंख्यक जातीय समुदायों से थे, जिनमें सबसे अधिक 75 प्रतिशत लोग दक्षिण एशियाई मूल के थे। बीएपीआइओ के रिसर्च एंड इनोवेशन फोरम के प्रमुख डॉ. इंद्रनील चक्रवर्ती ने कहा, 'यह अपने आप में बड़ा सर्वेक्षण है जिसमें सभी पृष्ठभूमि के अश्वेत, एशियाई एवं अल्पसंख्यक जातीय समुदायों के स्वास्थ्य कर्मी शामिल थे।
पीपीई का अभाव चिकित्सा कर्मियों के लिए बड़ी चिंता का विषय
सर्वेक्षण के परिणाम जरा भी चौंकाने वाले नहीं थे कि इस पृष्ठभूमि के लोगों में वायरस से संक्रमित होने का जोखिम सबसे ज्यादा है।' सर्वेक्षण में यह भी पता चला है कि निजी सुरक्षात्मक उपकरण (पीपीई) का अभाव चिकित्सा कर्मियों के लिए बड़ी चिंता का विषय है। बीएपीआइओ के अध्यक्ष रमेश मेहता ने कहा, 'हम सरकार से इन लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपील कर रहे हैं ताकि अग्रिम मोर्चे पर काम कर रहे कर्मी खुद बीमार न पड़ें।'
नाक में कोरोना के दाखिल होने वाले बिंदुओं की पहचान
वैज्ञानिकों को नाक में उन दो खास प्रकार की कोशिकाओं (सेल्स) की पहचान करने में बड़ी सफलता हाथ लगी है, जो संभवत: कोरोना वायरस से सबसे पहले संक्रमित होती हैं। ये कोशिकाएं शरीर में कोरोना के दाखिल होने के लिए प्रवेश द्वार के तौर पर काम कर सकती हैं।
नाक में गाब्लेट और सिलिएटेड सेल्स की खोज
ब्रिटेन के वेलकम सेंजर इंस्टीट्यूट और नीदरलैंड की यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के शोधकर्ताओं ने नाक में गाब्लेट और सिलिएटेड सेल्स की खोज की। इन दोनों कोशिकाओं में उच्च स्तर पर इंट्री प्रोटीन होते हैं। इन प्रोटीन के उपयोग से कोरोना वायरस (कोविड-19) हमारे शरीर की कोशिकाओं में दाखिल होता है। उन्होंने कहा कि इन कोशिकाओं की पहचान होने से कोरोना संक्रमण की उच्च दर की व्याख्या करने में मदद मिल सकती है। नेचर मेडिसिन पत्रिका में छपे अध्ययन से यह भी जाहिर होता है कि आंख, आंत, किडनी और लिवर समेत शरीर के दूसरे कुछ अंगों में भी इंट्री प्रोटीन होते हैं। अध्ययन में यह अनुमान भी लगाया गया है कि इंट्री प्रोटीन दूसरे इम्यून सिस्टम जीन के साथ कैसे नियंत्रित होते हैं। इन निष्कर्षो से कोरोना की रोकथाम के लिए नए लक्ष्यों को साधने के साथ उपचारों के विकास की राह खुल सकती है।